नई दिल्ली : पाकिस्तान से आजादी के लिए बलूचिस्तान में लंबे समय से आंदोलन चल रहा है. बलूच कार्यकर्ता दुनियाभर में पाकिस्तान के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं. बलूच कार्यकर्ताओं का आरोप है कि स्वतंत्रता आंदोलन को दबाने के लिए पाकिस्तानी सेना बलूचों की हत्याएं कर रही है. ईटीवी भारत के नेशनल ब्यूरो चीफ राकेश त्रिपाठी ने बलूचिस्तान की आजादी के लिए लंबे अर्से से संघर्ष कर रहीं बलूच पीपुल्स कांग्रेस की चेयरपर्सन नायला कदरी से विभिन्न मुद्दों पर बातचीत की. देखें इस वार्ता के प्रमुख अंश...
सवाल : मेरा पहला सवाल हाल ही में कराची में हुए बम धमाके को लेकर है. इस हमले की जिम्मेदारी बलूच लिबरेशन आर्मी ने ली है. क्या कहना है आपका? क्या आतंकवाद के इस रास्ते आज़ादी की मुहिम ठीक है या ये एक मजबूरी है?
जवाब : पहली बात तो यह कि आतंकवाद और आज़ादी की लड़ाई में फर्क करना चाहिए. बलूच टेररिस्ट नहीं हैं. बलूच फ्रीडम फाइटर्स हैं. बलूचों की जो पुरअम्न फाइट है, उसको रोक दिया गया है. बलूचों की आवाज़ कोई नहीं सुन रहा. तो हमारे यह जो बच्चे हैं, बहुत दुख है हमें कि इतने पढ़े-लिखे, इतने क़ाबिल बच्चे, जर्नलिस्ट हैं, डॉक्टर्स हैं, इंजीनियर्स हैं, पोएट्स हैं, राइटर्स हैं और यह अपनी जानें ले रहे हैं, सिर्फ इसलिए कि दुनिया सुने. हमें खुद बहुत दुख है. एक मां होने के नाते बहुत दुख है, लेकिन बलूचों की आवाज़ दुनिया जब तक नहीं सुनेगी, तब तक हम कैसे कह सकते हैं कि टेररिस्ट कौन है. पाकिस्तान की आर्मी टेररिस्ट है. बलूचों ने तो किसी के बच्चों का कत्ल नहीं किया. बलूचों ने किसी के घरों पर हमले नहीं किए. पाकिस्तान की टेररिस्ट आर्मी तो आकर हमारे घर जला रही है. हमारी महिलाओं का रेप कर रही है. हमारी महिलाओं को उठा कर ले जा रही है. हमारे बच्चों को मार रहे हैं. हमारे घर जला रहे हैं. टेररिस्ट तो पाकिस्तान की आर्मी है, लेकिन दुनिया की आंखें बंद हैं. इसलिए कि दुनिया हिप्पोक्रेट है, मुनाफिक है.
सवाल : क्या आप इस संघर्ष को एक राजनैतिक लड़ाई में तब्दील करना चाहेंगी?
जवाब : राजनैतिक लड़ाई या संघर्ष बलूच कर रहे हैं और उसके लिए बलूचों ने दुनिया के सारे दरवाज़े खटखटाए. बगैर राजनैतिक लड़ाई के आप कुछ भी हासिल नहीं कर सकते. जो आपकी मदर पॉलिटिकल पार्टी है, जो आपका मदर पॉलिटिकल मूवमेंट है, उसके बगैर आप कुछ भी हासिल नहीं कर सकते, लेकिन ऐसा नहीं है कि बलूच राजनैतिक लड़ाई नहीं कर रहे. वो यह लड़ाई किए जा रहे हैं. बलूचों की जो पॉलिटिकल पार्टीज़ हैं, वो पाकिस्तान की मुस्लिम लीग से पुरानी हैं. बहुत पुरानी हैं. जी हां, लेकिन बात यह है कि हमारे जो पॉलिटिकल मूवमेंट्स रहे हैं और आज भी हैं, वो अपना काम कर रहे हैं. मुख्तलिफ (अनेक) रास्ते हैं, कुछ लोग कुछ और रास्ता अख्तियार करते हैं. हम लोग पीसफुल पॉलिटिक्स कर रहे हैं, तो हमारी आवाज़ कौन सुनता है. आवाज़ भी तो नहीं सुन रहे.
