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Pure Gold : आप यह कैसे जांच करेंगे कि सोना शुद्ध है ?

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Published : Mar 7, 2023, 2:05 PM IST

सोने की शुद्धता किस प्रकार से जांची जाती है. यह सवाल सालों से चला आ रहा है. हाल ही में यह मुद्दा उस समय उठा, जब ऑस्ट्रेलिया की एक कंपनी द्वारा चीन की एक कंपनी को बेचे गए सोने की शुद्धता को लेकर सवाल उठ गए.

gold, concept photo
गोल्ड, प्रतीकात्मक तस्वीर

सिडनी : जब सोने के आभूषण की बात आती है तो सवाल यह खड़ा होता है कि वह कितना शुद्ध है ? और किसी को उसकी शुद्धता का कैसे पता चलेगा ? ऑस्ट्रेलिया की आधिकारिक बुलियन टकसाल और पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया के स्वामित्व वाली पर्थ मिंट के बारे में हाल के खुलासों से पता चला कि सोने के खरीददार और विक्रेता शुद्धता को बहुत गंभीरता से लेते हैं. शंघाई गोल्ड एक्सचेंज को बेचे गए करीब नौ अरब डॉलर के सोने में अशुद्धता को लेकर सवाल खड़े किए गए हैं.

सोने की शुद्धता की जांच करने का प्रश्न हजारों वर्ष से बना हुआ है और इसकी शुद्धता का पता लगाने के लिए तेजी से नयी पद्धतियां ईजाद की गयीं. लेकिन इन पद्धतियों के बावजूद स्वर्ण उद्योग अब भी विश्वास और प्रतिष्ठा पर चलता है.

यूरेका मोमेंट : ऐसा कहा जाता है कि प्राचीन यूनानी गणितज्ञ आर्किमिडीज ने स्नान करते वक्त सोने की शुद्धता की जांच करने का एक तरीका खोजा था, कहानी कुछ ऐसी है कि सिरैक्यूज के राजा ने गणितज्ञ को यह पता लगाने के लिए कहा था कि क्या सोने का एक ताज शुद्ध धातु से बना है या बेईमान सुनार ने इसमें मिलावट की है. समस्या पर विचार करते समय आर्किमिडीज ने स्नान किया और देखा कि जब वह पानी के अंदर डुबकी लगाते हैं तो पानी का स्तर बढ़ जाता है. वह तुरंत बाहर निकले और सड़क पर यूरेका (या मुझे यह मिल गया है) चिल्लाते हुए भागे.

उन्हें यह लगा कि ताज को पानी में डुबोने से उन्हें उसकी मात्रा तथा घनत्व का पता चल जाएगा. चूंकि सोने का घनत्व ज्यादातर अन्य धातुओं से कहीं ज्यादा होता है तो इसे ताज की शुद्धता को मापने में इस्तेमाल किया जा सकता है. हालांकि, इस कहानी की ऐतिहासिक सच्चाई को लेकर बहस चलती है.

आग और रोशनी : आर्किमिडीज की विधि की सरलता के बावजूद इसका आज इस्तेमाल नहीं किया जाता है. आधुनिक स्वर्ण उद्योग में इस्तेमाल होने वाली कुछ पद्धतियों में फायर एस्से, एक्स-रे फ्लूरोसेंस और प्लाज्मा मास स्पेक्ट्रोमीट्री (आईसीपी-एमएस) शामिल हैं. फायर एस्से हॉलमार्किंग उद्योग (उदाहरण के लिए यह सत्यापित करने कि आभूषण में सोना नौ कैरेट है या 18 कैरेट) में इस्तेमाल पारंपरिक पद्धति है और अयस्क की गुणवत्ता की जांच करने के लिए सोने की खदानों में इस्तेमाल की जाती है.

इसमें जिस पदार्थ की आप जांच कर रहे हैं उसमें से धातु का एक छोटा-सा नमूना लिया जाता है और उसे विभिन्न रसायनों के साथ मिलाया जाता है और उसे भट्टी में पिघलाया जाता है. हालांकि, फायर एस्से में केवल सोने की मात्रा की जांच की जाती है इसमें यह नहीं पता चलता कि नमूने में और क्या है.

