काठमांडू : नेपाल में राजनीतिक संकट जारी है. इस बीच देश में संवैधानिक राजत्रंत की मांग जोर पकड़ रही है. शुक्रवार को संवैधानिक राजत्रंत की मांग को लेकर काठमांडू में सैकड़ों लोगों ने रैली निकाली.
इससे पहले नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने बुधवार को कहा था कि वह विरोधी धड़े के नेता पुष्क कमल दहल 'प्रचंड' के साथ 'समझौते कर थक चुके' हैं. साथ ही ओली ने उन पर सत्ताधारी नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी को एकजुट रखने के लिए पूर्व में किए गए कई समझौतों के उल्लंघन का आरोप भी लगाया.
ओली ने कहा था कि वास्तव में, प्रचंड सरकार बनाने के लिये नेपाली कांग्रेस से बात कर रहे हैं और उसी के साथ मुझसे भी मोलभाव कर रहे हैं. यद्यपि हम (दो कम्युनिस्ट दल) चुनावी गठबंधन बनाने के बाद चुनाव जीते थे.
ओली ने कहा था कि वह प्रचंड के साथ समझौते करके थक गए हैं. उन्होंने कहा कि वह पार्टी को एकजुट रखने के लिये पूर्व प्रधानमंत्री के साथ कई बार समझौते कर चुके हैं.
संविधान में संसद को फिर से बहाल करने का कोई प्रावधान नहीं होने का जिक्र करते हुए ओली ने कहा था कि यह जानने के बाद वह सदन को भंग करने के लिए मजबूर हुए कि प्रचंड के नेतृत्व वाला धड़ा उनके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने और राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी के खिलाफ संसद में महाभियोग प्रस्ताव की तैयारी कर रहा है.
नेपाल में उस वक्त आर्थिक संकट गहरा गया जब बीजिंग की तरफ अपने झुकाव के लिये चर्चित ओली ने 20 दिसंबर को अचानक 275 सदस्यों वाले सदन को भंग करने की अनुशंसा कर दी. उन्होंने प्रचंड के साथ चल रही खींचतान के बीच यह अप्रत्याशित कदम उठाया.
यह भी पढ़ें- राजनीतिक संकट के बीच चीन ने नहीं दी अपने शीर्ष अधिकारी की नेपाल यात्रा को तवज्जो
प्रधानमंत्री की अनुशंसा पर कार्रवाई करते हुए राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी ने उसी दिन सदन को भंग कर दिया और 30 अप्रैल व 10 मई को नए चुनावों का एलान कर दिया. इसके विरोध में नेपाल में एनसीपी के प्रचंड धड़े के समर्थकों ने व्यापक प्रदर्शन किया. प्रचंड सत्ताधारी एनसीपी में सहअध्यक्ष भी हैं.
ओली के नेतृत्व वाली सीपीएन-यूएमएल और प्रचंड के नेतृत्व वाली एनसीपी (माओवादी सेंटर) का 2017 में हुए चुनावों में अपने गठजोड़ को मिली जीत के बाद एकीकृत नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी बनाने के लिये मई 2018 में विलय हो गया था.