ETV Bharat / international

जानें कैसे एक शांत पड़ा विवाद बढ़कर यहां तक पहुंचा, क्या है कारण

आर्मेनिया और अजरबैजान के बीच नागोर्नो-काराबाख क्षेत्र में 27 सितंबर 2020 से युद्ध शुरू हुआ था. युद्ध में दोनों पक्षों के हजारों सैनिकों की जान चली गई. इस पर अमेरिका, रूस भारत समेत कई देशों ने अपनी-अपनी प्रतिक्रिया दी है. सभी देशों ने दोनों देशों से शांति बनाए रखने की अपील की है. आइए जानते हैं आर्मेनिया व अजरबैजान के बीच युद्ध का कारण और इतिहास क्या है और आखिर किस वजह से एक शांत पड़ा विवाद बढ़कर इस गंभीर स्तर पर पहुंच गया.

आर्मेनिया और अजरबैजान संघर्ष
आर्मेनिया और अजरबैजान संघर्ष
author img

By

Published : Oct 28, 2020, 4:45 PM IST

हैदराबाद : विवादित नागोर्नो-काराबाख क्षेत्र को लेकर पिछले तीन दशकों से आर्मेनिया और अजरबैजान के बीच सीमा पर छिटपुट झड़प और कभी-कभी पूरी तरह से युद्ध भड़कता रहा है. हाल ही में तुर्की, रूस, इजराइल और पाकिस्तान जैसे दूसरे देशों ने जो भूमिका निभाई और अजरबैजान ने जो आधुनिक हथियार खरीदे उसके बाद दोनों देशों में आंतरिक दबाव की वजह से संघर्ष ने बड़े पैमाने पर युद्ध का रूप ले लिया. इसके बाद संयुक्त राष्ट्र के साथ रूस जैसे देशों को शत्रुता समाप्त करने और क्षेत्र में शांति बनाए रखने के लिए अपील करने को मजबूर होना पड़ा.

हालांकि, इन सभी अपीलों का दोनों देशों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा है और आर्मेनिया व अजरबैजान ने संघर्ष जारी रखने की ठान रखी है. सीमा पर गोलीबारी से बढ़कर लड़ाई लंबी दूरी की मार करने वाले तोपों तक पहुंच जाने से युद्ध भड़क उठा है. इस युद्ध के पीछे धार्मिक और सांस्कृतिक कारण हैं या क्षेत्रीय अखंडता और आत्मनिर्णय के अधिकार का सिद्धांत शामिल है ? आखिर किस वजह से एक शांत पड़ा विवाद बढ़कर इस गंभीर स्तर पर पहुंच गया?

संघर्ष के एक संक्षिप्त इतिहास और क्षेत्र में बदली हुई भू-राजनीतिक स्थिति से इन सवालों के कुछ जवाब मिलेंगे. जब रेड आर्मी ने 1920 के दशक की शुरुआत में कॉकेशस पर जीत दर्ज की, तो तत्कालीन सोवियत संघ के नेता जोसेफ स्टालिन ने नागोर्नो-काराबाख क्षेत्र को अजरबैजान में रखा, लेकिन उस क्षेत्र में 90 फीसद आबादी आर्मेनियाई थी. तब से यह क्षेत्र ईसाई बहुल आर्मेनिया और मुस्लिम बहुल के अजरबैजान के बीच विवाद की जड़ बना हुआ है.

