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कोरोना महामारी के दौर में सबसे आगे काम करने वाली आशा वर्कर धरने पर क्यों हैं ? - नूंह आशा प्रदर्शन

पूरे हरियाणा में आशा वर्कर्स हड़ताल पर हैं. आशा वर्कर्स का कहना है कि सरकार डॉक्टरों को तो कोरोना इंश्योरेंस करा रही है, लेकिन जो फ्रंट पर खड़े होकर कोरोना से लड़ रही हैं, उन्हें सरकार पूछ तक नहीं रही है.

nuh asha workers protest for demands
आशा वर्कर्स प्रदर्शन नूंह
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Published : Oct 17, 2020, 10:59 PM IST

नई दिल्ली/नूंह: भारत गांवों का देश है. जहां देश की 70 फीसदी आबादी रहती है. इतनी बड़ी आबादी के लिए स्वास्थ्य सुविधा दे पाना किसी भी देश के लिए बेहद मुश्किल काम है, लेकिन आशा वर्कर्स ने इस काम को भी आसान बना दिया. पूरे देश के ग्रामीण क्षेत्र में लाल कपड़ों में महिलाएं एक आशा बनीं और नर्सिंग का पूरा जिम्मा संभाला. कोरोना महामारी के इस दौर में इनका महत्व और बढ़ गया है. आशा वर्कर्स ग्रामीण इलाकों में जान जोखिम में डाल कर सर्वे कर रही हैं, और इन सर्वे की रिपोर्ट स्वास्थ्य विभाग को भेज रही हैं.

कोरोना महामारी के दौर में सबसे आगे काम करने वाली आशा वर्कर धरने पर क्यों हैं ?

कैसे होती है आशा वर्कर्स की नियुक्ति ?

दरअसल आशा वर्कर्स की नियुक्त राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के द्वारा की जाती है. ये नियुक्ति ग्रामीण स्तर पर होती है. राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन लोगों की सेहत से जुड़ी तमाम जानकारियां और योजनाएं बनाता है और इन योजनाओं को ग्रामीण स्तर तक पहुंचाना आशा वर्कर्स का काम होता है. भले ही आशा वर्कर्स की नियुक्ति राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन द्वारा की जाती है, लेकिन केंद्र व राज्य सरकार दोनों ही आशा वर्करों को उनके कामकाज के हिसाब से भुगतान करती हैं.

हरियाणा में हड़ताल पर हैं आशा वर्कर्स

नूंह में नियुक्त एक आशा वर्कर्स के मुताबिक हरियाणा में करीब 20 हजार आशा वर्कर्स हैं. सभी आशा कोरोना के खिलाफ सरकार के कंधे से कंधा मिलाकर लड़ाई लड़ रही हैं. लेकिन सरकार उनकी मांगों को नहीं मान रही है. उन्होंने कहा कि सरकार उनसे काम तो करा रही है, लेकिन उन्हें सुरक्षा नहीं दे रही है. उन्होंने कहा कि सरकार की तरफ से आशा को कुछ भी मुहैया नहीं कराया जा रहा है.

18 हजार रुपये न्यूनतम वेतन की मांग

आशा वर्कर्स का कहना है कि आज चार हजार रुपये से ज्यादा रुपये एक मजदूर को भी मिल जाते हैं. उन्होंने कहा कि उन्हें कम से कम न्यूनतम वेतन यानी 18 हजार रुपए चाहिए. महिलाओं ने राज्य सरकार की बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ योजना पर भी निशाना साधते हुए कहा कि वह भी प्रदेश की बेटियां हैं. उनको आज वेतन की वजह से धरना प्रदर्शन करने को मजबूर होना पड़ रहा है, लेकिन सरकार का इस पर कोई ध्यान नहीं है.

वहीं इस संबंध में नूंह स्वास्थ्य विभाग के डिप्टी सिविल सर्जन डॉ बसंत दुबे ने बताया कि आशा वर्कर को 4000 रुपये वेतन राज्य सरकार से मिलता है. इसके अलावा नेशनल हेल्थ मिशन सहित अन्य योजनाओं द्वारा भी उन्हें पैसे दिए जाते हैं. उन्होंने बताया कि आशा वर्कर्स को केंद्र व राज्य सरकार दोनों ही उनके कामकाज के हिसाब से भुगतान करती हैं. कोई आशा वर्कर तो महीने में 20 हजार रुपये से भी अधिक कमा लेती है. कोरोना महामारी के दौरान आशा वर्कर न केवल गांव-गांव में सर्वे कर रही हैं, बल्कि घर-घर जाकर लोगों को जागरूक कर रही हैं. सरकार की तरफ से आशा वर्कर को 1000 मेहनताना मिलने की घोषणा की गई है.

