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भारत को सतत वृद्धि के लिए गहरे, व्यापक सुधारों की जरूरत: रिजर्व बैंक

रिजर्व बैंक ने अपने 'आकलन और संभावनाओं' में कहा है कि कोविड-19 महामारी ने वैश्विक अर्थव्यवस्था को बुरी तरह से 'तोड़' दिया है. भविष्य में वैश्विक अर्थव्यवस्था का आकार इस बात पर निर्भर करेगा कि इस महामारी का फैलाव कैसा रहता है, यह महामारी कब तक रहती है और कब तक इसके इलाज का टीका आता है.

भारत को सतत वृद्धि के लिए गहरे, व्यापक सुधारों की जरूरत: रिजर्व बैंक
भारत को सतत वृद्धि के लिए गहरे, व्यापक सुधारों की जरूरत: रिजर्व बैंक
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Published : Aug 25, 2020, 10:04 PM IST

मुंबई: भारतीय रिजर्व बैंक ने कहा है कि कोविड-19 महामारी के बीच भारत को सतत वृद्धि की राह पर लौटने के लिए गहरे और व्यापक सुधारों की जरूरत है. केंद्रीय बैंक ने आगाह किया है कि इस महामारी की वजह से देश की संभावित वृद्धि दर की क्षमता नीचे आएगी.

रिजर्व बैंक ने अपने 'आकलन और संभावनाओं' में कहा है कि कोविड-19 महामारी ने वैश्विक अर्थव्यवस्था को बुरी तरह से 'तोड़' दिया है. भविष्य में वैश्विक अर्थव्यवस्था का आकार इस बात पर निर्भर करेगा कि इस महामारी का फैलाव कैसा रहता है, यह महामारी कब तक रहती है और कब तक इसके इलाज का टीका आता है.

केंद्रीय बैंक का 'आकलन और संभावनाएं' 2019-20 की वार्षिक रिपोर्ट का हिस्सा हैं. रिजर्व बैंक ने कहा कि एक बात जो उभरकर आ रही है, वह यह है कि कोविड-19 के बाद की दुनिया बदल जाएगी और एक नया 'सामान्य' सामने आएगा.

रिजर्व बैंक ने कहा, "महामारी के बाद के परिदृश्य में गहराई वाले और व्यापक सुधारों की जरूरत होगी. उत्पाद बाजार से लेकर वित्तीय बाजार, कानूनी ढांचे और अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा के मोर्चे पर व्यापक सुधारों की जरूरत होगी. तभी आप वृद्धि दर में गिरावट से उबर सकते हैं और अर्थव्यवस्था को वृहद आर्थिक और वित्तीय स्थिरता के साथ मजबूत और सतत वृद्धि की राह पर ले जा सकते हैं."

रिजर्व बैंक ने कहा कि शेष दुनिया की तरह भारत में भी संभावित वृद्धि की संभावनाएं कमजोर होंगी.

"कोविड-19 के बाद के परिदृश्य में प्रोत्साहन पैकेज और नियामकीय रियायतों से हासिल वृद्धि को कायम रखना मुश्किल होगा, क्योंकि तब प्रोत्साहन हट जाएंगे."

रिजर्व बैंक ने कहा कि अर्थव्यवस्था में सुधार भी कुछ अलग होगा. वैश्विक वित्तीय संकट कई साल की तेज वृद्धि और वृहद आर्थिक स्थिरता के बाद आया था. वहीं कोविड-19 ने ऐसे समय अर्थव्यवस्था को झटका दिया है, जबकि पिछली कई तिमाहियों से यह सुस्त रफ्तार से आगे बढ़ रही थी.