नागोर्नो-काराबाख के 4400 वर्ग किमी क्षेत्र में रहने वाले आर्मेनियाई लोगों ने 1991 में स्वतंत्रता की घोषणा कर दी और उनमें से कुछ छापामार युद्ध करने लगे. अजरबैजान सरकार ने आर्मेनियाई आतंकवादियों को कुचलने के लिए सुरक्षा बल भेजे. इन सुरक्षा बलों ने नरसंहार का समर्थन किया, जिसकी वजह से जातीय सफाई अभियान शुरू हुआ. जल्द ही नागोर्नो-काराबाख ने घोषित कर दिया कि वह अपनी मर्जी से आर्मेनिया में शामिल हो रहा है, लेकिन अजरबैजान ने इस पर आपत्ति जताई. सोवियत संघ के पतन के बाद नागोर्नो-काराबाख में काराबाख सेनानियों के रूप में लोकप्रिय आर्मेनियाई लड़ाकों ने अजरबैजान के साथ 1991 से 1994 तक कुल चार साल तक भीषण लड़ाई लड़ी. इन्हें आर्मेनियाई सेना और रूसी सलाहकार सहायता देती है और लड़ाई के लिए बहकाती है.

काराबाख सेनानियों ने न केवल नागोर्नो-काराबाख के 4400 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र पर नियंत्रण कर लिया, बल्कि समीपवर्ती सात जिलों के इलाकों को भी कब्जे में ले लिया. इस तरह 7 हजार वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर कब्जा कर अर्ताश गणराज्य का गठन किया, जिसे नागोर्नो-काराबाख गणराज्य कहा जाता है. इसकी राजधानी स्टेपानाकार्ट है.

अजरबैजान के पास प्रचूर तेल संसाधन हैं. उसके पास धन की कोई कमी नहीं है. उसने तेल के पैसों से इजरायल से ड्रोन और वायु रक्षा प्रणाली, रूस से सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइलें और अन्य उन्नत हथियार खरीदे हैं. आर्मेनिया ने खर्च करने की अपनी सीमित शक्ति के बावजूद रूस से भारी हथियार और परिष्कृत मिसाइल प्रणाली खरीदे हैं. रूस आर्मेनिया की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध, जबकि तुर्की अजरबैजान के लिए. दोनों देशों के साथ ईरान की सीमा लगी है और बड़ी संख्या में अजेरी आबादी है, जो अजरबैजान की जनसंख्या से भी अधिक है. अजरबैजान सरकार का कहना है कि नागोर्नो-काराबाख स्वतंत्र नहीं हो सकता है और जैसी कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय की ओर मान्यता मिली हुई है, यह अजरबैजान प्रांत का हिस्सा है और इसे कब्जे वाले क्षेत्र को खाली करना चाहिए. नए खरीदे गए परिष्कृत हथियार और बाहरी एजेंसियों के समर्थन के साथ अजरबैजान के राष्ट्रपति इल्हाम अलीयेव का मानना है कि राजनीतिक कीमत चुकाए बगैर क्षेत्र को बलपूर्वक खाली कराया जा सकता है.

फिलहाल, अजरबैजान और नागोर्नो-काराबाख के बीच और आर्मेनिया और अजरबैजान के बीच संपर्क की रेखा के पास दोनों तरफ से बड़ी संख्या में सशस्त्र बल तैनात हैं. टकराव रोकने के लिए कोई बफर जोन नहीं है और युद्ध कर रहे समूहों के बीच कोई शांति बहाल करने वाला नहीं हैं. ऐसी खतरनाक स्थिति में अनजाने में सैन्य कार्रवाई से नए सिरे से बड़े पैमाने पर संघर्ष हो सकता है.

अंतरराष्ट्रीय समुदाय इस वजह से चिंतित है कि दोनों प्रतिद्वंद्वियों के बीच बड़े पैमाने पर लड़ाई होने से नागरिकों में अशांति, मानवीय संकट, शरणार्थियों का बहिष्कार, आंतरिक रूप से विस्थापन, पड़ोसी देशों पर अतिरिक्त प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं और उनकी अर्थव्यवस्थाओं को प्रभावित करते हैं. अजरबैजान पड़ोसी देशों और यूरोप को ऊर्जा संसाधनों का मुख्य आपूर्तिकर्ता है और लड़ाई तेज होने से इन देशों को ऊर्जा की आपूर्ति बाधित हो सकती है.

