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जाधव मामला: पाकिस्तान सरकार ने संसद में अध्यादेश पेश किया

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Published : Jul 28, 2020, 1:05 PM IST

पाकिस्तान सरकार ने कुलभूषण जाधव के मामले में नेशनल असेंबली में एक अध्यादेश पेश किया. यह अध्यादेश अंतरराष्ट्रीय अदालत के फैसले के मद्देनजर पेश किया गया है. जाधव को पाकिस्तानी सैन्य अदालत ने जासूसी और आतंकवाद के आरोप में मौत की सजा सुनाई थी.

pak on Kulbhushan Jadhav
कुलभूषण जाधव

इस्लामाबाद : पाकिस्तान सरकार ने भारतीय कैदी कुलभूषण जाधव के मामले में अंतरराष्ट्रीय अदालत के फैसले के मद्देनजर सोमवार को विपक्षी दलों के विरोध के बावजूद नेशनल असेंबली में एक अध्यादेश पेश किया.

गत 20 मई को अधिनियमित 'अंतरराष्ट्रीय अदालत समीक्षा एवं पुनर्विचार अध्यादेश 2020' के तहत सैन्य अदालत के फैसले की समीक्षा के लिए एक याचिका इस्लामाबाद उच्च न्यायालय में एक अर्जी के माध्यम से अध्यादेश जारी होने के 60 दिन के भीतर दायर की जा सकती है.

भारतीय नौसेना के 50 वर्षीय सेवानिवृत्त अधिकारी जाधव को अप्रैल 2017 में एक पाकिस्तानी सैन्य अदालत ने जासूसी और आतंकवाद के आरोप में मौत की सजा सुनाई थी. भारत ने जाधव तक राजनयिक पहुंच से इनकार करने और मौत की सजा को चुनौती देने के लिए पाकिस्तान के खिलाफ आईसीजे का दरवाजा खटखटाया था.

हेग स्थित आईसीजे ने जुलाई 2019 में फैसला सुनाया था कि पाकिस्तान को जाधव की सजा की 'प्रभावी समीक्षा और पुनर्विचार' करना चाहिए और साथ ही और कोई देरी किये बिना भारत को राजनयिक पहुंच प्रदान करनी चाहिए.

पढ़ें-कुलभूषण जाधव मामले में पाक का पाखंडी रवैया उजागर : विदेश मंत्रालय

स्थानीय टीवी चैनल के अनुसार कानून के तहत अध्यादेश संसद में पेश होना चाहिए. संसदीय मामलों पर प्रधानमंत्री इमरान खान के सलाहकार बाबर अवान ने अध्यादेश को निचले सदन में पेश किया.

पिछले सप्ताह विपक्षी पार्टियों पाकिस्तान मुस्लिम लीग नवाज (पीएमएल-एन) और पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) ने इसी तरह का एक प्रयास नाकाम कर दिया गया था और सदन में कोरम नहीं होने का उल्लेख करते हुए बहिर्गमन किया था.

कानून मंत्री एफ नसीम ने शुक्रवार को विपक्षी दलों से इस मुद्दे पर 'राजनीति से बचने' की अपील की थी और उन्हें चेतावनी दी कि यदि संयुक्त राष्ट्र के फैसले को लागू नहीं किया गया तो भारत मामले को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में ले जाएगा.

एकतरफा कदम के तहत पाकिस्तान ने पिछले हफ्ते इस्लामाबाद उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की थी जिसमें जाधव के लिए 'कानूनी प्रतिनिधि' नियुक्त करने की मांग की गई थी.

हालांकि, अध्यादेश के तहत कानून और न्याय मंत्रालय द्वारा याचिका दायर करने से पहले भारत सरकार सहित प्रमुख पक्षों से परामर्श नहीं किया गया.

इस्लामाबाद : पाकिस्तान सरकार ने भारतीय कैदी कुलभूषण जाधव के मामले में अंतरराष्ट्रीय अदालत के फैसले के मद्देनजर सोमवार को विपक्षी दलों के विरोध के बावजूद नेशनल असेंबली में एक अध्यादेश पेश किया.

गत 20 मई को अधिनियमित 'अंतरराष्ट्रीय अदालत समीक्षा एवं पुनर्विचार अध्यादेश 2020' के तहत सैन्य अदालत के फैसले की समीक्षा के लिए एक याचिका इस्लामाबाद उच्च न्यायालय में एक अर्जी के माध्यम से अध्यादेश जारी होने के 60 दिन के भीतर दायर की जा सकती है.

भारतीय नौसेना के 50 वर्षीय सेवानिवृत्त अधिकारी जाधव को अप्रैल 2017 में एक पाकिस्तानी सैन्य अदालत ने जासूसी और आतंकवाद के आरोप में मौत की सजा सुनाई थी. भारत ने जाधव तक राजनयिक पहुंच से इनकार करने और मौत की सजा को चुनौती देने के लिए पाकिस्तान के खिलाफ आईसीजे का दरवाजा खटखटाया था.

हेग स्थित आईसीजे ने जुलाई 2019 में फैसला सुनाया था कि पाकिस्तान को जाधव की सजा की 'प्रभावी समीक्षा और पुनर्विचार' करना चाहिए और साथ ही और कोई देरी किये बिना भारत को राजनयिक पहुंच प्रदान करनी चाहिए.

पढ़ें-कुलभूषण जाधव मामले में पाक का पाखंडी रवैया उजागर : विदेश मंत्रालय

स्थानीय टीवी चैनल के अनुसार कानून के तहत अध्यादेश संसद में पेश होना चाहिए. संसदीय मामलों पर प्रधानमंत्री इमरान खान के सलाहकार बाबर अवान ने अध्यादेश को निचले सदन में पेश किया.

पिछले सप्ताह विपक्षी पार्टियों पाकिस्तान मुस्लिम लीग नवाज (पीएमएल-एन) और पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) ने इसी तरह का एक प्रयास नाकाम कर दिया गया था और सदन में कोरम नहीं होने का उल्लेख करते हुए बहिर्गमन किया था.

कानून मंत्री एफ नसीम ने शुक्रवार को विपक्षी दलों से इस मुद्दे पर 'राजनीति से बचने' की अपील की थी और उन्हें चेतावनी दी कि यदि संयुक्त राष्ट्र के फैसले को लागू नहीं किया गया तो भारत मामले को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में ले जाएगा.

एकतरफा कदम के तहत पाकिस्तान ने पिछले हफ्ते इस्लामाबाद उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की थी जिसमें जाधव के लिए 'कानूनी प्रतिनिधि' नियुक्त करने की मांग की गई थी.

हालांकि, अध्यादेश के तहत कानून और न्याय मंत्रालय द्वारा याचिका दायर करने से पहले भारत सरकार सहित प्रमुख पक्षों से परामर्श नहीं किया गया.

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