माना जाता है कि आशा वर्कर्स स्वास्थ्य विभाग की योजनाओं को एकदम निचले स्तर तक पहुंचाने वाली वारियर्स होती हैं. उनके बिना किसी भी योजना को जमीन पर उतारना संभव नहीं है. ऐसे में इतने महत्वपुर्ण काम करने वाली आशा वर्कर्स की मांगों पर सरकार की चुप्पी निराश करने वाली है.

नई दिल्ली/नूंह: भारत गांवों का देश है. जहां देश की 70 फीसदी आबादी रहती है. इतनी बड़ी आबादी के लिए स्वास्थ्य सुविधा दे पाना किसी भी देश के लिए बेहद मुश्किल काम है, लेकिन आशा वर्कर्स ने इस काम को भी आसान बना दिया. पूरे देश के ग्रामीण क्षेत्र में लाल कपड़ों में महिलाएं एक आशा बनीं और नर्सिंग का पूरा जिम्मा संभाला. कोरोना महामारी के इस दौर में इनका महत्व और बढ़ गया है. आशा वर्कर्स ग्रामीण इलाकों में जान जोखिम में डाल कर सर्वे कर रही हैं, और इन सर्वे की रिपोर्ट स्वास्थ्य विभाग को भेज रही हैं.

कोरोना महामारी के दौर में सबसे आगे काम करने वाली आशा वर्कर धरने पर क्यों हैं ?

कैसे होती है आशा वर्कर्स की नियुक्ति ?

दरअसल आशा वर्कर्स की नियुक्त राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के द्वारा की जाती है. ये नियुक्ति ग्रामीण स्तर पर होती है. राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन लोगों की सेहत से जुड़ी तमाम जानकारियां और योजनाएं बनाता है और इन योजनाओं को ग्रामीण स्तर तक पहुंचाना आशा वर्कर्स का काम होता है. भले ही आशा वर्कर्स की नियुक्ति राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन द्वारा की जाती है, लेकिन केंद्र व राज्य सरकार दोनों ही आशा वर्करों को उनके कामकाज के हिसाब से भुगतान करती हैं.

हरियाणा में हड़ताल पर हैं आशा वर्कर्स

नूंह में नियुक्त एक आशा वर्कर्स के मुताबिक हरियाणा में करीब 20 हजार आशा वर्कर्स हैं. सभी आशा कोरोना के खिलाफ सरकार के कंधे से कंधा मिलाकर लड़ाई लड़ रही हैं. लेकिन सरकार उनकी मांगों को नहीं मान रही है. उन्होंने कहा कि सरकार उनसे काम तो करा रही है, लेकिन उन्हें सुरक्षा नहीं दे रही है. उन्होंने कहा कि सरकार की तरफ से आशा को कुछ भी मुहैया नहीं कराया जा रहा है.

18 हजार रुपये न्यूनतम वेतन की मांग

आशा वर्कर्स का कहना है कि आज चार हजार रुपये से ज्यादा रुपये एक मजदूर को भी मिल जाते हैं. उन्होंने कहा कि उन्हें कम से कम न्यूनतम वेतन यानी 18 हजार रुपए चाहिए. महिलाओं ने राज्य सरकार की बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ योजना पर भी निशाना साधते हुए कहा कि वह भी प्रदेश की बेटियां हैं. उनको आज वेतन की वजह से धरना प्रदर्शन करने को मजबूर होना पड़ रहा है, लेकिन सरकार का इस पर कोई ध्यान नहीं है.

वहीं इस संबंध में नूंह स्वास्थ्य विभाग के डिप्टी सिविल सर्जन डॉ बसंत दुबे ने बताया कि आशा वर्कर को 4000 रुपये वेतन राज्य सरकार से मिलता है. इसके अलावा नेशनल हेल्थ मिशन सहित अन्य योजनाओं द्वारा भी उन्हें पैसे दिए जाते हैं. उन्होंने बताया कि आशा वर्कर्स को केंद्र व राज्य सरकार दोनों ही उनके कामकाज के हिसाब से भुगतान करती हैं. कोई आशा वर्कर तो महीने में 20 हजार रुपये से भी अधिक कमा लेती है. कोरोना महामारी के दौरान आशा वर्कर न केवल गांव-गांव में सर्वे कर रही हैं, बल्कि घर-घर जाकर लोगों को जागरूक कर रही हैं. सरकार की तरफ से आशा वर्कर को 1000 मेहनताना मिलने की घोषणा की गई है.

माना जाता है कि आशा वर्कर्स स्वास्थ्य विभाग की योजनाओं को एकदम निचले स्तर तक पहुंचाने वाली वारियर्स होती हैं. उनके बिना किसी भी योजना को जमीन पर उतारना संभव नहीं है. ऐसे में इतने महत्वपुर्ण काम करने वाली आशा वर्कर्स की मांगों पर सरकार की चुप्पी निराश करने वाली है.

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