नई दिल्लीः एकीकृत दिल्ली नगर निगम के चेयरमैन रहे जगदीश ममगांई (Jagdish Mamgai chairman of Integrated Delhi Municipal Corporation) ने अप्रैल 2022 में दिल्ली नगर निगमों का कार्यकाल पूर्ण होने पर निगम चुनाव के साथ तीनों नगर निगम के एकीकरण के साथ एकीकृत निगम को ‘मेयर-इन-काउंसिल’ (mayor-in-council) का स्वरुप प्रदान कर इसे दोबारा एक करने के लिए दिल्ली नगर निगम अधिनियम 1957 में संशोधन करने की मांग की है.
इसके लिये उन्होंने केन्द्रीय गृह मंत्री, दिल्ली के उपराज्यपाल एवं मुख्यमंत्री को पत्र लिखा है. उन्होंने बताया कि वर्ष 1958 में गठित दिल्ली नगर निगम का दिल्ली के निर्माण एवं विकास में प्रभावी योगदान रहा है. देश-विदेश के शासक भी निगम के गौरव व इतिहास का हिस्सा रहे हैं. 54 वर्षों तक दिल्ली नगर निगम एकीकृत (Demand to unite Delhi Municipal Corporation) रहा. वर्ष 2012 में राजनीतिक स्वार्थ के चलते इसके तीन टुकड़े कर दिए गए. इससे न केवल कार्यक्षमता प्रभावित हुई, बल्कि निगम आर्थिक दबाव के कारण दिवालिया स्थिति में आ गई.
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ममगांई ने बताया कि निगम कर्मियों को वेतन देना मुश्किल हुआ है. विकास योजनाएं भी लगभग ठप हो गई हैं. उन्होंने कहा कि तीन निगम होने के कारण, प्रशासन प्रबन्धन के लिए महापौर, स्थायी समिति अध्यक्ष, आयुक्त, निगम पक्ष-विपक्ष के नेता की संख्या एक से तीन हो गई. चार अतिरिक्त आयुक्त की जगह 12 और 40 की जगह 120 समितियां आदि के प्रशासकीय प्रबन्धन, कार्यालय, स्टॉफ, वेतन-भत्ते में तीन गुना वृद्धि हुई है. छह साै करोड़ रुपए की जगह लगभग 18 साै करोड़ रुपए का व्यय हो रहा है. आयुक्त एवं अतिरिक्त आयुक्त के पद पर आईएएस स्तर के न्यूनतम 15 अधिकारी चाहिए होते हैं, जो उपलब्ध नहीं हो पाते हैं.
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चूंकि एक से तीन निगम करने से दिल्ली का नागरिक प्रशासन मुश्किल स्थिति में आ गया है. लिहाजा निगम के त्रि-विभाजन को रद्द कर पुनः एकीकृत करना प्रशासनिक क्षमता सुधारने व आर्थिक दबाव को कम करने में सहायक हो सकता है. लगभग 11साै से 12 साै करोड़ रुपए तो प्रशासनिक खर्चों में बचत होगी. शहरी मामलों के जानकार जगदीश ममगांई ने सुझाया है कि तीनों नगर निगम के एकीकरण के साथ ही दिल्ली नगर निगम अधिनियम 1957 में संशोधित कर एकीकृत निगम को ‘मेयर-इन-काउंसिल’ का स्वरूप भी प्रदान किया जाए. इससे न केवल निगम पर हावी नौकरशाही पर अंकुश लगेगा, निर्वाचित प्रतिनिधियों को अधिक शक्ति प्रदान कर जन-हितैषी व विकासशील योजनाओं को गति प्रदान करेगा. मेयर-इन-काउंसिल पद्धति ऐसे भ्रष्ट अधिकारियों पर अंकुश लगाने में कारगर होगी.
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