नई दिल्ली: मानसिक रोगियों को इलाज के लिए इलेक्ट्रिक शॉक तो दिया जाता है, लेकिन ऐसा भी नहीं कि ये सभी मानसिक रोगियों को दिया जाता है. IHBAS के न्यूरो एनेस्थीसिया के विभागाध्यक्ष डॉक्टर अरविन्द आर्या बताते हैं कि मानसिक रोगों के ऐसे मरीज जो बार-बार आत्महत्या की कोशिश करते हैं या गंभीर डिप्रेशन में होते हैं या सिजोफ्रेनिया के गंभीर मरीज होते हैं, और जिन्हें दवा से फायदा नहीं होता सिर्फ उन्हें ही ये ट्रीटमेंट दिया जाता है वो भी बहुत हल्के वोल्टेज पर और महज सेकेण्ड के कुछ हिस्से के लिए.
बेहोशी में दिया जाता है शॉक
डॉ. अरविन्द के अनुसार मानसिक स्वास्थ्य को लेकर बने नए कानून के अनुसार मरीज को बेहोश कर के ही ये शॉक दिया जाता है. जिस दिन मरीज को इलेक्ट्रिक शॉक दिया जाता है, उस दिन उसे खाली पेट ही रहना होता है. उसके बाद पहले उसे ग्लूकोज चढ़ाया जाता है और फिर एनेस्थीसिया देकर उसे बेहोश किया जाता है. उसके बाद उसके कान के ठीक ऊपर मशीन को लगाया जाता है.
अधिकतम दस बार ही दिया जा सकता है शॉक
डॉ. अरविन्द के अनुसार किसी भी मरीज को एक दिन में सिर्फ एक बार ही शॉक दिया जाता है. वहीं अधिकतम 10 बार ही मरीज को एक दिन के अन्तराल पर शॉक दिया जाता है. मरीज में शॉक के असर को देखते हुए वोल्टेज और समय में बदलाव किया जाता है. शॉक देने के बाद मरीज को करीब दो घंटे तक फर्श पर लिटाया जाता है, ताकि मरीज उत्तेजना की अवस्था में बेड से नीचे न गिर जाए.