इसके अलावा अजरबैजान उत्तर-दक्षिण अंतरराष्ट्रीय परिवहन कॉरिडोर में पड़ता है, जो भारत को मध्य एशिया के रास्ते रूस के साथ जोड़ने वाला रास्ता है. कोविड महामारी के साथ तेल की कीमतों में उतार-चढ़ाव से दोनों देशों की अर्थव्यवस्थाएं प्रभावित हुई हैं. इसके अलावा विपक्षी दलों पर प्रतिबंध लगाने, कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार करने और प्रेस की स्वतंत्रता पर अंकुश लगाने को लेकर राष्ट्रपति अलीयेव की आलोचना की गई है.

ऐसा माना जाता है कि अजरबैजान का प्रशासन खराब शासन और अर्थव्यवस्था में गिरावट से जनता का ध्यान हटाने के लिए नागोर्नो-काराबाख और आर्मेनिया राष्ट्रवाद को जगाने के साथ संघर्ष की ओर आकर्षित करने की कोशिश करते हैं. वास्तव में आर्मेनिया की अर्थव्यवस्था बेहतर नहीं है और नागोर्नो-काराबाख के मुद्दे को ढिलाई से निपटने को लेकर आर्मेनिया में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन किए गए थे और यहां तक कि प्रधानमंत्री को भी बदला गया. इस आंतरिक दबाव की वजह ने दोनों देशों के अधिकारियों को इस मुद्दे पर जनता के रुख के साथ बने रहने के लिए तत्पर किया है.

भारत दोनों देशों के साथ संबंधों को सही बनाए रखकर एक संतुलित दृष्टिकोण अपनाए हुए है. कश्मीर मुद्दे पर भारत के रुख को आर्मेनिया समर्थन देता रहा है. इसके अलावा अन्य ऐतिहासिक कारणों से भारत का आर्मेनिया के साथ मजबूत संबंध है. वास्तव में भारत ने 1995 में आर्मेनिया के साथ दोस्ती और सहयोग संधि पर हस्ताक्षर किए थे. जहां तक अजरबैजान का संबंध है, तो ओएनजीसी ने अजरी की तेल परियोजना में छोटे निवेश किए हैं और गेल एलएनजी में संभावित सहयोग की खोज कर रहे हैं. अंतत: इस लड़ाई का सैन्य समाधान नहीं, बल्कि कूटनीति से ही स्थाई समाधान का मार्ग प्रशस्त हो सकता है.

(के.सी.रेड्डी, आईपीएस (सेवानिवृत्त), संयुक्त राष्ट्र के पूर्व मुख्य सुरक्षा सलाहकार)

हैदराबाद : विवादित नागोर्नो-काराबाख क्षेत्र को लेकर पिछले तीन दशकों से आर्मेनिया और अजरबैजान के बीच सीमा पर छिटपुट झड़प और कभी-कभी पूरी तरह से युद्ध भड़कता रहा है. हाल ही में तुर्की, रूस, इजराइल और पाकिस्तान जैसे दूसरे देशों ने जो भूमिका निभाई और अजरबैजान ने जो आधुनिक हथियार खरीदे उसके बाद दोनों देशों में आंतरिक दबाव की वजह से संघर्ष ने बड़े पैमाने पर युद्ध का रूप ले लिया. इसके बाद संयुक्त राष्ट्र के साथ रूस जैसे देशों को शत्रुता समाप्त करने और क्षेत्र में शांति बनाए रखने के लिए अपील करने को मजबूर होना पड़ा.

हालांकि, इन सभी अपीलों का दोनों देशों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा है और आर्मेनिया व अजरबैजान ने संघर्ष जारी रखने की ठान रखी है. सीमा पर गोलीबारी से बढ़कर लड़ाई लंबी दूरी की मार करने वाले तोपों तक पहुंच जाने से युद्ध भड़क उठा है. इस युद्ध के पीछे धार्मिक और सांस्कृतिक कारण हैं या क्षेत्रीय अखंडता और आत्मनिर्णय के अधिकार का सिद्धांत शामिल है ? आखिर किस वजह से एक शांत पड़ा विवाद बढ़कर इस गंभीर स्तर पर पहुंच गया?