सवाल : लोग क्यों नहीं यह आवाज सुन रहे हैं? बलूचिस्तान में बहुत सारा खनिज भरा पड़ा है. पाकिस्तान उसका दोहन करता आया है, लेकिन बलूचिस्तान में कोई विकास का काम नहीं करता पाकिस्तान. आखिर यह बात दुनिया क्यों नहीं समझ पा रही है? जिन लोगों से आपको उम्मीद रही है, वह लोग क्यों नहीं यह बात समझ पा रहे हैं?
जवाब : बात यह है कि दुनिया में सारे देश अपने फायदे के लिए काम करते हैं. यूनाइटेड नेशंस (संयुक्त राष्ट्र) की सबसे बड़ी फंडिंग इस वक्त चीन से आ रही है, तो यूनाइटेड नेशंस के लिए भी शायद हमारी आवाज़ सुनना अब मुश्किल हो रहा है. जो बाकी मुमालिक (देश) हैं, किसी को अफगानिस्तान में पाकिस्तान की ज़रूरत है. किसी को वाघा बॉर्डर पर उनके लिए समस्या नहीं चाहिए. किसी को एलओसी पर समस्या नहीं चाहिए, तो देशों के अपने इंटेरेस्ट्स (हित) हैं. बात यह है कि लोग जब भी बलूच को मिनरल्स या खनिज के तौर पर लेते हैं, तो हमें बड़ी तकलीफ होती है. हमारे लिए तो बलूचिस्तान हमारी मां है, मिनरल्स तो दुनिया को अब पता चला है.
सवाल : आपके लिए बेशक बलूचिस्तान मां की तरह है, लेकिन पाकिस्तान के लिए तो मिनरल्स का खजाना है. आखिर क्या वजह है कि दुनिया में आपकी बात नहीं सुनी जा रही है? आपने चीन की बात कही. चीन को इस वक्त जिस तरह घेरा जा रहा है दुनिया भर में, क्या आपको लगता है कि चीन को साइडलाइन किया जाए किसी तरह तो इससे बलूचिस्तान की आज़ादी का रास्ता खुलता है?
जवाब : देखिए हम किसी को भी साइडलाइन नहीं करना चाहते. हम चाहते हैं कि दुनिया के सारे लोग, चाहें चीनी हों, चाहें हिंदुस्तानी हों, चाहें बलूच हों या अमेरिकन्स और यूरोपियन्स हों, सब अपनी-अपनी धरती पर अपने-अपने हक से जिएं, लेकिन आज चीन में जो हुकूमत है, उसने तो चीन के लोगों को भी कैद करके रखा है. चीन के अपने लोग भी इस वक्त कैद में हैं. इस वक्त तब्दीली की ज़रूरत है और उस तब्दीली के लिए, जो भी हमारे मुल्क पर कब्ज़ा करने की कोशिश करेगा, चाहे वो चीन हो या पाकिस्तान, या फिर कोई और मुल्क हो, हम तो उसके खिलाफ स्टैंड लेंगे. और देखें, हमारा तजुर्बा यह है कि जब भी किसी नतीज़े तक पहुंचने की बात होती है, तो लोग सुलह पर आ जाते हैं. तो हमें नहीं पता चीन के लिए जो घेरा बना है, कब इस पर कोई समझौता कर ले. मुझे बहुत ज़्यादा उम्मीदें नहीं हैं.
सवाल : पाकिस्तान हमेशा यह आरोप लगाता रहता है कि बलूचिस्तान की आज़ादी की लड़ाई को भारत हवा दे रहा है. लेकिन भारत हमेशा इससे इनकार करता रहा है. आपको क्या लगता है?
जवाब : देखें पाकिस्तान के लिए तो यह एक बहाना है. बलूचों को मारने का एक बहाना है कि भारत हवा दे रहा है.
