भारत और पाकिस्तान के बीच व्यापारिक रिश्तों को रोके जाने का सबसे ज्यादा खामियाजा भारत के बीज निर्यात बाजार को उठाना पड़ा है. हाल के महीनों में दोनों देशों के बीच राजनीतिक रिश्तों में तल्खी रही है. लेकिन इस नए साल में मौका है कि राजनीति और वाणिज्य को अलग -अलग कर दोनों देशों के किसानों की मदद की जा सके.
गुजराती समाज अपने व्यापार की समझ के लिए दुनिया में जाना जाता है और गुजरात से आने वाले हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को यह समझना होगा कि इन व्यापारिक प्रतिबंधों से भारत को ज्यादा नुकसान हो रहा है. कई सालो से फलों और सब्जियों के बीजों के लिए पाकिस्तान भारत का तीसरा सबसे बड़ा खरीददार रहा है. 2018-19 में भारत ने पाकिस्तान को $17,528,530 मूल्य के फल और सब्जियों के बीज निर्यात किए थे. यह आंकड़ा 2017-18 में $14,160,248 था. एक साल में इस आंकड़े में $3 मिलियन का इजाफा हुआ और यह साबित करता है कि एक जैसे मौसम, जमीन और खानपान की आदतों के कारण हमारे बीज पाकिस्तान में काफी पसंद किए जाते हैं.
गौरतलब है कि यह व्यापार केवल फल और सब्जियों के बीजों के कारण है, इसमें सूत, दालें आदि क्या भूमिका निभा सकते हैं, इसका अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है. बीज और पेड़ पौधे देशों की सीमाओं पर निर्भर नहीं करते हैं. भारत में बेहतर मौसम, मिट्टी और पानी के कारण हर तरह के बीजों का पाकिस्तान को निर्यात हुआ और इसका बड़ा हिस्सा पूर्वी भारत से आया. इनमें, धान, गेहूं, दालें, सूत आदि शामिल था. भारतीय किस्म के बीज पाकिस्तान में बेहतर उपज देते हैं क्योंकि लंबे समय में यह पाकिस्तान कि मिट्टी, पानी और मौसम के अनुरूप ढल गए हैं.
भारत-पाक के बीच सालाना 1300-1500 करोड़ के बीजों का व्यापार होता था. जानकारों की राय में यह व्यापार आने वाले समय में 2000 करोड़ तक पहुंच सकता है. इसका मतलब है कि भारतीय किसानों और बीज उत्पादकों की जेब में सीधे- सीधे 2000 करोड़ की कमाई. इसके कारण दोनों तरफ आनेवाली खुशहाली. भारत-पाक साझेदारी की एक और मिसाल हो सकती है. लेकिन बीजों के निर्यात पर रोक लगाने से हम अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मार रहे हैं. भारत द्वारा निर्यात पर रोक से घरेलू भंडार का नुकसान तो हुआ ही. वहीं पाकिस्तान में इसके चलते बीज की सप्लाई प्रभावित हुई, जिसके कारण एक बड़ा फासला बन गया.
इस रोक से बने दायरे का इस्तेमाल चीन की बीज निर्माता कम्पनियां अपने पैर फैलाने के लिए कर रही हैं. इस बैन के कारण चीन द्वारा पाकिस्तान के बीज उद्योग पर कब्जा करने का खतरा है, जहां इस रोक के चलते भारतीय किसानों और बीज उत्पादकों को करोड़ों डॉलर का नुकसान हो रहा है वहीं चीनी बीज उत्पादक पाकिस्तान में अपना कार्य क्षेत्र बढ़ा रहे हैं. चीन की कम्पनियों को पाकिस्तानी जर्मपलास्म तक पहुंच मिल गई है जो आने वाले समय में भारतीय कृषि क्षेत्र के लिए नुकसानदायक हो सकता है. पाकिस्तान और चीन की सरकारें बासमती चावल की एक हाईब्रिड किस्म विकसित करने पर काम कर रही हैं और हाल ही में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने कृषि क्षेत्र को प्राथमिकता देने के लिए चीन से साझेदारी बढ़ाने की बात भी कही है.
हालांकि चीनी किस्म के बीज भारतीय बीजों का स्वाद में मुकाबला नहीं करते हैं, लेकिन आर्थिक फायदे और अच्छी उपज क्षमता के कारण कुछ ही समय में भारतीय बीजों की मांग सामान्य तौर से खत्म हो जाएगी. कई बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की तरह यह भी सरहद के दोनों तरफ काम करती हैं और इस व्यापारिक प्रतिबंध का फायदा उठा रही हैं. इन सब में सबसे ज्यादा नुकसान भारतीय और पाकिस्तानी किसानों और बीज उत्पादकों को हो रहा है.