संघर्ष के एक संक्षिप्त इतिहास और क्षेत्र में बदली हुई भू-राजनीतिक स्थिति से इन सवालों के कुछ जवाब मिलेंगे. जब रेड आर्मी ने 1920 के दशक की शुरुआत में कॉकेशस पर जीत दर्ज की, तो तत्कालीन सोवियत संघ के नेता जोसेफ स्टालिन ने नागोर्नो-काराबाख क्षेत्र को अजरबैजान में रखा, लेकिन उस क्षेत्र में 90 फीसद आबादी आर्मेनियाई थी. तब से यह क्षेत्र ईसाई बहुल आर्मेनिया और मुस्लिम बहुल के अजरबैजान के बीच विवाद की जड़ बना हुआ है.

नागोर्नो-काराबाख के 4400 वर्ग किमी क्षेत्र में रहने वाले आर्मेनियाई लोगों ने 1991 में स्वतंत्रता की घोषणा कर दी और उनमें से कुछ छापामार युद्ध करने लगे. अजरबैजान सरकार ने आर्मेनियाई आतंकवादियों को कुचलने के लिए सुरक्षा बल भेजे. इन सुरक्षा बलों ने नरसंहार का समर्थन किया, जिसकी वजह से जातीय सफाई अभियान शुरू हुआ. जल्द ही नागोर्नो-काराबाख ने घोषित कर दिया कि वह अपनी मर्जी से आर्मेनिया में शामिल हो रहा है, लेकिन अजरबैजान ने इस पर आपत्ति जताई. सोवियत संघ के पतन के बाद नागोर्नो-काराबाख में काराबाख सेनानियों के रूप में लोकप्रिय आर्मेनियाई लड़ाकों ने अजरबैजान के साथ 1991 से 1994 तक कुल चार साल तक भीषण लड़ाई लड़ी. इन्हें आर्मेनियाई सेना और रूसी सलाहकार सहायता देती है और लड़ाई के लिए बहकाती है.

काराबाख सेनानियों ने न केवल नागोर्नो-काराबाख के 4400 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र पर नियंत्रण कर लिया, बल्कि समीपवर्ती सात जिलों के इलाकों को भी कब्जे में ले लिया. इस तरह 7 हजार वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर कब्जा कर अर्ताश गणराज्य का गठन किया, जिसे नागोर्नो-काराबाख गणराज्य कहा जाता है. इसकी राजधानी स्टेपानाकार्ट है.

अजरबैजान के पास प्रचूर तेल संसाधन हैं. उसके पास धन की कोई कमी नहीं है. उसने तेल के पैसों से इजरायल से ड्रोन और वायु रक्षा प्रणाली, रूस से सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइलें और अन्य उन्नत हथियार खरीदे हैं. आर्मेनिया ने खर्च करने की अपनी सीमित शक्ति के बावजूद रूस से भारी हथियार और परिष्कृत मिसाइल प्रणाली खरीदे हैं. रूस आर्मेनिया की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध, जबकि तुर्की अजरबैजान के लिए. दोनों देशों के साथ ईरान की सीमा लगी है और बड़ी संख्या में अजेरी आबादी है, जो अजरबैजान की जनसंख्या से भी अधिक है. अजरबैजान सरकार का कहना है कि नागोर्नो-काराबाख स्वतंत्र नहीं हो सकता है और जैसी कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय की ओर मान्यता मिली हुई है, यह अजरबैजान प्रांत का हिस्सा है और इसे कब्जे वाले क्षेत्र को खाली करना चाहिए. नए खरीदे गए परिष्कृत हथियार और बाहरी एजेंसियों के समर्थन के साथ अजरबैजान के राष्ट्रपति इल्हाम अलीयेव का मानना है कि राजनीतिक कीमत चुकाए बगैर क्षेत्र को बलपूर्वक खाली कराया जा सकता है.

