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तालिबान और पाकिस्तान की अंतरराष्ट्रीय बलों की वापसी में रुचि - पूर्व राजदूत हुसैन हक्कानी

पाकिस्तान और तालिबान की रुचि अफगानिस्तान से अंतरराष्ट्रीय बलों की वापसी में है. अमेरिका में पाकिस्तान के पूर्व राजदूत हुसैन हक्कानी ने कहा मैं बातचीत के नतीजों को लेकर बहुत आशान्वित नहीं हूं. अमेरिका ने सारी प्रमुख रियायतें सामने रख दी हैं. तालिबान जानता है कि अमेरिका अफगानिस्तान से निकलना चाहता है. वो इसे देख सकते हैं इसलिए विदेशी बलों की वापसी और उसके बाद यथास्थिति को लेकर बातचीत कर रहे है.

withdrawal of international forces
शांति समझौते
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Published : Sep 29, 2020, 1:35 PM IST

वॉशिंगटन : पाकिस्तान के एक पूर्व राजनयिक ने कहा कि शांति समझौते से ज्यादा पाकिस्तान और तालिबान की रुचि अफगानिस्तान से अंतरराष्ट्रीय बलों की वापसी में है और साथ ही चेतावनी दी कि दोहा में चल रही मौजूदा शांति वार्ता विफलता की तरफ बढ़ रही है.

अमेरिका में पाकिस्तान के पूर्व राजदूत हुसैन हक्कानी ने सोमवार को कहा मैं बातचीत के नतीजों को लेकर बहुत आशान्वित नहीं हूं. अमेरिका ने सारी प्रमुख रियायतें सामने रख दी हैं. तालिबान जानता है कि अमेरिका अफगानिस्तान से निकलना चाहता है. वो इसे देख सकते हैं इसलिए विदेशी बलों की वापसी और उसके बाद यथास्थिति को लेकर बातचीत कर रहे है. जब वह अफगानिस्तान पर उसके इस्लामी अमीर के तौर पर शासन करेंगे.

ब्रिटेन के हाउस ऑफ लॉर्ड्स की अंतरराष्ट्रीय संबंध एवं रक्षा समिति के समक्ष डिजिटल रूप से बयान देते हुए हक्कानी ने कहा कि यह अफगानिस्तान के बाकी लोगों को मंजूर नहीं होगा. तालिबान के साथ अमेरिका की बातचीत की तुलना वियतनाम युद्ध के बाद पेरिस शांति वार्ता से करते हुए उन्होंने कहा कि हेनरी किसिंगर ने कहा था कि वह अमेरिकी सैनिकों की वापसी और दक्षिण वियतनाम में अमेरिका के समर्थन वाली सरकार को गिराए जाने के बीच ठीक-ठाक अंतराल चाहते हैं.

उन्होंने कहा कि अफगानिस्तान की सरकार दक्षिण वियतनाम में अमेरिका के समर्थन वाली सरकार से ज्यादा मजबूत साबित हो सकती है और वह भारत समेत अन्य देशों की मदद से बहुपक्षीय अफगानिस्तान के लिए लड़ सकती है. उन्होंने कहा कि अमेरिकी बलों की वापसी अमेरिका की उस प्रवृत्ति का परिचायक है कि ज्यादा लंबे समय तक चलने वाले युद्ध में उसकी रुचि खत्म होने लगती है.

पढ़ें : जानिए ऐतिहासिक तालिबान-अफगान वार्ता के बारे में

हक्कानी ने कहा राष्ट्रपति (डोनाल्ड) ट्रंप परिणाम की परवाह किए बिना बलों की वापसी चाहते हैं अगर यह होता है तो पाकिस्तान के समर्थन से काबुल में तालिबान के आने की संभावना ज्यादा है. क्योंकि यह लगता नहीं कि अफगानिस्तान के लोगों को तालिबान की सत्ता में वापसी मंजूर होगी, ऐसे में एक बार फिर वहां गृहयुद्ध हो सकता है.

वॉशिंगटन : पाकिस्तान के एक पूर्व राजनयिक ने कहा कि शांति समझौते से ज्यादा पाकिस्तान और तालिबान की रुचि अफगानिस्तान से अंतरराष्ट्रीय बलों की वापसी में है और साथ ही चेतावनी दी कि दोहा में चल रही मौजूदा शांति वार्ता विफलता की तरफ बढ़ रही है.

अमेरिका में पाकिस्तान के पूर्व राजदूत हुसैन हक्कानी ने सोमवार को कहा मैं बातचीत के नतीजों को लेकर बहुत आशान्वित नहीं हूं. अमेरिका ने सारी प्रमुख रियायतें सामने रख दी हैं. तालिबान जानता है कि अमेरिका अफगानिस्तान से निकलना चाहता है. वो इसे देख सकते हैं इसलिए विदेशी बलों की वापसी और उसके बाद यथास्थिति को लेकर बातचीत कर रहे है. जब वह अफगानिस्तान पर उसके इस्लामी अमीर के तौर पर शासन करेंगे.

ब्रिटेन के हाउस ऑफ लॉर्ड्स की अंतरराष्ट्रीय संबंध एवं रक्षा समिति के समक्ष डिजिटल रूप से बयान देते हुए हक्कानी ने कहा कि यह अफगानिस्तान के बाकी लोगों को मंजूर नहीं होगा. तालिबान के साथ अमेरिका की बातचीत की तुलना वियतनाम युद्ध के बाद पेरिस शांति वार्ता से करते हुए उन्होंने कहा कि हेनरी किसिंगर ने कहा था कि वह अमेरिकी सैनिकों की वापसी और दक्षिण वियतनाम में अमेरिका के समर्थन वाली सरकार को गिराए जाने के बीच ठीक-ठाक अंतराल चाहते हैं.

उन्होंने कहा कि अफगानिस्तान की सरकार दक्षिण वियतनाम में अमेरिका के समर्थन वाली सरकार से ज्यादा मजबूत साबित हो सकती है और वह भारत समेत अन्य देशों की मदद से बहुपक्षीय अफगानिस्तान के लिए लड़ सकती है. उन्होंने कहा कि अमेरिकी बलों की वापसी अमेरिका की उस प्रवृत्ति का परिचायक है कि ज्यादा लंबे समय तक चलने वाले युद्ध में उसकी रुचि खत्म होने लगती है.

पढ़ें : जानिए ऐतिहासिक तालिबान-अफगान वार्ता के बारे में

हक्कानी ने कहा राष्ट्रपति (डोनाल्ड) ट्रंप परिणाम की परवाह किए बिना बलों की वापसी चाहते हैं अगर यह होता है तो पाकिस्तान के समर्थन से काबुल में तालिबान के आने की संभावना ज्यादा है. क्योंकि यह लगता नहीं कि अफगानिस्तान के लोगों को तालिबान की सत्ता में वापसी मंजूर होगी, ऐसे में एक बार फिर वहां गृहयुद्ध हो सकता है.

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