नई दिल्ली: भारत के उद्योगपति और वाघ बकरी चाय के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर और मालिक पराग देसाई का 49 साल के उम्र में निधन हो गया है. पराग देसाई को ब्रेन हेमरेज के बाद हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया था. पिछले हफ्ते मॉर्निग वॉक के दौरान आवारा कुत्तों के हमले से गिर गए, जिसके बाद उनका ब्रेन हेमरेज हो गया. जिसके बाद उन्हें हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया था. सूत्रों के मुताबिक पराग एक हफ्ते से हॉस्पिटल में एडमिट थे. वाघ बकरी को गुजरात में फेमस चाय के रुप में जाना जाता है. बता दें कि पराग देसाई बाघ बकरी के 6 ग्रुप ऑफ डायरेक्टर में से एक थे.
साल 1990 में परिवारिक बिजनेस में शामिल हुए
पराग देसाई 1990 में अपने परिवारिक चाय बिजनेस में शामिल हो गए थे. पराग ने लॉन्ग आइलैंड यूनिवर्सिटी, यूएसए से एमबीए करने के बाद वाघ बकरी टी ग्रुप के बोर्ड में दो कार्यकारी निदेशकों में से एक थे. बता दें कि पराग देसाई ने वाघ बकरी टी के ब्रिकी, मार्केटिंग, निर्यात को संभलाते थे. बताया जाता है कि देसाई को चाय की काफी अच्छी परख थी.
किसने शुरू की थी वाघ बकरी चाय
पानी के बाद सबसे ज्यादा पीने वाला विवरेज चाय है. भारत ही नहीं दुनिया भर में इसकी एक अलग ही डिमांड रहती है. फाइनेंशियल ईयर 2020 के दौरान भारत में चाय की खपत लगभग एक अरब किलोग्राम थी. चाय का सिलसिला 1892 में शुरू हुआ, जब एक भारतीय बिजनेसमैन नारनदास देसाई ने दक्षिण अफ्रीका के डरबन में 500 एकड़ की चाय संपत्ति के साथ अपना चाय व्यवसाय स्थापित किया. उस समय दक्षिण अफ्रीका भी भारत की तरह कोलोनियल शासन से जूझ रहा था. उस दौरान नाराणदास देसाई को भी दक्षिण अफ्रीका में नस्लीय भेदभाव का सामना करना पड़ा था. इसके बाद उन्हें देश छोड़ने पर मजबूर कर दिया गया था.
वाघ बकरी चाय
उस वक्त महात्मा गांधी देसाई के बिजनेस के तरीके से काफी खुश रहते थे. 1915 में रंगभेद के कारण नारनदास देसाई को देश छोड़ना पड़ा था. देश छोड़ने के समय उन्हें महात्मा गांधी से एत चिट्ठी मिला था, जिसमें उनके इमानदारी से कर रहे बिजनेस का जिक्र था. वाघ बकरी का इतिहास किसी अन्य बिजनेस से अलग है. दक्षिण अफ्रीका से लौटने के बाद, नारानदास देसाई ने 1919 में गुजरात चाय डिपो की स्थापना के लिए एक बड़ा कर्ज लिया. उन्होंने पहला स्टोर अहमदाबाद में स्थापित किया गया था जो खुली चाय बेचता था. 1934 में, देसाई ने पहली बार वाघ बकरी ब्रांड के तहत चाय बेचना शुरू किया.