फिलहाल, अजरबैजान और नागोर्नो-काराबाख के बीच और आर्मेनिया और अजरबैजान के बीच संपर्क की रेखा के पास दोनों तरफ से बड़ी संख्या में सशस्त्र बल तैनात हैं. टकराव रोकने के लिए कोई बफर जोन नहीं है और युद्ध कर रहे समूहों के बीच कोई शांति बहाल करने वाला नहीं हैं. ऐसी खतरनाक स्थिति में अनजाने में सैन्य कार्रवाई से नए सिरे से बड़े पैमाने पर संघर्ष हो सकता है.

अंतरराष्ट्रीय समुदाय इस वजह से चिंतित है कि दोनों प्रतिद्वंद्वियों के बीच बड़े पैमाने पर लड़ाई होने से नागरिकों में अशांति, मानवीय संकट, शरणार्थियों का बहिष्कार, आंतरिक रूप से विस्थापन, पड़ोसी देशों पर अतिरिक्त प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं और उनकी अर्थव्यवस्थाओं को प्रभावित करते हैं. अजरबैजान पड़ोसी देशों और यूरोप को ऊर्जा संसाधनों का मुख्य आपूर्तिकर्ता है और लड़ाई तेज होने से इन देशों को ऊर्जा की आपूर्ति बाधित हो सकती है.

इसके अलावा अजरबैजान उत्तर-दक्षिण अंतरराष्ट्रीय परिवहन कॉरिडोर में पड़ता है, जो भारत को मध्य एशिया के रास्ते रूस के साथ जोड़ने वाला रास्ता है. कोविड महामारी के साथ तेल की कीमतों में उतार-चढ़ाव से दोनों देशों की अर्थव्यवस्थाएं प्रभावित हुई हैं. इसके अलावा विपक्षी दलों पर प्रतिबंध लगाने, कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार करने और प्रेस की स्वतंत्रता पर अंकुश लगाने को लेकर राष्ट्रपति अलीयेव की आलोचना की गई है.

ऐसा माना जाता है कि अजरबैजान का प्रशासन खराब शासन और अर्थव्यवस्था में गिरावट से जनता का ध्यान हटाने के लिए नागोर्नो-काराबाख और आर्मेनिया राष्ट्रवाद को जगाने के साथ संघर्ष की ओर आकर्षित करने की कोशिश करते हैं. वास्तव में आर्मेनिया की अर्थव्यवस्था बेहतर नहीं है और नागोर्नो-काराबाख के मुद्दे को ढिलाई से निपटने को लेकर आर्मेनिया में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन किए गए थे और यहां तक कि प्रधानमंत्री को भी बदला गया. इस आंतरिक दबाव की वजह ने दोनों देशों के अधिकारियों को इस मुद्दे पर जनता के रुख के साथ बने रहने के लिए तत्पर किया है.

भारत दोनों देशों के साथ संबंधों को सही बनाए रखकर एक संतुलित दृष्टिकोण अपनाए हुए है. कश्मीर मुद्दे पर भारत के रुख को आर्मेनिया समर्थन देता रहा है. इसके अलावा अन्य ऐतिहासिक कारणों से भारत का आर्मेनिया के साथ मजबूत संबंध है. वास्तव में भारत ने 1995 में आर्मेनिया के साथ दोस्ती और सहयोग संधि पर हस्ताक्षर किए थे. जहां तक अजरबैजान का संबंध है, तो ओएनजीसी ने अजरी की तेल परियोजना में छोटे निवेश किए हैं और गेल एलएनजी में संभावित सहयोग की खोज कर रहे हैं. अंतत: इस लड़ाई का सैन्य समाधान नहीं, बल्कि कूटनीति से ही स्थाई समाधान का मार्ग प्रशस्त हो सकता है.

(के.सी.रेड्डी, आईपीएस (सेवानिवृत्त), संयुक्त राष्ट्र के पूर्व मुख्य सुरक्षा सलाहकार)

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.