राजकोषीय मजबूती की राह पर लौटने की स्पष्ट, समयबद्ध रणनीति जरूरी: आरबीआई

कोरोना वायरस महामारी के कारण चुनौतीपूर्ण बनती राजकोषीय स्थिति के बीच भारतीय रिजर्व बैंक ने कहा है कि सरकार को आने वाले वर्षों में राजकोषीय मजबूती के रास्ते पर लौटने के लिये स्पष्ट रणनीति और विश्वसनीय लक्ष्य तय करने होंगे.

रिजर्व बैंक की मंगलवार को जारी 2019-20 की वार्षिक रिपोर्ट में यह कहा गया है. रिपोर्ट में कहा गया है कि 25 राज्यों से मिली सूचनाओं के अनुसार 2019-20 (संशोधित अनुमान) में सरकारों का राजकोषीय घाटा बढ़कर सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 6.5 प्रतिशत तक पहुंच गया है, जो कि 2018-19 में 5.4 प्रतिशत पर था.

इसी तरह बकाया देनदारियां भी 2019-20 (संशोधित अनुमान) में बढ़कर जीडीपी का 70.4 प्रतिशत तक पहुंच गई हैं, जो 2018-19 में 67.5 प्रतिशत थीं. वित्त वर्ष 2020-21 के बजट में राजकोषीय घाटा और बकाया देनदारियों के अनुमानित लक्ष्य को क्रमश: जीडीपी के 5.8 प्रतिशत और 70.5 प्रतिशत पर रखा गया है.

हालांकि, खातों की शुरुआती सूचनाओं के मुताबिक सभी राज्य सरकारों सहित समूची सरकार का राजकोषीय घाटा 2019-20 में बढ़कर 7.5 प्रतिशत तक पहुंच सकता है.

रिपोर्ट कहती है, "इस प्रकार पिछले दो साल में राजकोषीय मोर्चे पर जो मजबूती हासिल कि गई वह 2019-20 में वापस उसी स्तर पर पहुंच गई."

ये भी पढ़ें: चंद्रशेखरन ने कहा- टाटा मोटर्स को तीन साल में बनाएंगे कर्ज मुक्त, उछले शेयर

रिपोर्ट में कहा गया है कि 2020-21 में राजकोषीय घाटे के जो बजट लक्ष्य रखे गए हैं, कोविड-19 की वजह से उन्हें हासिल करना और भी चुनौतीपूर्ण बन गया है. रिपोर्ट कहती है कि महामारी पर अंकुश के उपायों, स्वास्थ्य ढांचे के क्षेत्र में राजकोषीय हस्तक्षेप, समाज के कमजोर तबकों को मदद तथा विभिन्न क्षेत्रों के लिए किये गये राहत उपायों की वजह से राजकोषीय लक्ष्यों को हासिल करना और ज्यादा मुश्किल काम हो गया है.

रिजर्व बैंक की सालाना रिपोर्ट कहती है कि कोरोना वायरस महामारी के कारण ऊंचे राजकोषीय घाटे और अधिक कर्ज की वर्तमान नीति से निकलने की स्पष्ट रणनीति तथा विश्वसनीय समयबद्ध लक्ष्य रखने होंगे. रिजर्व बैंक ने कहा कि 2020-21 के जो भी अनुमान हैं वह मार्च में राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन शुरू होने से पहले के हैं.

इस दौरान आर्थिक गतिविधियों में ठहराव आने तथा महामारी से लड़ने के लिये सरकारी खर्च बढ़ने से सरकारों का राजकोषीय घाटा और कर्ज उठाव बजट लक्ष्य से कहीं ऊंचा रहने का अनुमान है.

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने फरवरी में पेश आम बजट में 2020-21 में राजकोषीय घाटा 7.96 लाख करोड़ रुपये यानी जीडीपी का 3.5 प्रतिशत रहने का लक्ष्य रखा था.

