टोरंटो : कोविड रोधी फाइज़र या एक्सट्राजेनेका का टीका लगवाने वाले लोगों में उन लोगों की तुलना में एंटीबॉडी का स्तर अधिक है जो कोरोना वायरस से संक्रमित हुए हैं. 'साइंसटिफिक रिपोर्ट्स जर्नल' में प्रकाशित एक अध्ययन में सोमवार को यह जानकारी दी गई.
कनाडा में मॉन्ट्रियल विश्वविद्यालय के अनुसंधानकर्ताओं के नेतृत्व वाली एक टीम ने पाया कि ये एंटीबॉडी वायरस के 'डेल्टा वेरिएंट के खिलाफ भी असरदार हैं.
2020 में पीसीआर जांच में कोविड से संक्रमित पाए जाने के 14 से 21 दिन बाद कनाडा के 32 ऐसे वयस्कों को अध्ययन में शामिल किया गया जो अस्पताल में भर्ती नहीं हुए थे. यह वायरस का 'बीटा', 'डेल्टा'और 'गामा' स्वरूप सामने आने से पहले की बात है.
मॉन्ट्रियल विश्वविद्यालय के एक प्रोफेसर जीन-फ्रेंकोइस मैसन ने बताया कि जो कोई भी संक्रमित हुआ है, उसके शरीर में एंटीबॉडी बनी हैं लेकिन 50 साल से कम उम्र के लोगों की तुलना में बुजुर्गों में एंटीबॉडी अधिक बनी हैं.
मैसन ने कहा कि इसके अलावा संक्रमित होने के बाद 16 हफ्तों तक उनके रक्त में एंटीबॉडी रहीं. अनुसंधानकर्ताओं ने कहा कि वह शख्स जिसे कोविड के मध्यम लक्षण थे, उसमें टीकाकरण के बाद एंटीबॉडी का स्तर टीका न लगवाने वाले वायरस से संक्रमित हुए लोगों की तुलना में दोगुना था.
पढ़ें- कोविड की नई गोली से अस्पताल में भर्ती होने, मौत का जोखिम 90 प्रतिशत तक कम : फाइजर
अनुसंधानकर्ताओं के मुताबिक, उनकी एंटीबॉडी 'स्पाइक-एसीई -2 इंटरैक्शन' को रोकने में भी बेहतर है. मैसन ने कहा कि टीकाकरण उन लोगों को भी डेल्टा स्वरूप से सुरक्षा देता है जो पहले वायरस के मूल स्वरूप से संक्रमित हुए हैं.
(पीटीआई-भाषा)