नई दिल्ली: दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की राजधानी के रूप में ही नहीं, दिल्ली सबसे अलग है क्योंकि इसकी 2 करोड़ की आबादी 140 देशों की आबादी से बड़ी है.
जैसे ही चुनाव आयोग ने अगले महीने की 8 तारीख को होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए कार्यक्रम घोषित किए, तो देश की राजधानी में राजनीतिक परिदृश्य दिलचस्प हो गया.
चुनाव आयोग ने 13,750 मतदान केंद्र बनाए हैं और एक करोड़ सैंतालीस लाख मतदाताओं को कवर करने के लिए 90,000 मतदान अधिकारियों को नियुक्त किया है.
पहली बार, 80 साल से अधिक और शारीरिक रूप से अक्षम मतदाताओं के लिए वरिष्ठ नागरिकों को पोस्टल बैलट के माध्यम से मतदान का विशेषाधिकार होगा.
नामांकन प्रक्रिया पूरी होने तक मतदाताओं का नामांकन और मतदाता पर्ची पर क्यूआर कोड इस बार चुनाव की खास विशेषता है.
AAP को मिला प्रचंड बहुमत
दिल्ली विधानसभा के लिए हुए छह चुनावों में से, बीजेपी ने पहली बार जीत हासिल की. भाजपा के तीन कार्यकाल के शासन के बाद, कांग्रेस ने शीला दीक्षित के नेतृत्व में तीन बार जीत हासिल की. नवंबर 2012 में केजरीवाल के नेतृत्व में आम आदमी पार्टी (आप) के प्रवेश के साथ, 2 राष्ट्रीय दलों का वर्चस्व का अंत हुआ.
2013 और 2015 में अपनी लगातार जीत के साथ, आम आदमी पार्टी दिल्ली के मतदाताओं की पहली पसंद के तौर पर उभरी है. 2015 के चुनावों के दौरान आम आदमी पार्टी ने 54.3 फीसदी वोट शेयर के साथ 67 सीटें हासिल की.
हालांकि, 2017 में हुए नगर निगम के चुनावों में आम आदमी पार्टी का प्रदर्शन निराशाजनक रहा. नगर निगम चुनाव में पार्टी को 26 प्रतिशत वोट मिले. वहीं पिछले साल हुए लोकसभा चुनावों में वोट शेयर 18 प्रतिशत रहा.
लोकसभा चुनाव में मोदी लहर
2014 के लोकसभा चुनावों में, मोदी लहर में बीजेपी ने दिल्ली की सभी सात लोकसभा सीटों पर कब्जा जमाया, लेकिन 2015 के विधानसभा चुनावों में बीजेपी के खाते में तीन सीटें ही आईं.
हालांकि बीजेपी ने पिछले साल लोकसभा चुनाव में अभूतपूर्व सफलता दर्ज की, लेकिन ये विधानसभा चुनावों के लिए मतदाताओं के मूड से अलग है. वहीं कांग्रेस खुद को दरकिनार किए जाने से चिंतित जरूर है.
आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल ने 'हम पहले दर्जे के नागरिक हैं, लेकिन एक तीसरे दर्जे की सरकार के हाथों पीड़ित हैं' के नारे के साथ खुद को दिल्ली की सत्ता पर स्थापित किया.
केजरीवाल ने चुनाव चिह्न के तौर पर झाड़ू को चुना और जनता के बीच ये संदेश देने में सफल रहे कि हम इस 'झाड़ू' से सरकारी तंत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार की सफाई करेंगे.
'अच्छे बीते 5 साल, लगे रहो केजरीवाल'
आम आदमी पार्टी ने पहली बार 28.5 प्रतिशत वोट के साथ 28 सीटें हासिल करके कांग्रेस को झटका दिया और कांग्रेस के बाहरी समर्थन से सत्ता में आई. लेकिन एक हफ्ते के अंदर जन लोकपाल बिल के मुद्दे को लेकर केंद्र से असहमति होने के बाद केजरीवाल ने पद छोड़ दिया.
