नई दिल्ली/गाजियाबाद: आर्थिक तंगी से जूझ रही एटलस साइकिल कंपनी की गाजियाबाद की फैक्ट्री पर ताला लग चुका है. आजादी के बाद साल 1951 से शुरू हुई साइकिल कंपनी के ताला लगने की खबर से कंपनी के कर्मचारियों के सामने परिवार को चलाने का संकट आकर खड़ा हो गया है.
एटलस साइकिल कंपनी की शुरूआत कैसे हुई और किस तरह ये कंपनी ऊंचाइयों के बाद बंद होने की कगार पर आ गई. आइए जानते हैं एटलस साइकिल के सफर की कहानी.
कैसे हुई साइकिल की शुरुआत
आजादी के बाद सन 1951 में एटलस साइकिल कंपनी की रफ्तार इतनी तेजी से बढ़ी. मानो आसमान की ऊंचाइयां कम पड़ गई हों. लेकिन धीरे धीरे ऐसा लगा मानो किसी ने पंख कतर दिए हों और फिर आया साल 2020 का लॉकडाउन.
जिसने कभी आसमान की ऊंचाइयों को छूने वाली एटलस साइकिल को जमीन पर चलने लायक भी नहीं छोड़ा. सोनीपत में साइकिल की सीट बनाने वाले रायबहादुर जानकीदास कपूर ने एटलस कंपनी को खड़ी किया था.
इसके बाद एटलस कंपनी ने लंबी उड़ान भरी. साल 1967 में जानकीदास कपूर चले गए. उनके तीन बेटों ने फैक्ट्री की कमान संभाल ली. मगर आज 2020 आते-आते फैक्ट्री बंद हो चुकी है.
कर्मचारियों की बैठक
एटलस साइकिल कंपनी के साथ करीब 1000 से ज्यादा कर्मचारियों का दर्द जुड़ा है. कंपनी के बंद होने से सभी कर्मचारी को अपने परिवार की चिंता सता रही है. कर्मचारी कहते हैं कि अब बच्चे कैसे पालेंगे. बताया जा रहा है कि सोमवार को कर्मचारियों की एक मीटिंग होनी है. जिसमें लंबी कानूनी लड़ाई का खाका कर्मचारी तैयार करने पर विचार किया जाएगा.
इस तरह बिखरे सपने
बताया जाता है कि कंपनी की कुछ नीतियों की वजह से धीरे-धीरे एटलस साइकिल के कारखाने बंद होते चले गए. देशभर में साहिबाबाद औद्योगिक क्षेत्र में एटलस का तीसरा और आखिरी कारखाना भी चंद रोज पहले बंद हो गया.
कंपनी पहले ही समय-समय पर अपने आर्थिक रूप से जूझने की खबरें भी देती रहती थी. लेकिन लॉकडाउन में कंपनी हमेशा के लिए लॉक हो जाएगी ये किसी ने नहीं सोचा था. देश को एक बड़े आर्थिक पैकेज की मदद खुद प्रधानमंत्री ने सौंपी थी.
देखना होगा कि सरकारी नीतियों में एटलस जैसी कंपनी को अपना खून और पसीना देकर आसमान की ऊंचाइयों तक लाने वाले कर्मचारियों के विषय में, उस पैकेज में से कोई मदद हो पाती है या नहीं.