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अमेरिकी अदालत ने ट्रंप प्रशासन द्वारा प्रस्तावित दो एच-1बी नियमों पर रोक लगाई

अमेरिका की अदालत ने ट्रंप प्रशासन द्वारा प्रस्तावित दो एच-1बी नियमों पर रोक लगा दी है. यह हजारों भारतीय पेशेवरों के लिए राहत की खबर है. ट्रंप प्रशासन द्वारा प्रस्तावित नियम विदेशी कर्मचारियों की नियुक्ति में बाधा पैदा करते थे.

h1b visa rule of trump
प्रतीकात्मक फोटो
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Published : Dec 2, 2020, 8:55 PM IST

वॉशिंगटन : हजारों भारतीय पेशेवरों और शीर्ष अमेरिकी सूचना प्रौद्योगिकी कंपनियों को एक बड़ी राहत देते हुए एक अमेरिकी अदालत ने ट्रंप प्रशासन द्वारा प्रस्तावित दो एच-1बी नियमों पर रोक लगा दी है. ये प्रस्ताव विदेशी कर्मचारियों को नियुक्त करने की अमेरिकी कंपनियों की क्षमता को बाधित करते थे.

एच-1बी वीजा एक गैर आव्रजक वीजा है जो अमेरिकी कंपनियों को विशेष व्यवसाय, जिनमें सैद्धांतिक या तकनीकी विशेषज्ञता की जरूरत होती है, के लिये विदेशी कर्मचारियों को रखने की इजाजत देता है. अमेरिका प्रतिवर्ष 85 हजार एच-1बी वीजा जारी करता है. आमतौर पर ये तीन साल के लिये जारी होते हैं और इन्हें नवीकृत कराया जा सकता है. करीब 6 लाख एच-1बी वीजाधारकों में से अधिकतर भारत और चीन से हैं.

नॉर्दर्न डिस्ट्रिक ऑफ कैलीफोर्निया के जिला न्यायाधीश जैफरी व्हाइट ने मंगलवार को अपने 23 पन्नों के आदेश में ट्रंप प्रशासन की उस हालिया नीति पर रोक लगा दी, जिसके तहत रोजगार प्रदाता को एच-1बी वीजा पर विदेशी कामगारों को महत्वपूर्ण रूप से ज्यादा मजदूरी देनी पड़ती.

उन्होंने इसके अलावा एक अन्य नीति को भी दरकिनार किया, जो अमेरिकी टेक कंपनियों और अन्य रोजगार प्रदाताओं के लिये अहम माने जाने वाले एच-1बी वीजा की अर्हता को कम कर देती.

इस फैसले के बाद गृह सुरक्षा विभाग का रोजगार और अन्य मुद्दों पर सात दिसंबर से प्रभावी होने वाला नियम अब अमान्य हो गया है. मजदूरी पर श्रम विभाग का आठ अक्तूबर को प्रभावी हुआ नियम भी अब वैध नहीं है.

इस मामले में वाद यूएस चैंबर्स ऑफ कॉमर्स, बे एरिया काउंसिल और स्टैनफोर्ड समेत कुछ विश्वविद्यालयों और सिलिकॉन वैली की गूगल, फेसबुक व माइक्रोसॉफ्ट जैसी शीर्ष कंपनियों का प्रतिनिधित्व करने वाले कारोबारी निकायों की तरफ से दायर किया गया था.

वॉशिंगटन : हजारों भारतीय पेशेवरों और शीर्ष अमेरिकी सूचना प्रौद्योगिकी कंपनियों को एक बड़ी राहत देते हुए एक अमेरिकी अदालत ने ट्रंप प्रशासन द्वारा प्रस्तावित दो एच-1बी नियमों पर रोक लगा दी है. ये प्रस्ताव विदेशी कर्मचारियों को नियुक्त करने की अमेरिकी कंपनियों की क्षमता को बाधित करते थे.

एच-1बी वीजा एक गैर आव्रजक वीजा है जो अमेरिकी कंपनियों को विशेष व्यवसाय, जिनमें सैद्धांतिक या तकनीकी विशेषज्ञता की जरूरत होती है, के लिये विदेशी कर्मचारियों को रखने की इजाजत देता है. अमेरिका प्रतिवर्ष 85 हजार एच-1बी वीजा जारी करता है. आमतौर पर ये तीन साल के लिये जारी होते हैं और इन्हें नवीकृत कराया जा सकता है. करीब 6 लाख एच-1बी वीजाधारकों में से अधिकतर भारत और चीन से हैं.

नॉर्दर्न डिस्ट्रिक ऑफ कैलीफोर्निया के जिला न्यायाधीश जैफरी व्हाइट ने मंगलवार को अपने 23 पन्नों के आदेश में ट्रंप प्रशासन की उस हालिया नीति पर रोक लगा दी, जिसके तहत रोजगार प्रदाता को एच-1बी वीजा पर विदेशी कामगारों को महत्वपूर्ण रूप से ज्यादा मजदूरी देनी पड़ती.

उन्होंने इसके अलावा एक अन्य नीति को भी दरकिनार किया, जो अमेरिकी टेक कंपनियों और अन्य रोजगार प्रदाताओं के लिये अहम माने जाने वाले एच-1बी वीजा की अर्हता को कम कर देती.

इस फैसले के बाद गृह सुरक्षा विभाग का रोजगार और अन्य मुद्दों पर सात दिसंबर से प्रभावी होने वाला नियम अब अमान्य हो गया है. मजदूरी पर श्रम विभाग का आठ अक्तूबर को प्रभावी हुआ नियम भी अब वैध नहीं है.

इस मामले में वाद यूएस चैंबर्स ऑफ कॉमर्स, बे एरिया काउंसिल और स्टैनफोर्ड समेत कुछ विश्वविद्यालयों और सिलिकॉन वैली की गूगल, फेसबुक व माइक्रोसॉफ्ट जैसी शीर्ष कंपनियों का प्रतिनिधित्व करने वाले कारोबारी निकायों की तरफ से दायर किया गया था.

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