हैदराबाद : हर कोई अपनी जरुरत के हिसाब से टैक्स सेविंग स्कीम के ऑप्शन देखता है. यह जरुरी भी है कि एक टैक्स सेविंग प्लान हो. जो लोग सुरक्षित योजनाओं की तलाश कर रहे हैं, वे बैंकों और गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) द्वारा दी जाने वाली टैक्स सेविंग फिक्सड डिपॉजिट स्कीम अपना सकते हैं. प्रत्येक व्यक्ति को Tax Saving को अपनी वार्षिक वित्तीय योजनाओं का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बनाना चाहिए. तो आइए जानते हैं टैक्स सेविंग फिक्सड डिपॉजिट से जुड़ी कुछ जरुरी बातें..
टैक्स बचाने के लिए Fixed Deposit (FD) इनवेस्टमेंट का एक ऑप्शन है. जो कर छूट, सुरक्षा और अच्छा इनटरेस्ट रेट जैसे कई लाभ देता है. बैंकों द्वारा दी जाने वाली ये FD आपकी मोटी कमाई को इनवेस्ट करने के लिए सुरक्षित योजनाएं मानी जाती हैं. कई निवेशक उनके गारंटीड रिटर्न और लगभग 7 प्रतिशत की इनटरेस्ट रेट को देखते हुए इससे जुड़ रहे हैं.
जो लोग टैक्स बचाना चाहते हैं, वे चालू वित्त वर्ष समाप्त होने से पहले इन FD योजनाओं को लेने के बारे में सोच सकते हैं. आयकर अधिनियम 1961 की धारा 80सी विभिन्न टैक्स- सेविंग स्कीम में किए गए निवेश पर 1,50,000 रुपये तक की कटौती की अनुमति देती है. इन्हीं योजनाओं में से एक है Tax Saving Fixed Deposit. इन योजनाओं में जमा राशि पर धारा 80सी की सीमा तक दावा किया जा सकता है.
कर छूट का दावा करने के लिए, व्यक्ति और हिंदू अविभाजित परिवार (HUF) इन FDs में इनवेस्ट कर सकते हैं. इसके लिए अकाउंट उस बैंक में खोले जा सकते हैं जहां आपका पहले से खाता है या किसी दूसरे बैंक में. इन जमाओं पर मिलने वाले इंटरेस्ट को आपके कुल आय में शामिल किया जाना चाहिए. टैक्स का भुगतान वर्तमान में लागू स्लैब के आधार पर किया जाएगा.
TDS (tax deducted at source) तब लगाया जाता है, जब एक साल में बैंक में जमा राशि से मिलने वाला इंटरेस्ट 40,000 रुपये से ज्यादा हो. फॉर्म 15जी और फॉर्म 15एच फाइल करके इस TDS में डिस्काउंट मिल सकता है. वरिष्ठ नागरिकों के लिए एफडी पर इंटरेस्ट आय 50,000 रुपये तक टैक्स फ्री है.
हालांकि, कुछ ऐसे पहलू हैं जिस पर इन योजनाओं को लेने से पहले सोच- विचार करना चाहिए. टैक्स सेविंग फिक्स्ड डिपॉजिट पांच साल के लिए होता है. इस लॉक-इन पिरियड के दौरान इससे पैसा नहीं निकाल सकते हैं. साथ ही इन एफडी पर सिक्योरिटी के तौर पर कोई लोन नहीं लिया जा सकता है. इन जमाओं पर ब्याज दर अलग-अलग बैंकों में अलग-अलग होती है.
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