नई दिल्ली/गाजियाबादः उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद की डासना जेल में पिछले 8 साल से दो कैदी बंद थे. इनके अच्छे व्यवहार को देखते हुए शासन ने इनको रिहा करने का फैसला भी लिया था. लेकिन रिहाई के लिए एक मुश्किल आ रही थी. दोनों कैदियों के पास जुर्माना अदा करने के लिए रुपये नहीं थे. इसलिए इनकी सजा बढ़ती जा रही थी.
ऐसे में एक सामाजिक संस्था मसीहा बनी और करीब 17 हजार का जुर्माना अदा किया. जिसके बाद स्वतंत्रता दिवस के मौके पर दोनों कैदी आजाद हो पाए. संस्था की मदद एक स्थानीय नागरिक ने भी की. इसी वजह से दोनों गरीब कैदियों को 15 अगस्त के मौके पर बाहर की दुनिया में दोबारा सांस लेने का मौका मिल रहा है.
संस्था और जेल के प्रयास से आए बाहर
कैदियों के नाम बंटी और बबलू हैं. दोनों पिछले 8 सालों से गाजियाबाद की डासना जेल में बंद थे. सजा काफी लंबी हुई थी, लेकिन शासन ने अच्छे व्यवहार को देखते हुए सजा माफ कर दी थी. जिस समय सजा दी गई थी, उस समय पर जुर्माना भी लगाया गया था. लेकिन जुर्माने की रकम अदा नहीं करने पर इनकी सजा को बढ़ा दिया गया था.
जेल प्रशासन ने भी इस बात को समझा. उन्होंने जेल के हित के लिए काम करने वाली भारत सेवा मिशन नाम की संस्था से संपर्क किया. संस्था के अध्यक्ष अशोक कंसल का कूलर का कारोबार है. जेल प्रशासन के आग्रह पर करीब 17 हजार का अर्थदंड संस्था ने अदा कर दिया. जिसके चलते दोनों कैदियों की रिहाई संभव हो पाई. संस्था के साथ-साथ सामाजिक व्यक्ति शकील अहमद ने भी इसमें योगदान किया.
कैदियों ने दिया धन्यवाद
बता दें कि यह संस्था पहले भी जेल में कैदियों के लिए सैनिटाइजेशन और मास्क की व्यवस्था करती रही है. दोनों कैदियों ने जेल प्रशासन और संस्था के अलावा सरकार का धन्यवाद किया है. दोनों जब जेल से बाहर आए तो उनके हाथ में तिरंगा था. तिरंगे को हाथ में लेकर उन्होंने नया और साफ सुथरा जीवन जीने का वादा जेल प्रशासन से किया है. दोनों ने दोबारा अपराध की दुनिया मे नही जाने कसम भी खाई है.