एक अन्य आम जांच एक्स-रे फ्लूरोसेंस है. आप उस पदार्थ का एक्स-रे करते हैं जिसकी आप जांच करना चाहते हैं, जो आपके नमूने में परमाणुओं को उत्तेजित कर देता है और उन्हें विभिन्न तरंग दैर्ध्य की एक्स-रे में बदल देता है. इस मशीन से आपको उस पदार्थ में सोने, चांदी, तांबा तथा अन्य धातु की मात्रा का पता चल जाता है.

गोल्ड स्टैंडर्ड : सटीकता हासिल करने के लिए आप कई अलग-अलग, अधिक विस्तृत जांच कर सकते हैं. ऑस्ट्रेलिया में गोल्ड स्टैंडर्ड का अभिप्राय प्लाज्मा मास स्पेक्ट्रोमीट्री से है. इस प्रक्रिया में किसी नमूने को प्रभावी तरीके से वाष्पीकृत किया जाता है और फिर उसमें विभिन्न परमाणुओं का वजन किया जाता है. हालांकि, यह थोड़ी महंगी प्रक्रिया है. आप आभूषण के लिए इसका इस्तेमाल नहीं करेंगे. मुख्यत: वैज्ञानिक या खनन कंपनियां किसी नमूने में मिलावट का पता लगाने के लिए इसका इस्तेमाल करती हैं.

विश्वास की कीमत : व्यावहारिक रूप से लोग सोना खरीदते समय ये जांच नहीं करते. स्वर्ण उद्योग बड़े पैमाने पर भरोसे पर चलता है. अगर कोई प्रतिष्ठित विक्रेता आपको बताता है कि वे आपको 99.99 प्रतिशत शुद्ध सोना दे रहा है तो आप आमतौर पर उस पर यकीन करते हैं. आप सोने के प्रत्येक सिक्के या ईंट की जांच नहीं करते हैं. चाहे जो भी वजह रही हो कि शंघाई गोल्ड एक्सचेंज ने उसे दिए गए सोने की शुद्धता के बारे में पर्थ मिंट के आश्वासन पर यकीन नहीं किया. अब यह पर्थ मिंट की भरोसे की समस्या हो सकती है. और जब भरोसा टूटता है तो यह दोबारा आसानी से नहीं बनता.

ये भी पढ़ें : UPI Frauds: यूपीआई से करते हैं डिजिटल लेनदेन, तो जालसाजों से रहे बच कर! इन टिप्स का रखें ध्यान

(भाषा)

सिडनी : जब सोने के आभूषण की बात आती है तो सवाल यह खड़ा होता है कि वह कितना शुद्ध है ? और किसी को उसकी शुद्धता का कैसे पता चलेगा ? ऑस्ट्रेलिया की आधिकारिक बुलियन टकसाल और पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया के स्वामित्व वाली पर्थ मिंट के बारे में हाल के खुलासों से पता चला कि सोने के खरीददार और विक्रेता शुद्धता को बहुत गंभीरता से लेते हैं. शंघाई गोल्ड एक्सचेंज को बेचे गए करीब नौ अरब डॉलर के सोने में अशुद्धता को लेकर सवाल खड़े किए गए हैं.

सोने की शुद्धता की जांच करने का प्रश्न हजारों वर्ष से बना हुआ है और इसकी शुद्धता का पता लगाने के लिए तेजी से नयी पद्धतियां ईजाद की गयीं. लेकिन इन पद्धतियों के बावजूद स्वर्ण उद्योग अब भी विश्वास और प्रतिष्ठा पर चलता है.

यूरेका मोमेंट : ऐसा कहा जाता है कि प्राचीन यूनानी गणितज्ञ आर्किमिडीज ने स्नान करते वक्त सोने की शुद्धता की जांच करने का एक तरीका खोजा था, कहानी कुछ ऐसी है कि सिरैक्यूज के राजा ने गणितज्ञ को यह पता लगाने के लिए कहा था कि क्या सोने का एक ताज शुद्ध धातु से बना है या बेईमान सुनार ने इसमें मिलावट की है. समस्या पर विचार करते समय आर्किमिडीज ने स्नान किया और देखा कि जब वह पानी के अंदर डुबकी लगाते हैं तो पानी का स्तर बढ़ जाता है. वह तुरंत बाहर निकले और सड़क पर यूरेका (या मुझे यह मिल गया है) चिल्लाते हुए भागे.