सवाल : यह कौन कहता है कि तुम हिंदू है?
जवाब : पाकिस्तान की फौज....पाक फौज जब बलूचों पर हमला करने के लिए आती है, तो वह यही कहते हैं. वह हमारे कुरान-ए-पाक में आग लगा देते हैं. हमारा कुरान-ए-पाक उन्हें गीता लगता है, वेद लगता है.
सवाल : लेकिन क्या वह समझते नहीं कि आपका और उनका कुरान-ए-पाक एक ही है?
जवाब : अलग तो नहीं है, कुरान-ए-पाक तो एक ही है. वो बलूच के हाथ में है न. क्योंकि बलूच ने ही तो इन्हें सिखाया था कलमा पढ़ना (इस्लाम अपनाना). बड़ी गलती तो यह की.
सवाल : लेकिन अजीब सी बात है कि पाकिस्तान बलूचिस्तान की आज़ादी को तो कुचलना चाहता है, लेकिन कश्मीर में आतंकी भेज कर कहता है कि वह आज़ादी के लिए लड़ रहे हैं.
जवाब : कश्मीर का पाकिस्तान से तो कोई ताल्लुक नहीं है. कश्मीर कभी पाकिस्तान का हिस्सा रहा ही नहीं, न होना चाहिए. पाकिस्तान की खुद कोई तारीख नहीं है. कोई वजूद नहीं है. वह एक नकली मुल्क है. इसको ब्रिटेन ने बनाया, क्योंकि वह एक चौकीदार यहां रखना चाहते थे, दक्षिण एशिया में अपने लिए. अपनी प्रॉक्सी रखना चाहते थे. बाद में अमेरिका ने उनकी मदद की. अब चीन उनकी मदद कर रहा है. वह (पाकिस्तान) बाहर के ऑक्सीजन के बगैर ज़िंदा भी नहीं रह सकते. तो वह लोग इस तरह के हैं और आतंक उनका एसेट (संपत्ति) है. वह कश्मीर (पीओके) में सैन्यकरण कर रहे हैं. वह कश्मीर के जंगलों को काट कर बेच रहे हैं. वह कश्मीर की दरियाओं को कश्मीर के लिए नहीं, बल्कि पंजाब के लिए मोड़ रहे हैं. पाक अधिकृत कश्मीर (पीओके) में कश्मीरियों के साथ इंतहाई ज़ुल्म वहां पर हो रहा है. वहां पर सैन्यकरण हो रहा है. कश्मीरी तो बहुत प्यारे लोग हैं, अमन वाले लोग हैं और वहां की मिलिटराइज़ेशन (सैन्यकरण) संयुक्त राष्ट्र के कन्वेंशन के खिलाफ है, लेकिन पाकिस्तान ने वहां पर दो तरह की मिलिटराइज़ेशन की है. एक- जो अपनी फौज भेजी हुई है और दूसरे जो उनके आतंकी हैं, मज़हबी इंतेहा पसंद लोग हैं.
सवाल : बलूचों की आज़ादी की लड़ाई कई खेमों में बंटी हुई है. क्या इसकी वजह से आपका मकसद फोकस्ड नहीं हो पाता? क्या यह सही है?
जवाब : ऐसा कुछ नहीं है. बंटे हुए हैं, मुख्तलिफ खेमे हैं. यह तो अच्छी बात है, भिन्नता है. भारत की आज़ादी का जो आंदोलन था, उसमें भी बहुत सारे दल थे, बल्कि उनकी सोच भी मुख्तलिफ थी. गांधी जी पुरअम्न बात करते थे, शांतिपूर्वक अहिंसक आंदोलन की बात करते थे, लेकिन भगत सिंह मिलिटेंट स्ट्रगल (संघर्ष) की बात करते थे. आज आपके लिए दोनों हीरो हैं. तो इस तरह के खेमे सभी आंदोलनों में होते हैं. अफ्रीका के आंदोलन भी दो-तीन हिस्सों में बंटे हुए थे. दुनिया अपनी ज़िम्मेदारियां हम पर डालने की कोशिश कर रही है कि देखिए भई आप लोग बहुत सारे दलों में बंटे हो, इसलिए हम आपकी मदद नहीं कर सकते. यह तो कोई बात नहीं हुई.
