बेंगलूरू: कच्चे तेल की मौजूदा कम वैश्विक कीमत, भारत के लिए बहुत ज्यादा मायने नहीं रखती हैं क्योंकि देश को कोरोना वायरस की रोकथाम के लिए लागू लॉकडाऊन के कारण गंभीर आर्थिक मंदी का सामना करना पड़ रहा है. पूर्व भारतीय राजनयिक ने यह कहा है.
सऊदी अरब, ओमान और संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) में भारतीय राजदूत के रूप में काम कर चुके तलमीज अहमद ने कहा कि जाहिर तौर पर कच्चेतेल की कम कीमतें भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए अच्छी खबर है.
लेकिन उन्होंने कहा कि भारत सहित विश्व की अर्थव्यवस्थायें बहुत गंभीर आर्थिक मंदी की ओर बढ़ रही हैं.
पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय के पूर्व अतिरिक्त सचिव अहमद ने बताया, "भले ही कीमतें कम हों, लेकिन ऐसे समय में जब विकास दर का परिदृश्य बहुत धुंधला हो, इस कीमत गिरावट का कोई अधिक मतलब नहीं निकलता."
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उनका मानना था कि वैश्विक और घरेलू स्तर पर मंदी, देश के लिए एक गंभीर समस्या बनने जा रही है और यह वो यथार्थ है जिसपर प्राथमिकता से ध्यान देने की जरूरत है.
अहमद ने कहा, "कच्चे तेल की कम कीमतों का इसके अधिक उत्पादन के साथ तालमेल है लेकिन कीमतें इसलिए भी प्रभावित हुई हैं क्योंकि वैश्विक अर्थव्यवस्था का परिदृश्य भी बेहद नाजुक है. इसलिए, यह एक जटिल स्थिति है जहां भारत के लिए चिंता का मुख्य बिन्दु कच्चे तेल की कम कीमतें नहीं होना चाहिए बल्कि उसे इस बात पर जोर देना चाहिये कि अर्थव्यवस्था को कैसे प्रोत्साहन या गति दी जाये. इस कार्य में कुछ समय लगने वाला है क्योंकि कोरोनोवायरस के प्रभाव को आने वाले कई महीनों तक महसूस किया जायेगा." उनके अनुसार, अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करना आसान काम नहीं है.
उन्होंने कहा, "हमारे पास एक बहुत बड़ा अनौपचारिक क्षेत्र है जो लॉकडाउन के कारण हुए नुकसान से पूरी तरह से बिखर गया है और यह कुछ ऐसी बात है जिस ओर हमें गहराई से देखना होगा और सरकार को बड़े पैमाने पर नकदी खर्च करना होगा. इसके अलावा, विनिर्माण क्षेत्र लगभग एक ठहराव की स्थिति में है और फिर आईटी क्षेत्र को इस तथ्य से नुकसान पहुंचा है कि वैश्विक अर्थव्यवस्था इतनी खराब हालत में है."
उन्होंने कहा, "ये सभी चीजें एक दूसरे के साथ जुड़ी हैं, इसलिए हम केवल तेल की कीमत को ही बाकी अर्थव्यवस्था के प्रदर्शन से बाहर करके नहीं देख सकते हैं."
अहमद ने कहा कि केवल भारत ही नहीं, पूरे अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के समक्ष एक अंधकारमय भविष्य खड़ा है जो केवल इस वर्ष ही नहीं बल्कि अगले वर्ष के अधिकांश हिस्से में कायम रहने की संभावना है.
सोमवार को अंतरराष्ट्रीय तेल की कीमतें 17 साल के निचले स्तर पर आ गईं.
ब्रेंट क्रूड वायदा नवंबर 2002 के बाद से प्रति बैरल 23 डॉलर के आसपास के निचले स्तर को छू गया जबकि अमेरिकी कच्चातेल (यूएस क्रूड) थोड़े वक्त के लिए 20 डॉलर से नीचे गिर गया क्योंकि कोरोनोवायरस लॉकडाउन ने मांग को खत्म कर दिया.
(पीटीआई-भाषा)