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काबुल पहुंचे विदेश सचिव हर्षवर्धन शृंगला ने राष्ट्रपति अशरफ गनी से मुलाकात की

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Published : Feb 28, 2020, 9:04 PM IST

Updated : Mar 2, 2020, 9:48 PM IST

विदेश सचिव हर्षवर्धन शृंगला ने शुक्रवार को अफगानिस्तान के कार्यवाहक विदेश मंत्री हारून चाखनसुरी से बातचीत की. इस दौरान उन्हें शांति समझौते को लेकर भारत के नजरिए के साथ ही उसके चहुंमुखी विकास को लेकर उसकी प्रतिबद्धता की भी जानकारी दी.

अशरफ गनी से हर्षवर्धन श्रृंगला
अशरफ गनी से हर्षवर्धन श्रृंगला

नई दिल्ली : अमेरिका और तालिबान के बीच शांति समझौते पर हस्ताक्षर से एक दिन पहले भारत के विदेश सचिव हर्षवर्धन शृंगला शुक्रवार को काबुल पहुंचे और शांतिपूर्ण व स्थिर अफगानिस्तान के लिए भारत का निर्बाध समर्थन व्यक्त किया.

इस दौरान हर्षवर्धन शृंगला ने आज अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी से मुलाकात की और पीएम नरेंद्र मोदी का अभिनंदन पत्र सौंपा. वहीं, राष्ट्रपति गनी ने अफगानिस्तान में लोकतंत्र और संवैधानिक व्यवस्था के लिए भारत के लगातार समर्थन की सराहना की.

इससे पहले विदेश सचिव ने अफगानिस्तान के कार्यवाहक विदेश मंत्री हारून चाखनसुरी से बातचीत की और इस दौरान उन्हें शांति समझौते को लेकर भारत के नजरिए के साथ ही उसके चहुंमुखी विकास को लेकर उसकी प्रतिबद्धता की भी जानकारी दी.

विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रवीश कुमार ने कहा कि शृंगला और हारून ने द्विपक्षीय रणनीतिक साझेदारी की समीक्षा की और सकारात्मक रूप से गतिविधियों का आकलन किया.

दोहा में शनिवार को अमेरिका और तालिबान के बीच एक समझौते पर हस्ताक्षर होने हैं, जिससे इस देश में तैनाती के करीब 18 साल बाद अमेरिकी सैनिकों की वापसी का रास्ता साफ होगा.

कुमार ने ट्वीट किया, 'विदेश सचिव ने सतत शांति, सुरक्षा और विकास की अफगानिस्तान के लोगों की कोशिशों में भारत का पूर्ण समर्थन व्यक्त किया.'

अफगानिस्तान में शांति और सुलह प्रक्रिया का भारत एक अहम पक्षकार है.

कतर में भारत के राजदूत पी कुमारन उस समारोह में हिस्सा लेंगे, जिसमें अमेरिका और तालिबान शांति समझौते पर दस्तखत करेंगे.

यह पहला मौका होगा जब भारत तालिबान से जुड़े किसी मामले में आधिकारिक तौर पर शामिल होगा.

पढ़ें- अमेरिका-तालिबान समझौते पर मंडरा रहे अनिश्चितता के बादल

एक महत्वपूर्ण कदम के तहत भारत ने मास्को में नवंबर 2018 में हुई अफगान शांति प्रक्रिया में 'गैर आधिकारिक' क्षमता में दो पूर्व राजनयिकों को भेजा था.

इस सम्मेलन का आयोजन रूस द्वारा किया गया था, जिसमें तालिबान का उच्च स्तरीय प्रतिनिधिमंडल, अफगानिस्तान, अमेरिका, पाकिस्तान और चीन समेत समेत कई अन्य देशों के प्रतिनिधि भी शामिल हुए थे.

शांति समझौते से पहले भारत ने अमेरिका को यह बता दिया है कि वह पाकिस्तान पर उसकी जमीन से चल रहे आतंकी नेटवर्कों को बंद करने के लिये दबाव डालता रहे यद्यपि अफगानिस्तान में शांति के लिये उसका सहयोग महत्वपूर्ण है.

नई दिल्ली : अमेरिका और तालिबान के बीच शांति समझौते पर हस्ताक्षर से एक दिन पहले भारत के विदेश सचिव हर्षवर्धन शृंगला शुक्रवार को काबुल पहुंचे और शांतिपूर्ण व स्थिर अफगानिस्तान के लिए भारत का निर्बाध समर्थन व्यक्त किया.

इस दौरान हर्षवर्धन शृंगला ने आज अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी से मुलाकात की और पीएम नरेंद्र मोदी का अभिनंदन पत्र सौंपा. वहीं, राष्ट्रपति गनी ने अफगानिस्तान में लोकतंत्र और संवैधानिक व्यवस्था के लिए भारत के लगातार समर्थन की सराहना की.

इससे पहले विदेश सचिव ने अफगानिस्तान के कार्यवाहक विदेश मंत्री हारून चाखनसुरी से बातचीत की और इस दौरान उन्हें शांति समझौते को लेकर भारत के नजरिए के साथ ही उसके चहुंमुखी विकास को लेकर उसकी प्रतिबद्धता की भी जानकारी दी.

विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रवीश कुमार ने कहा कि शृंगला और हारून ने द्विपक्षीय रणनीतिक साझेदारी की समीक्षा की और सकारात्मक रूप से गतिविधियों का आकलन किया.

दोहा में शनिवार को अमेरिका और तालिबान के बीच एक समझौते पर हस्ताक्षर होने हैं, जिससे इस देश में तैनाती के करीब 18 साल बाद अमेरिकी सैनिकों की वापसी का रास्ता साफ होगा.

कुमार ने ट्वीट किया, 'विदेश सचिव ने सतत शांति, सुरक्षा और विकास की अफगानिस्तान के लोगों की कोशिशों में भारत का पूर्ण समर्थन व्यक्त किया.'

अफगानिस्तान में शांति और सुलह प्रक्रिया का भारत एक अहम पक्षकार है.

कतर में भारत के राजदूत पी कुमारन उस समारोह में हिस्सा लेंगे, जिसमें अमेरिका और तालिबान शांति समझौते पर दस्तखत करेंगे.

यह पहला मौका होगा जब भारत तालिबान से जुड़े किसी मामले में आधिकारिक तौर पर शामिल होगा.

पढ़ें- अमेरिका-तालिबान समझौते पर मंडरा रहे अनिश्चितता के बादल

एक महत्वपूर्ण कदम के तहत भारत ने मास्को में नवंबर 2018 में हुई अफगान शांति प्रक्रिया में 'गैर आधिकारिक' क्षमता में दो पूर्व राजनयिकों को भेजा था.

इस सम्मेलन का आयोजन रूस द्वारा किया गया था, जिसमें तालिबान का उच्च स्तरीय प्रतिनिधिमंडल, अफगानिस्तान, अमेरिका, पाकिस्तान और चीन समेत समेत कई अन्य देशों के प्रतिनिधि भी शामिल हुए थे.

शांति समझौते से पहले भारत ने अमेरिका को यह बता दिया है कि वह पाकिस्तान पर उसकी जमीन से चल रहे आतंकी नेटवर्कों को बंद करने के लिये दबाव डालता रहे यद्यपि अफगानिस्तान में शांति के लिये उसका सहयोग महत्वपूर्ण है.

Last Updated : Mar 2, 2020, 9:48 PM IST
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