इस्लामाबाद : पाकिस्तान में 2023 के पहले महीने का पहला सप्ताह सुरक्षा और आतंकवाद विरोधी नीति बनाने से लेकर आर्थिक संकुचन और राजनीतिक हल्ला-गुल्ला तक चुनौतियों से भरा (Pakistan facing three-tier crisis) रहा है. यह कहना गलत नहीं होगा कि पाकिस्तान इस समय एक ऐसी चट्टान के किनारे पर खड़ा है, जहां एक गलत कदम आपदा का कारण बन सकता है. दुर्भाग्य से जो लोकतंत्र के स्तंभ और देश के समर्थन के रूप में माने जाते हैं, वे देश में इस गड़बड़ी के पीछे मुख्य अपराधी और बिगाड़ने वाले बन गए हैं.
राजनीतिक अराजकता
अप्रैल 2022 से, जब पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान को संसद में अविश्वास मत की लोकतांत्रिक प्रक्रिया के माध्यम से हटा दिया गया था. जिसका नेतृत्व विपक्षी गठबंधन दलों ने किया था, जिन्होंने बाद में सरकार बनाई थी, उन्होंने कहा है कि उनका निष्कासन अमेरिका व पाकिस्तान के सैन्य प्रतिष्ठान और विपक्षी दलों द्वारा रची गई साजिश का परिणाम था. इस राजनीतिक आख्यान का उपयोग करते हुए वह सोशल मीडिया के हंगामे, विरोध प्रदर्शनों, रैलियों, लगातार नाम पुकारने और सैन्य प्रतिष्ठान, विशेष रूप से पूर्व सेनाध्यक्ष जनरल कमर जावेद बाजवा (सेवानिवृत्त) इमरान खान के साथ तीव्र दबाव बना रहा.
इमरान खान का दावा है कि उनकी सरकार ने जो भी गलती की है उसके पीछे एक कारण है. इमरान खान का दावा है कि सैन्य प्रतिष्ठान ने उनकी सरकार को बेदखल कर दिया और अब, वह चाहते हैं कि नया सैन्य प्रतिष्ठान उनकी गलती को ठीक करे. देश में समय से पहले आम चुनाव कराकर उन्हें सत्ता में वापस लाए. इमरान खान के राजनीतिक दबाव ने निश्चित रूप से शहबाज शरीफ के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार और इसके साथ ही देश में बड़े पैमाने पर राजनीतिक स्थिरता पर अनिश्चितता बढ़ा दी.
आर्थिक उथल-पुथल
पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति (pakistan economic condition) पूरी तरह से मंदी के कगार पर बनी हुई है क्योंकि देश का विदेशी मुद्रा भंडार 8 साल के निचले स्तर 5.57 अरब डॉलर पर आ गया है. 2 जनवरी, 2023 को राष्ट्रीय सुरक्षा समिति (एनएससी) की एक बैठक में देश के सामने आने वाली वित्तीय चुनौतियों की समीक्षा की गई. जिसमें पाकिस्तान को दिवालियापन और डिफॉल्ट से बचाने के लिए वसूली के संभावित रोडमैप पर चर्चा की गई. ऐसा लगता है कि पाकिस्तान के पास आगे बढ़ने के दो विकल्प हैं और दोनों बड़े और अलोकप्रिय फैसलों के साथ कठिन रास्ते हैं. साथ ही वसूली का एक विस्तारित मार्ग भी है.
आगे बढ़ने का एक तरीका आईएमएफ (अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष) के नियमों और शर्तों का उल्लंघन करना है. चीन, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात और कतर जैसे मित्र देशों से समर्थन न केवल ऋण देने के लिए बल्कि पाकिस्तान की मौजूदा आर्थिक चुनौतियों से निपटने के लिए है. हालांकि यह एक विश लिस्ट हो सकती है. लेकिन ऐसा होने की संभावना बहुत कम है क्योंकि पाकिस्तान की क्रेडिट रेटिंग गिर रही है और आईएमएफ योजना के बिना रेटिंग और गिर जाएगी. इसके अलावा आईएमएफ की कोई योजना नहीं होने के कारण पाकिस्तान के नागरिक और सैन्य नेतृत्व को कुछ बड़े लेकिन कठिन निर्णय लेने होंगे. वह भी वसूली के कम से कम 5 साल के रोड मैप के साथ, जो कि वर्तमान राजनीतिक नेतृत्व करने के लिए तैयार नहीं है.
दूसरा तरीका आईएमएफ (International Monetary Fund) की कठोर शर्तों को स्वीकार करना है. जिसके चलते कठिन निर्णयों को लागू करना होगा. देश में मुद्रास्फीति में वृद्धि होगी और अमेरिकी डॉलर के मुकाबले मुद्रा का अवमूल्यन होगा. लेकिन यह अन्य उधारदाताओं से वित्तीय प्रवाह के द्वार खोल देगा. जिनकी आईएमएफ योजना पर पाकिस्तान के बैंकों को सहायता मिलती है. यदि इस मार्ग को लिया जाता है तो वसूली का मार्ग लगभग दो वर्षों में पूरा होने का अनुमान है.
आतंकवाद की छाया
तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) जैसे समूहों और बलूचिस्तान व खैबर पख्तूनख्वा प्रांत के विभिन्न हिस्सों में सक्रिय अन्य समूहों के सुरक्षा बलों और सैन्य संस्थानों पर अपने हमलों को तेज करने के साथ आतंकवाद का पुनरुत्थान एक बड़ी चुनौती बन गया है. पाकिस्तान ने देश में आतंकवादियों को खत्म करने का संकल्प लिया है. खुफिया आधारित संचालन (आईपीओ) के माध्यम से आतंकवादी ठिकानों को निशाना बनाने और आतंकवादियों को मारने के लिए एक नया आक्रामक अभियान शुरू किया है. नागरिक और सैन्य नेतृत्व के बीच एकता ने टीटीपी द्वारा एक नए खतरे को बढ़ावा दिया है. जिसने दो मुख्य राजनीतिक दलों, पाकिस्तान पीपल पार्टी (पीपीपी) और पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज (पीएमएल-एन) को टीटीपी के खिलाफ इसका समर्थन करने से परहेज करने का आह्वान किया है.
टीटीपी ने इन राजनीतिक दलों के हमलों की चेतावनी दी है. कहा कि अगर वे सशस्त्र बलों का समर्थन करते है, तो वह हमला करने से परहेज नहीं करेंगे. आतंकवाद का खतरा निश्चित रूप से कुछ ऐसा है, जिसे पाकिस्तान फिर से देखने का जोखिम नहीं उठा सकता. हालांकि 2023 देश में चुनावों का वर्ष होने के कारण राजनीतिक दलों पर हमले की टीटीपी की धमकी को एक बड़ी चुनौती के रूप में देखा जा रहा है, क्योंकि सार्वजनिक राजनीतिक सभाएं, रैलियां और प्रचार हर पार्टी की चुनावी तैयारियों का हिस्सा हैं. इस तरह की सभाएं आतंकी हमलों के लिए आसान निशाना बन सकती हैं.
(आईएएनएस)
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