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किसान आंदोलन का पंचायत चुनाव पर कितना पड़ेगा असर? बता रहे हैं किसान

त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों के दौरान किसान आंदोलन को लेकर ग्रामीणों की मिली-जुली प्रतिक्रिया देखने को मिल रही है. कुछ ग्रामीणों का कहना है कि किसान आंदोलन से चुनाव प्रभावित होंगे तो कुछ ग्रामीणों का कहना है कि किसान आंदोलन से पंचायत चुनाव पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा.

पंचायत चुनाव पर किसान आंदोलन का असर?
पंचायत चुनाव पर किसान आंदोलन का असर?
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Published : Apr 12, 2021, 11:07 AM IST

नई दिल्ली/गाजियाबाद: त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों के दौरान किसान आंदोलन को लेकर ग्रामीणों की मिली जुली प्रतिक्रिया देखने को मिल रही है. कुछ ग्रामीणों का कहना है कि किसान आंदोलन से चुनाव प्रभावित होंगे तो कुछ ग्रामीणों का कहना है कि किसान आंदोलन से पंचायत चुनावों पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा.

पंचायत चुनाव पर किसान आंदोलन का असर?

15 अप्रैल को गाजियाबाद में होगी वोटिंग

गाजियाबाद में 15 अप्रैल को त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों के लिए वोटिंग होनी है. ऐसे में ग्रामीण क्षेत्रों में चुनावी सरगर्मी बढ़ी हुई है. वहीं दूसरी ओर कृषि कानूनों के विरोध में दिल्ली के विभिन्न बॉर्डरों पर किसान 4 महीने से अधिक समय से बैठे हुए हैं. जिनका दावा है कि त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में किसान आंदोलन का फर्क पड़ेगा. इसी को लेकर ईटीवी भारत ने मुरादनगर ब्लॉक के रावली गांव के ग्रामीणों से किसान आंदोलन और गांव के विकास को लेकर चर्चा की है.


'कृषि कानूनों का पंचायत चुनाव पर नहीं होगा असर'

लल्लू त्यागी ने बताया कि बीते 5 सालों में उनके गांव में सड़क, बिजली, पानी सहित प्रधान ने काफी विकास कार्य कराए हैं. ऐसे में उनके गांव में कृषि कानूनों का लेकर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है. वह सिर्फ अपने गांव का विकास चाहते हैं. इसके साथ ही ग्रामीण कुलदीप त्यागी का कहना है कि कृषि कानून सेंट्रल सरकार द्वारा लाए गए हैं. ऐसे में राज्य में या ग्रामीण क्षेत्रों में होने वाले त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में इनका कोई खास असर नहीं पड़ने वाला है.

ये भी पढ़ें- गाजियाबाद: दो दिवसीय बुक एक्सचेंज मेले का समापन, 2500 से ज्यादा अभिभावकों ने उठाया फायदा

'कृषि कानूनों का पड़ेगा पंचायत चुनावों पर असर'

ग्रामीण श्याम ने बताया कि उनके गांव में बीते 5 सालों में काफी विकास के कार्य हुए हैं. ऐसे में उनको कृषि कानूनों से कोई फर्क नहीं पड़ता है. वहीं दूसरी ओर ग्रामीण भूरे पहलवान का कहना है कि गांव में बीजेपी के जिला पंचायत सदस्यों के खिलाफ कृषि कानूनों की वजह से बहुत विरोध देखने को मिल रहा है. किसान और मजदूर बीजेपी के खिलाफ है. जिसका असर त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों में दिखाई देगा.

ये भी पढ़ें- गाजियाबाद: श्मशान घाट में अंतिम संस्कार के लिए शुरू हुआ टोकन सिस्टम



'बीजेपी को मिलेगा किसानों का समर्थन'

इस पूरे मामले को लेकर जब ईटीवी भारत में रावली गांव के पूर्व प्रधान और बीजेपी समर्थित वार्ड नंबर 7 से जिला पंचायत सदस्य पुष्पेंद्र प्रधान से की राय जानी तो उनका कहना है कि उन्होंने अपने गांव में विकास कार्य कराए हैं. जिसकी बदौलत वह एक बार फिर से चुनाव जीतेंगे. ऐसे में उनके चुनावों पर किसान आंदोलन का कोई फर्क नहीं पड़ेगा.

नई दिल्ली/गाजियाबाद: त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों के दौरान किसान आंदोलन को लेकर ग्रामीणों की मिली जुली प्रतिक्रिया देखने को मिल रही है. कुछ ग्रामीणों का कहना है कि किसान आंदोलन से चुनाव प्रभावित होंगे तो कुछ ग्रामीणों का कहना है कि किसान आंदोलन से पंचायत चुनावों पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा.

पंचायत चुनाव पर किसान आंदोलन का असर?

15 अप्रैल को गाजियाबाद में होगी वोटिंग

गाजियाबाद में 15 अप्रैल को त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों के लिए वोटिंग होनी है. ऐसे में ग्रामीण क्षेत्रों में चुनावी सरगर्मी बढ़ी हुई है. वहीं दूसरी ओर कृषि कानूनों के विरोध में दिल्ली के विभिन्न बॉर्डरों पर किसान 4 महीने से अधिक समय से बैठे हुए हैं. जिनका दावा है कि त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में किसान आंदोलन का फर्क पड़ेगा. इसी को लेकर ईटीवी भारत ने मुरादनगर ब्लॉक के रावली गांव के ग्रामीणों से किसान आंदोलन और गांव के विकास को लेकर चर्चा की है.


'कृषि कानूनों का पंचायत चुनाव पर नहीं होगा असर'

लल्लू त्यागी ने बताया कि बीते 5 सालों में उनके गांव में सड़क, बिजली, पानी सहित प्रधान ने काफी विकास कार्य कराए हैं. ऐसे में उनके गांव में कृषि कानूनों का लेकर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है. वह सिर्फ अपने गांव का विकास चाहते हैं. इसके साथ ही ग्रामीण कुलदीप त्यागी का कहना है कि कृषि कानून सेंट्रल सरकार द्वारा लाए गए हैं. ऐसे में राज्य में या ग्रामीण क्षेत्रों में होने वाले त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में इनका कोई खास असर नहीं पड़ने वाला है.

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'कृषि कानूनों का पड़ेगा पंचायत चुनावों पर असर'

ग्रामीण श्याम ने बताया कि उनके गांव में बीते 5 सालों में काफी विकास के कार्य हुए हैं. ऐसे में उनको कृषि कानूनों से कोई फर्क नहीं पड़ता है. वहीं दूसरी ओर ग्रामीण भूरे पहलवान का कहना है कि गांव में बीजेपी के जिला पंचायत सदस्यों के खिलाफ कृषि कानूनों की वजह से बहुत विरोध देखने को मिल रहा है. किसान और मजदूर बीजेपी के खिलाफ है. जिसका असर त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों में दिखाई देगा.

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'बीजेपी को मिलेगा किसानों का समर्थन'

इस पूरे मामले को लेकर जब ईटीवी भारत में रावली गांव के पूर्व प्रधान और बीजेपी समर्थित वार्ड नंबर 7 से जिला पंचायत सदस्य पुष्पेंद्र प्रधान से की राय जानी तो उनका कहना है कि उन्होंने अपने गांव में विकास कार्य कराए हैं. जिसकी बदौलत वह एक बार फिर से चुनाव जीतेंगे. ऐसे में उनके चुनावों पर किसान आंदोलन का कोई फर्क नहीं पड़ेगा.

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