सवाल : कई सारे खेमों में बंटे होने के बावजूद क्या कभी आप सब लोग मिलते हैं? सलाह मशविरे के लिए कि इस आजादी के आंदोलन को कैसे आगे बढ़ाना है?
जवाब : बीएलएफ (बलूच लिबरेशन फ्रंट) का जो बेस था, उसमें हम सारे इकट्ठे थे. हमारा एक अलायंस (गठबंधन) था. हम एक बड़ी पार्टी भी बनने जा रहे थे. उस तरफ जाने की बजाय हुआ यह कि सारे लोगों को मुल्क छोड़ना पड़ा, जान बचाने के लिए और बलूचों की आवाज़ बाहर पहुंचाने के लिए. 70 साल से हम लड़ रहे हैं, बलूचों का खून बह रहा था, लेकिन आवाज़ बाहर नहीं जा रही थी. अब बलूचों ने बाहर निकल कर यूनाइटेड नेशंस में आवाज़ पहुंचाई है. यूरोपियन यूनियन में, दूसरे मुल्कों से लॉबी कर रहे हैं, तो इसकी वजह से पॉलिटिकल फासले हैं, लेकिन हम सब एक प्वाइंट पर इकट्ठे हैं और वह है, बलूचिस्तान की आज़ादी.
सवाल : क्या आप भारत से बहुत निराश हैं?
जवाब : हां, भारत की सरकार से हम निराश हैं और भारत की जनता से भी हम निराश हैं. भारत की जनता चाहती है कि बलूचिस्तान आज़ाद हो, पर इसके लिए सरकार पर दबाव नहीं बनाती. यह निराशाजनक है.
सवाल : नायला जी, जब नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने थे, तो उस साल उन्होंने लाल किले से बलूचों की आज़ादी की बात की थी. आपको लगता है कि उसके बाद ज़मीन पर कुछ हुआ नहीं?
जवाब : नहीं, उससे और तो कुछ नहीं हुआ. हमारी उम्मीदें बढ़ गईं. हम पर दिन में जो दस गोलियां चलती थीं, अब सौ चलने लगीं. बुलाओ मोदी को, बचाए तुम्हें. हमें तो आग में भी झोंक दिया और हमारे लिए कुछ किया भी नहीं. यह भी तारीख का हिस्सा है. मोदी जी के पास अभी कुछ टाइम बाकी है. तारीख तो मोदी जी की भी लिखी जा रही है. जैसे नेहरू जी की लिखी गई है. नेहरू जी ने बलूचिस्तान की आज़ादी पर बलूचिस्तान के हाउस ऑफ कॉमन के जो मुखिया थे, वो नेहरू जी से मिले. यह फरवरी 1948 की बात है. उन्होंने नेहरू जी से कहा कि पाकिस्तान हम पर हमला करने जा रहा है. हमें खुद में मिलाना चाह रहा है. हमारे बिना उसकी कोई ज्यॉग्रफी नहीं है, न कोई रिसोर्सेज हैं. यह आज अगर हमें खा लेगा, यह इतना बड़ा ड्रैगन बनेगा कि कल यह आपको लिए मुसीबत बन जाएगा. हमारी मदद करें. पाकिस्तान को रोकें. यूएन में आवाज़ उठाएं. नेहरू जी ने कहा, हम कुछ नहीं कर सकते. क्योंकि उस वक्त तक (1956 तक) भारत और पाकिस्तान की फौज दोनों ब्रिटेन के अधीन थीं.
सवाल : एक बरस आप भारत में भी थीं. आपने कभी मोदी से मिलने की कोशिश की. दिल्ली में कुर्सी पर बैठे लोगों से मिलने की कोशिश की?
जवाब : मेरी बात सब लोगों तक पहुंची. कैसे पहुंची, यह मैं मीडिया पर नहीं बता सकती, लेकिन बहरहाल मेरी बात सब तक पहुंची, जहां-जहां बात पहुंचनी थी.