कोविड-19 के कारण बढ़े खर्च और कम राजस्व प्राप्ति से उत्पन्न स्थिति के चलते राजकोषीय घाटे का लक्ष्य उल्लेखनीय रूप से संशोधित किया जा सकता है. चालू वित्त वर्ष में अप्रैल से जून अवधि के दौरान राजकोषीय घाटा तय बजट लक्ष्य के 83.2 प्रतिशत यानी 6.62 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गया. इस दौरान प्राप्ति में कमी और व्यय बढ़ा है.

पिछले वित्त वर्ष का राजकोषीय घाटा जीडीपी के 3.3 प्रतिशत के अनूमान के मुकाबले अंतिम आंकड़े में 4.59 प्रतिशत तक रहने का अनुमान है. कोरोना वायरस से प्रभावित अर्थव्यवस्था को उबारने के लिए केंद्र सरकार ने लगभग 21 लाख करोड़ रुपये के पैकेज की घोषणा की है.

रिजर्व बैंक का अनुमान है कि 2020-21 में वास्तविक जीडीपी संकुचित होगा. राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही का जीडीपी 31 अगस्त को जारी करेगा.

देश के लिये अधिशेष खाद्यान्न का प्रबंधन प्रमुख चुनौती: आरबीआई रिपोर्ट

रिजर्व बैंक ने कहा है कि देश अब ऐसी स्थिति में पहुंच गया है, जहां अधिशेष खाद्यान्न का प्रबंधन बड़ी चुनौती है. देश में कुल खाद्यान्न उत्पादन 2019-20 में रिकार्ड 29.665 करोड़ टन पहुंच गया. वहीं बागवानी उत्पादन अबतक के सर्वोच्च स्तर 32.05 करोड़ टन रहा.

कृषि क्षेत्र में सकल मूल्यवर्धन में 40 प्रतिशत हिस्सेदारी बागवानी क्षेत्र की है. भारत अब दूध, अनाज, दाल, सब्जी, फल, कपास, गन्ना, मछली, कुक्कुट और पशुधन के मामनले में अग्रणी उत्पादकों में शामिल है. इसके परिणामस्वरूप 2019-20 में कृषि जीवीए में वृद्धि दर 4 प्रतिशत पर पहुंच गयी.

कृषि क्षेत्र का आर्थिक वृद्धि में योगदान 2013-14 के बाद पहली बार औद्योगिक क्षेत्र से आगे निकल गया है.

आरबीआई ने मंगलवार को अपनी सालाना रिपोर्ट में कहा, "देश अब ऐसी स्थिति में पहुंच गया है जहां अतिरिक्त खाद्यान्न का प्रबंधन बड़ी चुनौती है...आने वाले समय में कृषि के पक्ष में व्यापार शर्तों में बदलाव इस गतिशील परिवर्तन को बनाये रखने और कृषि उत्पादन में सकारात्मक आपूर्ति प्रतिक्रियाओं को उत्पन्न करने के लिहाज से महत्वपूर्ण है."

रिजर्व बैंक का अनुमान, आगामी महीनों में और बढ़ेगी मुद्रास्फीति

कोविड-19 की वजह से खाद्य और विनिर्मित उत्पादों की आपूर्ति श्रृंखला बाधित होने की वजह से आगामी महीनों में मुख्य मुद्रास्फीति और बढ़ेगी. रिजर्व बैंक की 2019-20 की वार्षिक रिपोर्ट में यह अनुमान लगाया गया है. रिजर्व बैंक ने कहा कि 2019-20 के अंतिम महीनों में मुख्य मुद्रास्फीति बढ़ी है.

खाद्य मुद्रास्फीति के लिए लघु अवधि का परिदृश्य अनिश्चित हो गया है.

रिपोर्ट में कहा गया है, "खाद्य और विनिर्मित उत्पादों की आपूर्ति श्रृंखला बाधित होने की वजह से क्षेत्र आधार पर कीमतें दबाव में रह सकती हैं. इससे मुख्य मुद्रास्फीति के बढ़ने का जोखिम है. वित्तीय बाजारों में उतार-चढ़ाव का भी मुद्रास्फीति पर असर पड़ेगा."