जिसके बाद साल 2015 में आम आदमी पार्टी को दिल्ली की जनता ने प्रचंड बहुमत दिया.
हालांकि केजरीवाल राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पार्टी को आगे बढ़ाने में नाकाम ही साबित हुए हैं. अगर पंजाब को छोड़ दिया जाए तो आम आदमी पार्टी का वोट शेयर अन्य राज्यों में नोटा से भी कम रहा.
पिछले साल जुलाई के पहले सप्ताह में, सुप्रीम कोर्ट ने आम आदमी पार्टी का समर्थन करते हुए और दिल्ली के उपराज्यपाल को पुलिस और कानून व्यवस्था को छोड़कर अन्य सभी मामलों में मंत्रिपरिषद की सलाह का पालन करने के लिए एक स्पष्ट निर्णय दिया. साथ ही शक्तियों के सीमांकन पर स्पष्टता भी दी.
हालांकि बीजेपी आरोप लगा रही है कि आम आदमी पार्टी के शासन में कोई विकास नहीं हुआ है. वहीं कांग्रेस विरोध कर रही है कि शीला दीक्षित के शासन के दौरान किए गए विकास कार्यों को भी आम आदमी पार्टी बरकरार नहीं रख पाई है.
लेकिन आम आदमी पार्टी पूरे आत्मविश्वास के साथ ये नारा लगा रही है 'अच्छे बीते 5 साल, लगे रहो केजरीवाल'.
जमीन तलाशने की जुगत में कांग्रेस
पिछले विधानसभा चुनावों के दौरान, बीजेपी ने जानी मानी IPS अधिकारी, किरण बेदी को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया था, जो जनता का समर्थन हासिल नहीं कर पाईं. हालांकि अगर बीजेपी पहले हासिल अपने 34 प्रतिशत वोट शेयर में 7 प्रतिशत वोटों की बढ़ोतरी कर लेती है तो दिल्ली में जीत हासिल की जा सकती है.
दिल्ली में बीजेपी और कांग्रेस अपने मुख्यमंत्री उम्मीदवारों के नाम सामने नहीं रख पा रहे हैं और आम आदमी पार्टी इस स्थिति को भुनाने की पूरी कोशिश कर रही है. साथ ही केजरीवाल पिछले 5 सालों के दौरान किए गए विकास कार्यों के दम पर एक बार फिर दिल्ली की सत्ता पर काबिज होना चाहते हैं.
2015 के विधानसभा चुनाव के दौरान, कांग्रेस 9.7 प्रतिशत वोट शेयर के साथ अपना खाता नहीं खोल सकी थी.
हालांकि पिछले साल हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस दूसरे नंबर की पार्टी के रूप में उभरी जो कि कांग्रेस को जीत के प्रति आश्वस्त करता है.
मोदी vs केजरीवाल होगा मुकाबला
शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली, पेयजल, परिवहन और महिला सुरक्षा जैसे प्रमुख मुद्दों को लेकर केजरीवाल सरकार जनता के बीच पैठ बनाने में सफल साबित हुई है. हालांकि पर्यावरण को लेकर आम आदमी पार्टी और केंद्र सरकार के बीच कई बार टकराव की स्थिति देखने को मिली.
बीजेपी ने दिल्ली की 1731 अनाधिकृत कॉलोनियों को पक्का करने का दावा किया है. वहीं आम आदमी पार्टी जरूरी बुनियादी ढांचा उपलब्ध कराने के दावा कर रही है. कुल मिलाकर इस बार मुकाबला मोदी vs केजरीवाल होने जा रहा है.
विभिन्न राज्यों में घटती लोकप्रियता के दौर में, ये देखना दिलचस्प होगा कि बीजेपी दिल्ली में सत्ता हासिल करने के लिए क्या रणनीति अपनाती है?.