सवाल : लेकिन जानकार मानते हैं कि अगर आपको कहीं से मदद मिल भी सकती है, तो वह भारत ही है.
जवाब : ऐसा नहीं है. कई मुल्क हैं, जो हमारी मदद कर सकते हैं. हम सबका सहयोग लोंगे.
सवाल : क्या और देशों से भी आपको उम्मीद है?
जवाब : बहुत कुछ बदल सकता है दुनिया में, बहुत कुछ. अगर भारत की यह खुशफहमी है कि बलूच उसके बगैर आज़ादी हासिल नहीं कर सकते, तो आप ग़लत हैं. आप हमारी मदद नहीं करेंगे, तो हम अपने लिए मदद लेंगे. बहुत बड़ी दुनिया है और हम इस चीज़ का एलान करेंगे कि हमारी मदद के लिए भारत को बीच में शामिल ही न किया जाए.
सवाल : क्या कोई फुटप्रिंट है आपके पास कि अगर बलूचिस्तान आज़ाद हुआ तो क्या इसकी शक्ल होगी? भारत में मिलेगा, अफगानिस्तान या ईरान में मिलेगा या एक स्वतंत्र देश होगा?
जवाब : बलूचिस्तान न कभी भारत का हिस्सा था, न ईरान का, न अफगानिस्तान का, न कभी होगा. बलूचिस्तान 700 साल एक सॉवरिन कंट्री (संप्रभु देश) रहा है और रहेगा. यह जो 70 साल की गुलामी है, जो हम पर कब्ज़ा है, यह कौमों की तारीख में कुछ नहीं है. अगर आपका यह ख्याल है कि हम बलूचिस्तान को अपने वश में कर लेंगे, तो ऐसा नहीं है.
सवाल : नहीं यह मेरा ख्याल नहीं है.
जवाब : कुछ लोगों का ख्याल है यह. कुछ लोगों ने शेयर किया हमसे कि आप एलान कर दें कि आप हिंदुस्तान में शामिल हो जाएंगे, तो हम आपकी मदद करेंगे. इस शर्त पर हम आपकी मदद नहीं लेंगे. बंगाल (बांग्लादेश) इंडिया का हिस्सा था. लेकिन आज बंगाल एक अलग मुल्क है. पहले कभी बंगाल अलग मुल्क नहीं था. हम तो अलग मुल्क थे, आप किसी शर्त पर हमारी मदद क्यों करेंगे? दूसरी बात यह है कि जब तक भारत अपनी तारीख की इज़्ज़त करना सीखें. आप जिस सिविलाइज़ेशन (सभ्यता) की बात करते हैं, उस संस्कृति का ग्रैंड मदर बलूचिस्तान है. उसकी दादी-नानी बलूचिस्तान है. यहां से वह सिविलाइज़ेशन निकली है और केरल तक गई है. श्रीलंका और अफगानिस्तान तक गई है. इस संस्कृति की बुनियाद बलूचिस्तान है. आप अगर अपनी दादी की और नानी की इज़्ज़त और आज़ादी के लिए आंदोलन नहीं करते हैं, तो करेंगे क्या आप? दूसरा यह कि ऐसी स्थिति के लिए बात हो सकती है कि यहां पर जितने दक्षिण एशियाई देश हैं, बलूचिस्तान, अफगानिस्तान और सिंधु देश हैं, भारत, नेपाल, मालदीव और बांग्लादेश हैं, आप इन सारे मुल्कों का एक 'यूनाइटेड स्टेट' बना सकते हैं. उसमें सबसे बड़ी चीज़ यह होगी कि आपको इतना बड़ा कैपिटल नहीं खर्च करना होगा. आपका कॉमन डिफेंस हो. कॉमन करेंसी (मुद्रा) हो. ऐसा कुछ किया जा सकता है और उसमें बलूचिस्तान अपना शेयर देगा, लेकिन बलूचिस्तान अपनी ज़मीन, अपनी डेमोक्रेसी, अपना कल्चर अपनी आइडेंटिटी (पहचान) कभी सैक्रिफाइस (बलिदान) नहीं करेगा.