उन्हें यह लगा कि ताज को पानी में डुबोने से उन्हें उसकी मात्रा तथा घनत्व का पता चल जाएगा. चूंकि सोने का घनत्व ज्यादातर अन्य धातुओं से कहीं ज्यादा होता है तो इसे ताज की शुद्धता को मापने में इस्तेमाल किया जा सकता है. हालांकि, इस कहानी की ऐतिहासिक सच्चाई को लेकर बहस चलती है.

आग और रोशनी : आर्किमिडीज की विधि की सरलता के बावजूद इसका आज इस्तेमाल नहीं किया जाता है. आधुनिक स्वर्ण उद्योग में इस्तेमाल होने वाली कुछ पद्धतियों में फायर एस्से, एक्स-रे फ्लूरोसेंस और प्लाज्मा मास स्पेक्ट्रोमीट्री (आईसीपी-एमएस) शामिल हैं. फायर एस्से हॉलमार्किंग उद्योग (उदाहरण के लिए यह सत्यापित करने कि आभूषण में सोना नौ कैरेट है या 18 कैरेट) में इस्तेमाल पारंपरिक पद्धति है और अयस्क की गुणवत्ता की जांच करने के लिए सोने की खदानों में इस्तेमाल की जाती है.

इसमें जिस पदार्थ की आप जांच कर रहे हैं उसमें से धातु का एक छोटा-सा नमूना लिया जाता है और उसे विभिन्न रसायनों के साथ मिलाया जाता है और उसे भट्टी में पिघलाया जाता है. हालांकि, फायर एस्से में केवल सोने की मात्रा की जांच की जाती है इसमें यह नहीं पता चलता कि नमूने में और क्या है.

एक अन्य आम जांच एक्स-रे फ्लूरोसेंस है. आप उस पदार्थ का एक्स-रे करते हैं जिसकी आप जांच करना चाहते हैं, जो आपके नमूने में परमाणुओं को उत्तेजित कर देता है और उन्हें विभिन्न तरंग दैर्ध्य की एक्स-रे में बदल देता है. इस मशीन से आपको उस पदार्थ में सोने, चांदी, तांबा तथा अन्य धातु की मात्रा का पता चल जाता है.

गोल्ड स्टैंडर्ड : सटीकता हासिल करने के लिए आप कई अलग-अलग, अधिक विस्तृत जांच कर सकते हैं. ऑस्ट्रेलिया में गोल्ड स्टैंडर्ड का अभिप्राय प्लाज्मा मास स्पेक्ट्रोमीट्री से है. इस प्रक्रिया में किसी नमूने को प्रभावी तरीके से वाष्पीकृत किया जाता है और फिर उसमें विभिन्न परमाणुओं का वजन किया जाता है. हालांकि, यह थोड़ी महंगी प्रक्रिया है. आप आभूषण के लिए इसका इस्तेमाल नहीं करेंगे. मुख्यत: वैज्ञानिक या खनन कंपनियां किसी नमूने में मिलावट का पता लगाने के लिए इसका इस्तेमाल करती हैं.

विश्वास की कीमत : व्यावहारिक रूप से लोग सोना खरीदते समय ये जांच नहीं करते. स्वर्ण उद्योग बड़े पैमाने पर भरोसे पर चलता है. अगर कोई प्रतिष्ठित विक्रेता आपको बताता है कि वे आपको 99.99 प्रतिशत शुद्ध सोना दे रहा है तो आप आमतौर पर उस पर यकीन करते हैं. आप सोने के प्रत्येक सिक्के या ईंट की जांच नहीं करते हैं. चाहे जो भी वजह रही हो कि शंघाई गोल्ड एक्सचेंज ने उसे दिए गए सोने की शुद्धता के बारे में पर्थ मिंट के आश्वासन पर यकीन नहीं किया. अब यह पर्थ मिंट की भरोसे की समस्या हो सकती है. और जब भरोसा टूटता है तो यह दोबारा आसानी से नहीं बनता.

ये भी पढ़ें : UPI Frauds: यूपीआई से करते हैं डिजिटल लेनदेन, तो जालसाजों से रहे बच कर! इन टिप्स का रखें ध्यान

(भाषा)

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