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स्ट्रीट लाइट लगाने के नाम पर करीब 3.37 करोड़ लेकर फरार हुई कंपनी

गाजियाबाद के नगर निगम में एक बड़ा घोटाला. स्ट्रीट लाइट लगाने के नाम पर करीब 3.37 करोड़ रुपए लेकर व्हाइट प्लेकार्ड नाम की एक कंपनी हुई फरार.

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Published : Sep 7, 2019, 2:41 PM IST

गाजियाबाद नगर निगम etv bharat

नई दिल्ली/गाजियाबाद: दिल्ली से सटे गाजियाबाद के नगर निगम में एक बड़ा घोटाला निकल कर सामने आया है. सड़कों पर स्ट्रीट लाइट लगाने के नाम पर नगर निगम से करीब 3.37 करोड़ रुपये लेकर व्हाइट प्लेकार्ड टेक्नोलॉजी प्राइवेट लिमिटेड नाम की एक कंपनी गायब हो गई है.

हालांकि करीब 1 महीने पहले नगर निगम ने कंपनी को नोटिस भेजा था. लेकिन अभी तक कंपनी की तरफ से उसका कोई जवाब नहीं आया है.

ये है पूरा मामला

उत्तर प्रदेश सरकार ने वाइट प्लेकार्ड टेक्नोलॉजी प्राइवेट लिमिटेड को गाजियाबाद की सभी स्ट्रीट लाइटों को एलईडी लाइट में बदलने का ठेका दिया था. ठेके की शर्तों के अनुसार कंपनी को लगभग 50 हजार एलईडी लाइट लगानी थी.

कंपनी ने अभी तक केवल 35 हजार लाइटें लगाई है. जिनमें से करीब 3000 लाइटें कुछ दिन बाद ही खराब हो गई.

हैरानी की बात यह है कि काम पूरा नहीं करने के बावजूद कंपनी ने सरकार से 3.37 करोड़ रुपये की मांग की. जिसके बाद सरकार ने गाजियाबाद नगर निगम से काम की रिपोर्ट मांगी. अब नगर निगम आयुक्त दिनेश चंद्र ने प्रमुख सचिव को पत्र लिखकर कंपनी का अनुबंध रद्द कर कार्यवाही करने की मांग की है.

कई पार्षद कर चुके हैं इस मामले की शिकायत

बता दें कि इस घोटाले की जांच की मांग नगर निगम के कई पार्षद कर चुके हैं. इन सभी पार्षदों का एक स्वर में कहना है कि कंपनी ने अनुबंध की शर्तों के अनुसार काम नहीं किया है. इसलिए सरकार को कंपनी के भुगतान पर रोक लगानी चाहिए.

नई दिल्ली/गाजियाबाद: दिल्ली से सटे गाजियाबाद के नगर निगम में एक बड़ा घोटाला निकल कर सामने आया है. सड़कों पर स्ट्रीट लाइट लगाने के नाम पर नगर निगम से करीब 3.37 करोड़ रुपये लेकर व्हाइट प्लेकार्ड टेक्नोलॉजी प्राइवेट लिमिटेड नाम की एक कंपनी गायब हो गई है.

हालांकि करीब 1 महीने पहले नगर निगम ने कंपनी को नोटिस भेजा था. लेकिन अभी तक कंपनी की तरफ से उसका कोई जवाब नहीं आया है.

ये है पूरा मामला

उत्तर प्रदेश सरकार ने वाइट प्लेकार्ड टेक्नोलॉजी प्राइवेट लिमिटेड को गाजियाबाद की सभी स्ट्रीट लाइटों को एलईडी लाइट में बदलने का ठेका दिया था. ठेके की शर्तों के अनुसार कंपनी को लगभग 50 हजार एलईडी लाइट लगानी थी.

कंपनी ने अभी तक केवल 35 हजार लाइटें लगाई है. जिनमें से करीब 3000 लाइटें कुछ दिन बाद ही खराब हो गई.

हैरानी की बात यह है कि काम पूरा नहीं करने के बावजूद कंपनी ने सरकार से 3.37 करोड़ रुपये की मांग की. जिसके बाद सरकार ने गाजियाबाद नगर निगम से काम की रिपोर्ट मांगी. अब नगर निगम आयुक्त दिनेश चंद्र ने प्रमुख सचिव को पत्र लिखकर कंपनी का अनुबंध रद्द कर कार्यवाही करने की मांग की है.

कई पार्षद कर चुके हैं इस मामले की शिकायत

बता दें कि इस घोटाले की जांच की मांग नगर निगम के कई पार्षद कर चुके हैं. इन सभी पार्षदों का एक स्वर में कहना है कि कंपनी ने अनुबंध की शर्तों के अनुसार काम नहीं किया है. इसलिए सरकार को कंपनी के भुगतान पर रोक लगानी चाहिए.

Intro:गाजियाबाद : दिल्ली से सटे गाजियाबाद के नगर निगम में एक बड़ा घोटाला निकल कर सामने आया है. सड़कों पर स्ट्रीट लाइट लगाने के नाम पर गाजियाबाद नगर निगम से करीब 3.37 करोड़ रुपए लेकर व्हाइट प्लेकार्ड टेक्नोलॉजी प्राइवेट लिमिटेड नाम की एक कंपनी गायब हो गई है. हालांकि करीब 1 महीने पहले गाजियाबाद नगर निगम द्वारा कंपनी को नोटिस भेजा गया था. लेकिन अभी तक कंपनी की तरफ से उसका कोई जवाब नहीं दिया गया है.


Body:यह है पूरा मामला :
उत्तर प्रदेश सरकार ने वाइट प्लेकार्ड टेक्नोलॉजी प्राइवेट लिमिटेड को गाजियाबाद की सभी स्ट्रीट लाइटों को एलईडी लाइट में बदलने का ठेका दिया था. ठेके की शर्तों के अनुसार कंपनी को लगभग 50 हज़ार एलईडी लाइट लगानी थी. लेकिन हैरानी की बात यह है कि कंपनी ने अभी तक केवल 35 हज़ार लाइटें लगाई है. लेकिन इनमें से भी करीब 3000 लाइटें कुछ दिन बाद खराब हो गई.

हैरानी की बात यह है कि काम पूरा नहीं करने के बावजूद कंपनी ने सरकार से 3.37 करोड़ रुपय की मांग की. जिसके बाद सरकार ने गाजियाबाद नगर निगम से काम की रिपोर्ट मांगी. सरकार द्वारा काम की रिपोर्ट मांगे जाने के बाद अब नगर निगम आयुक्त दिनेश चंद्र ने प्रमुख सचिव को पत्र लिखकर कंपनी का अनुबंध रद्द कर कार्यवाही करने की मांग की है.


Conclusion:कई पार्षद कर चुके हैं इस मामले की शिकायत :
आपको बता दें कि एलईडी लाइट लगाने में हुए घोटाले की जांच की मांग नगर निगम के कई पार्षद कर चुके हैं. इन सभी पार्षदों का एक स्वर में कहना है कि कंपनी ने अनुबंध की शर्तों के अनुसार काम नहीं किया है. इसलिए सरकार को कंपनी के भुगतान पर रोक लगानी चाहिए.
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