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कहीं लद्दाख के बहाने अरुणाचल तो नहीं चीन का असली निशाना ?

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Published : Oct 3, 2020, 8:05 PM IST

पूर्वी लद्दाख में बढ़ते सीमा विवाद के बाद रिपोर्ट है कि अरुणाचल के करीब चीन लामबंदी कर रहा है. पीएलए की तैनाती में 77 समूह सेना और सीमा रक्षा रेजीमेंटों की संयुक्त सेना ब्रिगेड शामिल है. पढ़ें ईटीवी भारत के वरिष्ठ संवाददाता संजीब कुमार बरुआ की रिपोर्ट-

Border dispute
सीमा विवाद

नई दिल्ली : लद्दाख में भारत-चीन टकराव की स्थिति बनी हुई है. इसी बीच चीन ने मैकमोहन लाइन को खारिज करते हुए अरुणाचल प्रदेश पर एक बार फिर दावा जता दिया है. ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि क्या लद्दाख के बहाने चीन का असली निशाना अरुणाचल प्रदेश है. अरुणाचल प्रदेश से मात्र 16 किलोमीटर दूर चीन का निंगची (लिंझी भी कहा जाता है) शहर है. यहां चीनी पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) का सैन्य स्टेशन भी है. अरुणाचल में टुटिंग अंतिम भारतीय सीमा चौकी है. इससे मात्र 16 किलोमीटर दूर निंगची और ब्याई में चीन की 52वीं माउंटेन मोटराइज्ड इन्फैंट्री ब्रिगेड और 53वीं माउंटेन मोटराइज्ड इन्फैंट्री ब्रिगेड तैनात हैं. भारत-चीन के बीच अप्रैल-मई से पूर्वी लद्दाख में बढ़ते सीमा विवाद के बाद रिपोर्ट है कि अरुणाचल के करीब चीन बहुत बड़ी लामबंदी में लगा हुआ है. पीएलए की तैनाती में 77 समूह सेना और सीमा रक्षा रेजीमेंटों की संयुक्त सेना ब्रिगेड शामिल हैं.

मैकमोहन लाइन को नहीं मानता चीन

अभी चीन भले ही पूर्वी लद्दाख के क्षेत्र पर केंद्रित है, लेकिन वह भारत की पूरी सीमा पर गतिविधि बढ़ा सकता है. सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश में भारत का सैन्य बुनियादी ढांचा चीन के मुकाबले कमजोर है. एलएसी (पूर्वी लद्दाख वाला क्षेत्र) के विपरीत मैकमोहन लाइन (अरुणाचल प्रदेश वाला क्षेत्र) खुला और बिना सुरक्षा वाला इलाका है. भारत की सीमा तक पहुंच भी अच्छी नहीं है. हाल ही में चीनी विदेश मंत्रालय के एक प्रवक्ता ने वर्ष 1959 के आधार पर सीमावर्ती क्षेत्रों में भारत के सैन्य ढांचे के निर्माण पर आपत्ति जताई थी और अरुणाचल प्रदेश पर दावा जताया था.

कूटनीतिक और सैन्य वार्ता को एक झटके के साथ नकार दिया

वर्ष 1959 में तत्कालीन चीनी पीएम चाउ एन-लाई ने अपने भारतीय समकक्ष जवाहर लाल नेहरू को पत्र लिखकर सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश पर दावा किया था, इसे नेहरू ने खारिज कर दिया था. एक बार फिर चीन के इस दावे ने 1959 के बाद की सभी बातचीत और संधियों में चल रही कूटनीतिक और सैन्य वार्ता को एक झटके के साथ नकार दिया है.

