नई दिल्ली/गाजियाबाद : दिल्ली-एनसीआर सहित पूरे देश में कोरोना संक्रमण कहर बरपा रहा है. उससे बचने के लिए इम्यूनिटी को स्ट्रॉन्ग करने की ओर ज्यादा ध्यान दिया जा रहा है. ऐसे में क्या रोजे छोड़कर इम्यूनिटी को स्ट्रॉन्ग किया जा सकता है.
दरअसल, इन दिनों मुस्लिम समुदाय का मुबारक महीना रमजान चल रहा है. जिसमें वह लगभग 14 से 15 घंटे भूखे रहकर रोजा रखते हैं. वहीं दूसरी ओर देश दुनिया में कोरोना का प्रकोप भी लगातार बढ़ता जा रहा है. ऐसे में कहा जा रहा है कि खाली पेट या भूखे रहने वाले लोगों को कोरोना जल्दी संक्रमित कर रहा है. जिसको लेकर रोजा रखने वाले लोग कशमकश में हैं कि वह कोरोना के संक्रमण को देखते हुए रोजा रखे य न रखे. आखिर कोरोना के प्रकोप के बीच मजबूरी में मुस्लिम समुदाय के लोग रोजा छोड़ सकते हैं या नहीं. इसी को जानने के लिए ईटीवी भारत ने मुफ्ती से बातचीत की.
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मर्ज के बढ़ने का अंदेशा है तो उस पर रोजा फर्ज नहीं रहता
ईटीवी भारत को मुफ्ती मजहर उल हक कासमी ने बताया कि कुरान शरीफ में जहां पर रोजे को का जिक्र किया गया है. वहां पर ही मर्ज (बीमारी) का जिक्र भी किया गया है. अगर किसी मर्ज के बढ़ने का अंदेशा है, तो उस इंसान पर रोजा फर्ज नहीं रहता है. लिहाजा रोजे की वजह से कोरोना संक्रमण होने का खतरा या अन्य कोई और बीमारी होने का खतरा है तो रोजा छोड़ने की इजाजत है.
बीमारी में छोड़ सकते हैं रोजा
मुफ्ती ने बताया कि रोजा किसी कद या बंदिश का नाम नहीं है. रोजा तो एक इबादत है. इसीलिए तंदुरुस्ती की हालत में रोजा रखा जाएगा. अगर डॉक्टर किसी शख्स को बीमारी के चलते रोजा रखने से मना करता है, तो वह शख्स रोजा छोड़ सकता है.
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कजा रख सकते हैं रोजा
मुफ्ती ने बताया कि अगर कोई इंसान मजबूरी में रोजे छोड़ देता है, तो वह आने वाले दिनों में तंदुरुस्त होकर कजा रोजे रख सकता है. अगर इंसान किसी बीमारी के चलते कभी भी रोजे नहीं रख पा रहा है, तो वह फिदिया दे सकता है. जिसकी कीमत ढाई किलो गेहूं के बराबर लगभग 35 रुपये है.