नई दिल्ली: राजधानी दिल्ली के स्कूलों में मैथिली भाषा को पाठ्यक्रम में शामिल कर दिया गया है. मैथिली कक्षा 8 से 12वीं तक के स्टूडेंट्स को वैकल्पिक विषय के तौर पर पढ़ाई जाएगी. दिल्ली सरकार ने हाल ही में यह घोषणा की है.
स्टंट या तारीफ
इसके बाद इस कदम को लेकर तमाम तरीके की बातें सामने आ रही हैं. किसी ने इसकी तारीफ की तो किसी ने इसे राजनीतिक स्टंट बताया. इसी बीच भोजपुरी और मैथली भाषा के लिए सालों से काम कर रहे विश्व भोजपुरी सम्मेलन के राष्ट्रीय अध्यक्ष अजीत दुबे ने सरकार के इस कदम का स्वागत किया है.
'सरकार का कदम तारीफ के काबिल है'
ईटीवी भारत से खास बातचीत में अजीत दुबे ने कहा, 'मुझे खुशी है कि मैथिली भाषा दिल्ली के स्कूलों में पढ़ाई जाएगी. देर से ही सही लेकिन सरकार ने ये कदम तो उठाया. इसका हम स्वागत करते हैं.' उन्होंने कहा कि दिल्ली में आज 35 से 40 फीसदी लोग पूर्वांचल के हैं. उसमें ज्यादातर लोग मैथिली और भोजपुरी के हैं. ऐसे में ये कदम तारीफ के काबिल है.
'इस कदम को राजनीति से न जोड़ा जाए'
उन्होंने कहा कि वे पिछले 12 साल से भोजपुरी भाषा को बढ़ावा देने के लिए प्रयासरत थे. अब बिहार के बाद दिल्ली दूसरा राज्य है जो भोजपुरी भाषा को संवैधानिक दर्जा दिलाने की ओर कदम बढ़ा रहा है. उन्होंने आगे कहा कि सरकार के इस कदम को राजनीति से नहीं जोड़ा जाए. बीते सालों में ये मुमकिन नहीं हो पाया. लेकिन अब जब इसकी पहल हो रही है तो इसका स्वागत होना चाहिए.
'भोजपुरी को सम्मान न मिलना अन्याय'
भोजपुरी साहित्य में भिखारी ठाकुर के बाद किसी और का नाम नहीं आने के सवाल पर दुबे कहते हैं कि जिस भाषा और संस्कृति को बढ़ने का मौका ही नहीं दिया गया. उसमें अगर ये कहा जाएगा कि साहित्यकार नहीं हैं. तो ये गलत है. इसी क्रम में वो कई नाम गिनाते हैं. जिन्हें भोजपुरी साहित्य के लिए गिना जा सकता है. वे कहते हैं कि सभी भाषाओं के लोगों को सम्मान मिलता है. लेकिन भोजपुरी को सम्मान नहीं मिल सकता जो कि अन्याय है. भोजपुरी भाषा को संवैधानिक दर्जा नहीं मिल पाने के पीछे भी दुबे कहीं न कहीं इच्छा शक्ति की कमी को जिम्मेदार ठहराते हैं.
'आगाज हुआ तो शिक्षक भी आ जाएंगे'
मौजूदा वक्त में दूसरी वैकल्पिक भाषाओं के लिए शिक्षक नहीं होने और मैथिली भाषा की भविष्य की स्थितियों पर दुबे कहते हैं कि इस भाषा के लिए शिक्षकों की कभी कमी हो ही नहीं सकती. यहां तक कि वे इसे कमजोर तर्क बताते हैं. उन्होंने कहा कि अब इसकी शुरुआत हुई है तो इसके लिए शिक्षक भी आ जाएंगे. उन्होंने आगे कहा कि अब उम्मीद है कि भोजपुरी को भी संवैधानिक दर्जा मिल जाएगा.
कोशिश करेंगे संवैधानिक दर्जा मिले
दिल्ली के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने मैथिली भाषा को पाठ्यक्रम में शामिल करते वक्त ऐलान किया था कि हम भोजपुरी भाषा को भी संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल कराने की कोशिश करेंगे.