मैकमोहन लाइन के करीब चीन के सैन्य ठिकाने

मैकमोहन लाइन के करीब चीन के सैन्य ठिकाने और लॉन्च पैड हैं. इससे अरुणाचल प्रदेश तक पहुंचने में पीएलए को परिचालन और सामरिक दृष्टिकोण से तत्कालिक लाभ है. 1962 में चीनी सेना मुख्य रूप से अरुणाचल में तवांग और वालोंग से भारत में आगे बढ़ी थी, लेकिन अब पूर्व से पश्चिम तक खतरा बढ़ गया है. चीन ने अरुणाचल की सीमाओं से लगते ल्हासा-युन्नान राजमार्ग बना लिया है और मैकमोहन लाइन को अपनी तरफ सड़क से जोड़ने के कारण अरुणाचल में वह कई और मोर्चों को खोल सकता है.

अमेरिकी थिंक टैंक ने चेताया

अमेरिकी थिंक टैंक स्ट्रैटफोर के अनुसार पीएलए ने 10 ​​वायु सेना के स्टेशन सिक्किम से अरुणाचल के करीब बना लिए हैं. 2017 में डोकलाम संकट के दौरान भारतीय सेना और पीएलए 70 दिनों से अधिक समय तक आंख-मिचौली की गतिरोध की स्थिति में थे. इसके बाद चीन ने तेजी से इस क्षेत्र में काम किया. निंगची में ही तीन पीएलए के वायु सेना स्टेशनों सहित सात हवाई ठिकाने, हेलीपोर्ट, वायु रक्षा और इलेक्ट्रॉनिक युद्धक स्टेशन हैं.

भारत के लिए चीन कभी भी खड़ा कर सकता है संकट

स्ट्रैटफोर की रिपोर्ट में कहा गया है कि अतिरिक्त हवाई अड्डों, रनवे और हवाई रक्षा साइटों से चीन को भविष्य के संघर्षों में विवादित क्षेत्रों पर हवाई श्रेष्ठता हासिल करने में मदद मिलेगी. साथ ही जमीनी सेना को भी इसका फायदा होगा. चीन अरुणाचल प्रदेश को तिब्बत का हिस्सा मानता है. दिलचस्प बात यह है कि 2017 के डोकलाम संकट के बाद चीन ने डोकलाम क्षेत्र के पास अपना सैन्य ढांचा खड़ा कर दिया है. डोकलाम पूर्वोत्तर के भारतीय राज्यों को मुख्य भूमि से जोड़ता है. ऐसे में चीन कभी भी भारत के खिलाफ संकट खड़ा कर सकता है.

नई दिल्ली : लद्दाख में भारत-चीन टकराव की स्थिति बनी हुई है. इसी बीच चीन ने मैकमोहन लाइन को खारिज करते हुए अरुणाचल प्रदेश पर एक बार फिर दावा जता दिया है. ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि क्या लद्दाख के बहाने चीन का असली निशाना अरुणाचल प्रदेश है. अरुणाचल प्रदेश से मात्र 16 किलोमीटर दूर चीन का निंगची (लिंझी भी कहा जाता है) शहर है. यहां चीनी पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) का सैन्य स्टेशन भी है. अरुणाचल में टुटिंग अंतिम भारतीय सीमा चौकी है. इससे मात्र 16 किलोमीटर दूर निंगची और ब्याई में चीन की 52वीं माउंटेन मोटराइज्ड इन्फैंट्री ब्रिगेड और 53वीं माउंटेन मोटराइज्ड इन्फैंट्री ब्रिगेड तैनात हैं. भारत-चीन के बीच अप्रैल-मई से पूर्वी लद्दाख में बढ़ते सीमा विवाद के बाद रिपोर्ट है कि अरुणाचल के करीब चीन बहुत बड़ी लामबंदी में लगा हुआ है. पीएलए की तैनाती में 77 समूह सेना और सीमा रक्षा रेजीमेंटों की संयुक्त सेना ब्रिगेड शामिल हैं.

