वेलिंगटन : दशकों से अमेरिका के सहयोगी रहे मार्शल द्वीप समूह के साथ हाल में पैदा हुए उसके विवाद के बीच अमेरिकी सांसदों ने चिंता जतायी है कि चीन इस स्थिति का फायदा उठा सकता है.
इस द्वीपसमूह के प्रशांत महासागर के मध्य में स्थित होने के कारण यह अमेरिकी सेना के लिए सामरिक रूप से अहम चौकी बना. लेकिन 'कॉम्पैक्ट ऑफ फ्री एसोसिएशन' समझौते की शर्तों के कारण उसका अमेरिका से विवाद हो गया है. इस समझौते की अवधि जल्द ही समाप्त हो रही है. यह समझौता अमेरिका, मार्शल द्वीप समूह, माइक्रोनेशिया और पलाऊ गणराज्य के बीच मुक्त सहयोग का संबंध स्थापित करने का एक अंतरराष्ट्रीय समझौता है.
अमेरिका मार्शल द्वीप समूह के 1940 और 50 के दशक में किए गए दर्जनों परमाणु परीक्षणों से पहुंचे पर्यावरणीय और स्वास्थ्य नुकसान का हर्जाना देने के दावों को खारिज कर रहा है. इन परमाणु परीक्षणों में बिकिनी एटॉल पर एक बड़ा थर्मोन्यूक्लियर विस्फोट भी शामिल है.
द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद से अमेरिका ने मार्शल द्वीप समूह पर ऐसे क्षेत्र में सैन्य, खुफिया, एयरोस्पेस सुविधाएं विकसित की जहां खासतौर से चीन सक्रिय है. इसके बदले में अमेरिका ने मार्शल द्वीप समूह की अर्थव्यवस्था को फायदा पहुंचाया और इस द्वीप समूह के कई लोगों को अमेरिका में रहने तथा काम करने की अनुमति दी गयी.
इस महीने अमेरिकी प्रतिनिधि सभा के 10 डेमोक्रेटिक और रिपब्लिकन सदस्यों ने राष्ट्रपति जो बाइडन के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जैक सुलिवन को मार्शल, माइक्रोनेशिया और पलाऊ के साथ अमेरिका की वार्ता को लेकर पत्र लिखा,
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उन्होंने लिखा, 'यह दुखद है कि इन वार्ताओं को प्राथमिकता नहीं दी गयी...इस प्रशासन के कार्यभार संभालने के बाद से कोई औपचारिक बैठक नहीं हुई...जबकि हमारा अंतरराष्ट्रीय ध्यान हिंद-प्रशांत पर केंद्रित रहा है.'
सांसदों ने कहा कि इस देरी से अमेरिका कमजोर स्थिति में जा रहा है और 'चीन अपने पैर पसारने और ढांचागत तथा जलवायु अनुकूल निवेश मुहैया कराने के लिए तैयार है जिसकी इन देशों को काफी जरूरत है.'
चीन के विदेश मंत्रालय ने कहा कि अमेरिका को उसके परमाणु परीक्षणों से हुए पर्यावरणीय नुकसान की भरपाई करने की जिम्मेदारी उठानी चाहिए. उसने कहा कि चीन 'एक चीन सिद्धांत' के तहत परस्पर सम्मान और सहयोग के आधार पर मार्शल द्वीप समूह और अन्य प्रशांत द्वीपीय देशों के साथ भागीदारी का इच्छुक है.
(पीटीआई-भाषा)