मुंबई : मौद्रिक नीति उपायों और आपूर्ति के मोर्चे पर हस्तक्षेप के कारण खुदरा मुद्रास्फीति में कमी आई है लेकिन 'हम अब भी मुश्किलों से बाहर नहीं निकले हैं और अभी लंबा सफर तय करना बाकी है.' भारतीय रिजर्व बैंक के बृहस्पतिवार को जारी नवंबर महीने के बुलेटिन में यह बात कही गई है. बुलेटिन में अर्थव्यवस्था की स्थिति पर एक लेख में यह भी कहा गया है कि वैश्विक अर्थव्यवस्था चालू तिमाही में नरम पड़ने के संकेत दे रही है. विनिर्माण क्षेत्र में गिरावट आई है. साथ ही ऐसा लग रहा है कि सेवा क्षेत्र की गतिविधियों में महामारी के बाद जो तेजी थी, वह अपने समापन पर पहुंच गयी है.
इसमें यह भी कहा गया है कि वित्तीय स्थितियों को कड़ा करना वैश्विक परिदृश्य के लिये महत्वपूर्ण जोखिम है. RBI के डिप्टी गवर्नर माइकल देवब्रत पात्रा की अगुवाई वाली टीम द्वारा लिखे गए इस लेख में कहा गया है, "त्योहारों के दौरान मांग बेहतर रहने से भारत में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि 2023-24 की तीसरी तिमाही में तिमाही आधार पर अधिक रहने की उम्मीद है." लेख में कहा गया है कि सरकार के बुनियादी ढांचे पर खर्च, निजी पूंजीगत व्यय में बढ़ोतरी, स्वचालन, डिजिटलीकरण और स्थानीय उत्पादों को बढ़ावा मिलने से निवेश मांग मजबूत बनी हुई है.
Consumer Price Index पर आधारित हेडलाइन (कुल) मुद्रास्फीति का जिक्र करते हुए इसमें कहा गया है कि मौद्रिक नीति उपायों और आपूर्ति मोर्चे पर हस्तक्षेप के कारण से महंगाई नरम पड़ी है. वित्त वर्ष 2022-23 के पहले सात महीनों में कुल मुद्रास्फीति में तेजी आई थी. वास्तव में पिछले साल नवंबर पहला महीना था जब मुद्रास्फीति RBI के संतोषजनक दो से छह प्रतिशत के दायरे में आई.
लेखकों ने लिखा है, "हम मुश्किलों से बाहर नहीं निकले हैं और हमें अभी लंबा सफर तय करना है. लेकिन सितंबर में खुदरा मुदरास्फीति के लगभग पांच प्रतिशत और अक्टूबर में 4.9 प्रतिशत पर रहना एक राहत की बात है. यह 2022-23 में 6.7 प्रतिशत और चालू वित्त वर्ष में जुलाई-अगस्त के दौरान 7.1 प्रतिशत पर पहुंच गयी थी.
RBI ने साफ कहा है कि कि लेख में व्यक्त विचार लेखकों के हैं और केंद्रीय बैंक के विचारों का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं. लेख में आगे कहा गया है कि देश का बाह्य क्षेत्र मजबूत हुआ है. चालू खाते का घाटा नरम है जबकि विदेशी मुद्रा भंडार बेहतर स्थिति में है. इसमें कहा गया है कि वृद्धि की गति तेज हुई है. इससे सकल घरेलू उत्पाद महामारी-पूर्व स्तर से ऊपर पहुंच गया है और बाजार विनिमय दरों पर भारत दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है.