मैकमोहन लाइन को नहीं मानता चीन

अभी चीन भले ही पूर्वी लद्दाख के क्षेत्र पर केंद्रित है, लेकिन वह भारत की पूरी सीमा पर गतिविधि बढ़ा सकता है. सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश में भारत का सैन्य बुनियादी ढांचा चीन के मुकाबले कमजोर है. एलएसी (पूर्वी लद्दाख वाला क्षेत्र) के विपरीत मैकमोहन लाइन (अरुणाचल प्रदेश वाला क्षेत्र) खुला और बिना सुरक्षा वाला इलाका है. भारत की सीमा तक पहुंच भी अच्छी नहीं है. हाल ही में चीनी विदेश मंत्रालय के एक प्रवक्ता ने वर्ष 1959 के आधार पर सीमावर्ती क्षेत्रों में भारत के सैन्य ढांचे के निर्माण पर आपत्ति जताई थी और अरुणाचल प्रदेश पर दावा जताया था.

कूटनीतिक और सैन्य वार्ता को एक झटके के साथ नकार दिया

वर्ष 1959 में तत्कालीन चीनी पीएम चाउ एन-लाई ने अपने भारतीय समकक्ष जवाहर लाल नेहरू को पत्र लिखकर सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश पर दावा किया था, इसे नेहरू ने खारिज कर दिया था. एक बार फिर चीन के इस दावे ने 1959 के बाद की सभी बातचीत और संधियों में चल रही कूटनीतिक और सैन्य वार्ता को एक झटके के साथ नकार दिया है.

मैकमोहन लाइन के करीब चीन के सैन्य ठिकाने

मैकमोहन लाइन के करीब चीन के सैन्य ठिकाने और लॉन्च पैड हैं. इससे अरुणाचल प्रदेश तक पहुंचने में पीएलए को परिचालन और सामरिक दृष्टिकोण से तत्कालिक लाभ है. 1962 में चीनी सेना मुख्य रूप से अरुणाचल में तवांग और वालोंग से भारत में आगे बढ़ी थी, लेकिन अब पूर्व से पश्चिम तक खतरा बढ़ गया है. चीन ने अरुणाचल की सीमाओं से लगते ल्हासा-युन्नान राजमार्ग बना लिया है और मैकमोहन लाइन को अपनी तरफ सड़क से जोड़ने के कारण अरुणाचल में वह कई और मोर्चों को खोल सकता है.

अमेरिकी थिंक टैंक ने चेताया

अमेरिकी थिंक टैंक स्ट्रैटफोर के अनुसार पीएलए ने 10 ​​वायु सेना के स्टेशन सिक्किम से अरुणाचल के करीब बना लिए हैं. 2017 में डोकलाम संकट के दौरान भारतीय सेना और पीएलए 70 दिनों से अधिक समय तक आंख-मिचौली की गतिरोध की स्थिति में थे. इसके बाद चीन ने तेजी से इस क्षेत्र में काम किया. निंगची में ही तीन पीएलए के वायु सेना स्टेशनों सहित सात हवाई ठिकाने, हेलीपोर्ट, वायु रक्षा और इलेक्ट्रॉनिक युद्धक स्टेशन हैं.

भारत के लिए चीन कभी भी खड़ा कर सकता है संकट

स्ट्रैटफोर की रिपोर्ट में कहा गया है कि अतिरिक्त हवाई अड्डों, रनवे और हवाई रक्षा साइटों से चीन को भविष्य के संघर्षों में विवादित क्षेत्रों पर हवाई श्रेष्ठता हासिल करने में मदद मिलेगी. साथ ही जमीनी सेना को भी इसका फायदा होगा. चीन अरुणाचल प्रदेश को तिब्बत का हिस्सा मानता है. दिलचस्प बात यह है कि 2017 के डोकलाम संकट के बाद चीन ने डोकलाम क्षेत्र के पास अपना सैन्य ढांचा खड़ा कर दिया है. डोकलाम पूर्वोत्तर के भारतीय राज्यों को मुख्य भूमि से जोड़ता है. ऐसे में चीन कभी भी भारत के खिलाफ संकट खड़ा कर सकता है.

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