वॉशिंगटन : जो बाइडेन ने अपनी आधी जिंदगी राजनीति में गुजार दी. इस बार पूर्व उपराष्ट्रपति का दशकों पुराना सपना पूरा होने जा रहा है. वे अमेरिका के 46वें राष्ट्रपति बनने जा रहे हैं. उन्होंने अपने सपने को अभूतपूर्व समय में सच कर दिखाया, जब देश वैश्विक महामारी, आर्थिक पतन और नागरिक अशांति से लड़ रहा है.
2020 में, राष्ट्रपति बनने के लिए यह बाइडेन का तीसरा प्रयास था. वे पहली बार 1988 में राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव में खड़े हुए, लेकिन साहित्यिक चोरी के आरोपों के बाद वे चुनाव नहीं लड़ पाए. वर्ष 2008 में उन्होंने दूसरी बार प्रयास किया, लेकिन जीत नहीं पाए.
78 वर्षीय बाइडेन ने लंबे समय तक सीनेटर और उपाध्यक्ष के रूप में अपनी सेवाएं दी. बावजूद इसके उनका राष्ट्रपति बनने का सफर आसान नहीं था. 2008 के चुनाव के बाद बराक ओबामा के कार्यकाल में वे उपराष्ट्रपति रहे.
अमेरिकी विश्वविद्यालय के राजनीतिक विज्ञान के प्रोफेसर लेनी स्टाइनहॉर्न बताते हैं कि आठ वर्षों के कार्यकाल के दौरान ओबामा और बाइडेन काफी करीब हो गए थे. जो बाइडेन राष्ट्रपति ओबामा के खास लोगों में से एक बन गए थे. उन्होंने बताया कि जब निर्णय लेने की आवश्यकता होती है, तो ओबामा, बाइडेन से परामर्श किया करते थे. उन्होंने ओबामा प्रशासन में कई प्रमुख निर्णय लेने में अहम भूमिका निभाई.
बाइडेन के राष्ट्रपति बनने की राह में कई राजनितिक बाधाएं और पारिवारिक समस्याएं आईं. बाइडेन पहली बार 1972 में 29 साल की उम्र में सीनेट के लिए चुने गए. बाइडेन की इस जीत के एक महीने बाद ही उनकी पत्नी और बेटी की एक सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो गई. इस घटना में बाइडेन के दोनों बेटे ब्यू और हंटर घायल हो गए थे. उन्हें अस्पताल में भर्ती करवाया गया था और यहां पर बाइडेन ने पहली बार सीनेटर के रूप में शपथ ली थी.
1988 फरवरी में राष्ट्रपति पद के लिए खड़े होने के बाद बाइडेन की दो ब्रेन एन्यूरिज्म (Brain Aneurysm) की सर्जरी हुई. 2015 मई में बाइडेन की बड़े बेटे ब्यू बाइडेन का मस्तिष्क कैंसर के चलते निधन हो गया. बेटे की मौत के बाद बाइडेन के राजनीतिक करियर जैसे रुक गया. लोगों के मन में सवाल थे की वे राजनीति में वापस आएंगे या नहीं.
पांच साल बाद, बाइडेन राजनीति में वापस लौटे. अपने डेमोक्रेटिक नेशनल कन्वेंशन भाषण के दौरान उन्होंने कहा, मुझे पता है कि कभी-कभी जीवन क्रूर और अनुचित हो सकता है. इन सब से मुझे आगे बढ़ने की सीख मिली है.
छह बार सीनेट के तौर पर चुने जाने के बाद, बाइडेन ने सीनेट न्यायपालिका और विदेश संबंध समितियों की अध्यक्षता की. इससे उनकी वैश्विक मामलों में व्यापक विशेषज्ञता विकसित हुई. जहां इन पदों को संभालते हुए उनमें गंभीरता आई, वहीं कुछ फैसलों के परिणामों के चलते उनकी आलोचना हुई, जैसे कि 1994 के क्राइम बिल को प्रायोजित करना और क्लेरेंस थॉमस के केस में सुप्रीम कोर्ट प्रक्रिया के दौरान यौन उत्पीड़न की पीड़िता को एक सर्व-पुरुष समिति के समक्ष पेश होने के आदेश देना शामिल था.
अपने मन की बात कहने के लिए बाइडेन ने सामान्य व्यक्तित्व और राजनीति के लिए अप्रत्याशित दृष्टिकोण रखा. हालांकि, इससे उन्हें कई बार परेशानियों का सामना करना पड़ा. इसको देखते हुए कुछ डेमोक्रेट्स ने कहा कि बाइडेन की फ्री स्टाइलिंग ट्रंप के खिलाफ इनकी जीत के लिए इस साल के राष्ट्रपति अभियान में विशिष्ट रूप से अनुकूल रही.
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तीसरी बार राष्ट्रपति पद की लड़ाई के लिए शुरू किए गए बाइडेन के अभियान शुरू होने से पहले ही विवादों से घिर गए. बाइडेन पर कई आरोप लगाए गए. जो बाइडेन ने इन आरोपों को खारिज कर दिया. इसके बाद उन्होंने दक्षिण कैरोलिना में शानदार जीत हालिस की.
फरवरी की शुरुआत तक, लोग यह सोच रहे थे कि बाइडेन का यह एक और असफल अभियान है. अगस्त में, बाइडेन ने प्राथमिक प्रक्रिया से एक औपचारिक प्रतिद्वंद्वी कैलिफोर्निया की कमला हैरिस से हाथ मिला लिया. इससे बाइडेन को और मजबूती मिली. बाइडेन ने हाल के महीनों में राष्ट्रीय चुनावों में लगातार बढ़त बनाए रखी. ट्रंप की लोकप्रियता देश भर में वैश्विक महामारी, आर्थिक अशांति और नागरिक अशांति से निपटने के कारण घटी है. हालांकि, बाइडेन अच्छी तरह से जानते हैं कि जीत इतनी आसानी से नहीं मिलेगी.
अगस्त में, बाइडेन ने भारतीय-अमेरिकी महिला, कैलिफोर्निया की सीनेटर कमला हैरिस को उपराष्ट्रपति के रूप में चुना. अधिकांश डेमोक्रेट्स ने उत्साह दिखाया जिसने चुनाव जीतने में मदद की.