आम दिनों जैसा व्यापार
दोनों देशों के मीडिया द्वारा नफरत की लहर चलाई जा रही है. लेकिन सच्चाई शायद कुछ और ही है. इस दौरान भी भारत और पाकिस्तान एक दूसरे के नागरिकों को अपने यहां आने-जाने के लिए वीजा दे रहे हैं. दोनों ही सरकारें राजनीतिक मतभेदों को मानती हैं. लेकिन व्यावहारिक रुख भी इख्तियार किए हुए हैं. दोनों ही यह बात समझते हैं कि लोगों और व्यापार पर पूरी तर रोक नहीं लगाई जा सकती क्योंकि दोनों देश एक दूसरे के मोस्ट फेवर्ड नेशन (एमएफएन) हैं. इस शब्दावली का प्रयोग मोदी सरकार ने भी किया है.
जरूरी सामान होने को कारण मानवीय आधार पर भारत, पाकिस्तान को दवाएं बेच रहा है. इसमें बीजों को अलग क्यों रखा जाए? इंडियन एसेन्शियल कमॉडिटीज एक्ट, कई तरह के बीजों को महत्वपूर्ण श्रेणी में रखता है. इसके साथ ही इन बीजों का इस्तेमाल पाकिस्तान के गरीब किसानों द्वारा किया जाता है. इन किसानों को उम्दा किस्म के बीज मुहैया करा कर भारत, पाकिस्तान में भुखमरी और कुपोषण के खिलाफ लड़ाई में अहम भूमिका निभा सकता है. भारत, पाकिस्तानी बीजों की उर्वरक क्षमता का परीक्षण करवाने के लिए भी काम कर सकता है, क्योंकि सार्क देशों में से भारत के पास इस क्षेत्र में सबसे आधुनिक तकनीक है. इस तरह भारतीय कृषि क्षेत्र में रोजगार के अवसर भी पैदा किए जा सकते हैं क्योंकि पाकिस्तान की मदद करने के लिए भारतीय वैज्ञानिकों और तकनीकी कर्मियों की जरूरत पड़ेगी. मौजूदा समय में भारतीय बीजों को पाकिस्तान, अफगानिस्तान और नेपाल में काफी पसंद किया जाता है. दोनों ही देशों में राजनीति से अलग मजबूत व्यापार प्रणाली को बनाने में भारत बड़ी भूमिका निभा सकता है.
आज के समय में भारत और पाकिस्तान के बीज उत्पादकों को व्यापार करने के लिए दूसरों देशों में मिलना पड़ता है या किसी बिचौलिये का इस्तेमाल करना पड़ता है. इस कारण दोनों देशों के किसानों को अतिरिक्त पैसे खर्च करने पड़ते हैं. इन हालातों के कारण दोनों तरफ के किसानों की आर्थिक और संसाधनों की बढ़त को नुकसान पहुंचता है?
हमें ध्यान रखना चाहिए कि दोनों देशों के राजनीतिक विवाद करीब 70 साल पुराने हैं, इसके बावजूद हमारा व्यापारिक और वाणिज्य इतिहास सदियों पुराना है. राजस्थान, पंजाब आदि के लोग पाकिस्तान से दशकों से सामानों की खरीद-फरोक्त करते आ रहे हैं और इनमें बीज भी शामिल हैं. मौजूदा राजनीतिक सीमाएं इन इलाकों की इस आर्थिक निर्भरता को नजरअंदाज करती है. अब समय आ गया है कि दोनों देश अपने नागरिकों की भलाई के लिए स्थिति को महाद्वीप के नजरिये से देखें. हमें यूरोप से सीख लेने की जरूरत है, जहां, ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी इतिहास में एक दूसरे से लड़ते रहे हैं, लेकिन मौजूदा समय में आर्थिक जरूरतों के चलते एक दूसरे के साझेदार हैं. व्यापार और शांति जंग से ज्यादा व्यावहारिक होती है और इसलिए व्यापारिक प्रतिबंधों की उम्र भी कम होती है. राजनीतिक रसाकस्सी के खत्म होने के बाद बीज व्यापार दोबारा शुरू हो जाएगा. हमें उम्मीद करनी चाहिए कि दोनों देशों की सरकारें हालातों को सामान्य करने की तरफ तेजी से काम करेंगी और बीज व्यापार को प्राथमिकता देने के साथ आने वाले समय में भी बीजों को किसी तरह के प्रतिबंधों से बाहर रखेंगी. मोदी ओर इमरान सरकार के लिए अपने किसानों की भलाई के लिए काम कर भारत-पाक रिश्तों को नई दिशा देने का यह एक अनोखा मौका है.
(लेखक - इंद्र शेखर, प्रोग्राम डायरेक्टर, नेशनल सीड एसोसिएशन ऑफ इंडिया)