नई दिल्ली: पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रहमण्यम ने बुधवार को राजकोषीय उत्तरदायित्व एवं बजट प्रबंधन (एफआरबीएम) अधिनियम को साल के अंत तक दुरुस्त करने की जरूरत बतायी, क्योंकि कोविड-19 संकट के चलते देश को सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) वृद्धि दर में भारी गिरावट देखनी पड़ेगी.
ईवाई इंडिया द्वारा आयोजित एक वेबिनार में सुब्रहमण्यम ने कहा कि श्रम सुधार अनिवार्य हैं, लेकिन जिस तरह कुछ राज्यों ने किया उस तरह नहीं. प्रवासी श्रमिकों के संकट के समय भी राज्यों ने श्रमिकों के साधारण सुरक्षा अधिकारों को दरकिनार कर दिया.
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सुब्रहमण्यम ने कहा, "यह अर्थव्यवस्था के लिए बहुत मुश्किल साल रहने वाला है. हमें अपनी जीडीपी वृद्धि दर में तीव्र गिरावट के लिए तैयार रहना चाहिए."
उन्होंने कहा, " हमें अपने को इस बात के लिए तैयार रखना चाहिए कि भारत का घाटा लगभग दहाई अंक में रहेगा. देश की राजकोषीय हालत बहुत-बहुत मुश्किल रहने वाली है."
सुब्रहमण्यम वर्तमान में हार्वर्ड विश्विविद्यालय में अतिथि प्राध्यापक हैं. उन्होंने कहा कि आर्थिक वृद्धि को प्रोत्साहित करने के लिए वित्तीय क्षेत्र का पुनरोद्धार करना अहम है.
देश की वृहद आर्थिक हालत के बारे में उन्होंने कहा कि कोविड-19 संकट के बीच एफआरबीएम अधिनियम और 15वें वित्त आयोग की संदर्भ शर्तों को अद्यतन करने की जरूरत है.
सुब्रहमण्यम ने कहा, "अगर 2020-21 के बजट से तुलना करें तो मेरे विचार से हालात बदल गए हैं. हमें अपने बजट आंकड़ों, एफआरबीएम अधिनियम और 15वें वित्त आयोग की संदर्भ शर्तों को संभवतया संशोधित करने की जरूरत है."
एफआरबीएम अधिनियम को 2003 में देश के राजकोषीय घाटे को अनुशासित रखने के लिए लाया गया था.
उन्होंने कहा कि सरकार ने 20 लाख करोड़ रुपये का जो आर्थिक प्रोत्साहन पैकेज घोषित किया है. इससे सरकार का ऋण बढ़ कर जीडीपी के 85 प्रतिशत तक चला जाएगा.
प्रमुख अर्थशास्त्री सुब्रहमण्यम ने कहा कि देश में महामारी नियंत्रण में नहीं है.
(पीटीआई-भाषा)