कोलंबो : श्रीलंका ने मंगलवार को अपने स्वतंत्रता दिवस समारोह में राष्ट्रीय गान के तमिल संस्करण के प्रस्तुतीकरण को हटा दिया. साल 2016 के बाद पहली बार ऐसा हुआ है. इससे अल्पसंख्यक तमिलों के साथ सामंजस्य बैठाने की सरकार की नीतियों को लेकर चिंताएं बढ़ गई हैं.
राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे ने यहां 72वें राष्ट्रीय दिवस के मौके पर पहली बार राष्ट्र को संबोधित करते हुए कहा कि किसी के साथ कोई भेदभाव नहीं किया जाएगा.
उन्होंने कहा, 'मैं आज राष्ट्रपति के तौर पर जातीयता, धर्म, पार्टी संबद्धता या अन्य मतभेदों से परे पूरे श्रीलंका का प्रतिनिधित्व करता हूं.'
उन्होंने कहा कि वह नागरिकों की आजादी सुनिश्चित करेंगे, जिसमें प्रेस की आजादी और अभिव्यक्ति का अधिकार शामिल है.
बता दें कि आज हुए समारोह में केवल सिंहली भाषा में ही राष्ट्रगान की धुन बजाई गई. साल 2016 के बाद से पहली बार ऐसा हुआ है कि देश के स्वतंत्रता दिवस समारोह में तमिल में राष्ट्र गान का प्रस्तुतीकरण नहीं हुआ.
वर्ष 2015 में तत्कालीन श्रीलंका सरकार ने तमिल अल्पसंख्यक समुदाय से सामंजस्य स्थापित करने के लिए स्वतंत्रता दिवस समारोह में तमिल में भी राष्ट्रगान को शामिल किया था.
उल्लेखनीय है कि श्रीलंका का संविधान सिंहली और तमिल दोनों में ही राष्ट्रगान की अनुमति देता है. राष्ट्रगान का तमिल संस्करण 'श्रीलंका थये' सिंहली भाषा के 'नमो-नमो माता' का अनुवाद है.
पढ़ें- चीन में फंसे पाकिस्तानी छात्रों ने वहां से निकालने की लगाई गुहार
श्रीलंका के राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे ने नवंबर में अपने शपथ ग्रहण समारोह के बाद बौद्ध धर्म को प्राथमिकता देने की बात कही थी. श्रीलंका में बौद्ध धर्म को मानने वाले सिंहली
बहुसंख्यकों की आबादी 2.1 करोड़ है. देश में 12 फीसद हिंदू हैं, जिनमें ज्यादातर तमिल अल्पसंख्यक हैं.