नई दिल्ली: नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर, जिस डिस्पोजेबल ब्लैंकेट और बेडरोल योजना को यात्रियों की सहूलियत के लिए शुरू किया गया था. उसके लिए खरीदार नहीं मिल रहे हैं. आलम यह है कि लाखों की फुटफॉल वाले स्टेशन पर इनको खरीदने वाले 40 से 45 लोग ही हैं. योजना को शुरू हुए 1 महीने से ज्यादा हो गया है, लेकिन लोग आज भी नदारद हैं.
15 फरवरी को हुई थी शुरुआत
दरअसल, कोरोना के बाद रेलगाड़ियों में संक्रमण फैलने के डर से रेलवे ने एसी कोच में दिए जाने वाले ब्लैंकेट, पिलो आदि की सुविधा को बंद कर दिया था. इसके बाद लोगों की दिक्कतें शुरू हुईं. उन्हें घर से ही इंतजाम करके जाना पड़ता था. बीते 15 फरवरी को उत्तर रेलवे के जनरल मैनेजर आशुतोष गोयल ने नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर डिस्पोजेबल जर्म फ्री बेडरोल किट और कोविड-19 प्रोडक्ट के आउटलेट का उद्घाटन किया. इसका मकसद लोगों को सुविधा देने के साथ ही संक्रमण से दूर रखना था, लेकिन शुरुआती महीने में इसे पसंद नहीं किया गया है.
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कैसी होती है ये किट
मिली जानकारी के मुताबिक, किट के 2 मुख्य वैरिएंट हैं. इसमें एक बेडरोल किट, तो दूसरा ब्लैंकेट है. दोनों ही डिस्पोसेबल हैं. एक बार इस्तेमाल कर इन्हें फेंका जा सकता है. किट में कंबल, तकिया, चादर, मास्क, सैनिटाइजर जैसे तमाम ज़रूरी चीज़ें मिलाकर कुल 12 चीज़ें होती हैं. इसकी कीमत 300 रुपये है. उधर सिर्फ ब्लैंकेट खरीदने की राशि 150 रुपये है.
कंपनी भी नहीं है खुश
निजी कंपनी के लोग भी रिस्पांस से खुश नहीं हैं. इसके पीछे यात्रियों को जानकारी नहीं होना प्रमुख कारण बताते हैं. हालांकि, इसके पीछे 1 बैडरोल किट का 300 रुपये शुल्क भी बड़ा कारण है. इस संबंध में जब यात्रियों से बात की गई, तो उनका कहना था कि स्टेशन पर एक बार के इस्तेमाल के लिए 300 रुपये खर्च करने से बेहतर वह घर से सभी सामान लेकर चलना पसंद करते हैं.
क्या कहते हैं अधिकारी
उत्तर रेलवे के मुख्य जनसंपर्क अधिकारी दीपक कुमार कहते हैं कि योजना के फेल और पास होने का कोई सवाल ही नहीं है. यह तो यात्रियों की सहूलियत के लिए शुरू की गई थी. वह कहते हैं कि रेलवे तो आज भी रेल यात्रियों को घर से ही अपने सारे सामान लेकर चलने की सलाह देती है. वो कहते हैं कि उन्हें नहीं लगता कि लोग इसे कम पसंद कर रहे हैं, बल्कि सच्चाई है कि अपनी जरूरत का ध्यान रख रहे हैं.
1 फीसदी भी नहीं कर रहे इस्तेमाल
गौरतलब है कि नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर इन दिनों रोजाना आने वाले यात्रियों की संख्या 2 से 3 लाख है. इनमें वह यात्री भी शामिल हैं, जो एसी गाड़ियों में यात्रा नहीं करते. एक अनुमान के मुताबिक, रोजाना यहां 50 से 60 हजार लोग AC गाड़ियों में सफर करने आते हैं. जबकि, इनमें से 1 फीसदी लोग भी इस योजना का फायदा नहीं उठा रहे हैं.