नई दिल्ली/गाजियाबादः देश अनलॉक की तरफ बढ़ रहा है और धीरे-धीरे जनजीवन भी वापस पटरी पर लौट रहा है. इसी बीच मजदूरों की जिंदगी अनलॉक हुई है कि नहीं, इसकी पड़ताल करने ईटीवी भारत की टीम ने गाजियाबाद के नासिर पुर फाटक स्तिथ लेबर चौक पहुंची. नासिर पुर फाटक पर हर रोज मजदूर दिहाड़ी की तलाश में इकट्ठा होते हैं.
बिजनौर जिले के रहने वाले दिहाड़ी मजदूर जगबीर दो वक्त की रोटी की तलाश में गाजियाबाद चले आए. उम्मीद थी कि यहां पर मजदूरी मिलेगी और वह अपनी और अपने परिवार का पेट आसानी से भर पाएंगे. जगबीर बताते हैं कि कोरोना काल में काम न के बराबर मिल रहा है. बमुश्किल तमाम महीने भर में हफ्ते भर काम लग पाता है. जगबीर सुबह 7 बजे यहां पहुंचे थे, लेकिन 11 बजे तक भी उनको दिहाड़ी नहीं मिल पाई.
'600 रुपये ही मिलते हैं'
महावीर बताते हैं कि वह चुनाई का काम करते हैं. आमतौर पर 700 रुपये की दिहाड़ी मिलती है. कोरोना काल में दिहाड़ी घटकर 600 रुपये रह गई है, लेकिन इन दिनों दिहाड़ी न के बराबर मिल रही है. बीते दो हफ्तों से तो बुरा हाल है. दिहाड़ी तक नहीं लग पाई है. आलम ये है कि भंडारों से पेट भरकर गुजारा कर रहे हैं.
कालू राज-मिस्त्री का काम करते हैं. कालू बताते हैं काम के हालात बहुत खराब है. महीने में दस दिन भी काम नहीं मिल पा रहा है. ठिये पर खड़े-खड़े दोपहर हो जाती है पर काम नहीं लगता. आखिर में मायूस होकर घर वापस लौटना पड़ता है. कोरोना के चलते लोग मजदूरों को घरों में ले जाने से बच रहे हैं.
हर सुबह मजदूर काम की तलाश में ठिये पर तो पहुंचे हैं, लेकिन काम न मिलने के कारण उन्हें मायूस होकर वापस घरों को लौटना पड़ता है. मजदूरों के सामने अपने और अपने परिवारों के लिए दो वक्त की रोटी का इंतजाम करना बड़ी चुनौती है.