रिजर्व बैंक ने कहा कि इन सब कारणों से परिवारों की मुद्रास्फीति को लेकर उम्मीद प्रभावित हो सकती है. खाद्य और ईंधन कीमतों में बढ़ोतरी को लेकर परिवार संवेनदनशील होते है. ऐसे में मौद्रिक नीति में कीमतों में उतार-चढ़ाव पर लगातार नजर रखनी होगी. सरकारी आंकड़ों के अनुसार जुलाई में खुदरा मुद्रास्फीति बढ़कर 6.93 प्रतिशत पर पहुंच गई.

मुख्य रूप से सब्जियों, दालों, मांस और मछली के दाम बढ़ने की वजह से मुद्रास्फीति बढ़ी है. इसी महीने रिजर्व बैंक ने मौद्रिक नीति समीक्षा में कहा था कि दूसरी तिमाही में खुदरा मुद्रास्फीति बढ़ेगी.

हालांकि चालू वित्त वर्ष की दूसरी छमाही में यह नीचे आएगी. रिजर्व बैंक ने कहा कि खाद्य वस्तुओं के समूह में विभिन्न उत्पादों की कीमतों में अलग-अलग समय में तेजी आती है. प्याज, अदरक, बैंगन, फूलगोभी, भिंडी और हरी मटर की कीमतों में सीजन के आधार पर व्यवहार में बदलाव हुआ है.

बैंकों ने 2019-20 में रेपो दर में कटौती का लाभ ग्राहकों को अधिक तेजी से दिया: रिजर्व बैंक

बीते वित्त वर्ष 2019-20 के दौरान रेपो दर में बदलाव के जवाब में बैंकों की जमा और ऋण दरों में बेहतर समायोजन देखने को मिला. विशेषरूप से साल की दूसरी छमाही में इसमें अधिक सुधार आया. रिजर्व बैंक की 2019-20 की वार्षिक रिपोर्ट में यह कहा गया है.

रिपोर्ट में कहा गया है कि अक्टूबर, 2019 से कुछ क्षेत्रों मसलन व्यक्तिगत, सूक्ष्म, लघु एवं मझोले उपक्रमों (एमएसएमई) को नए कर्ज पर ब्याज दरों को बाहरी मानकों से जोड़ने को अनिवार्य किया गया . इसकी वजह से ऐसा हो पाया है.

बाहरी बेंचमार्क नीतिगत रेपो दर, तीन माह, छह माह के टी-बिल या भारतीय वित्तीय बेंचमार्क्स (एफबीआईएल) द्वारा प्रकाशित कोई अन्य बेंचमार्क हो सकती है. रिपोर्ट में बताया गया है कि अक्टूबर, 2019 से जून, 2020 के दौरान घरेलू बैंकों (सार्वजनिक और निजी क्षेत्र) के रुपये में आवास ऋण की ब्याज दर में औसतन 1.04 प्रतिशत की गिरावट आई.

वहीं वाहन ऋण पर इसमें 1.02 प्रतिशत, व्यक्तिगत ऋण में 1.15 प्रतिशत तथा एमएसएमई को ऋण में 1.98 प्रतिशत की कमी आई. रिजर्व बैंक ने कहा कि ऋण पर ब्याज के लिए बाहरी बेंचमार्क प्रणाली को लागू किए जाने के बाद 66 में 36 बैंकों ने खुदरा और एमएसएमई क्षेत्र को फ्लोटिंग दरों वाले ऋण के लिए नीतिगत रेपो को बाहरी बेंचमार्क के रूप में अपनाया. वहीं सात बैंकों ने क्षेत्र आधारित बेंचमार्क को लागू किया.

मौद्रिक नीति समिति फरवरी, 2019 से कुल मिलाकर मुख्य लघु अवधि की ऋण दर (रेपो) में 2.5 प्रतिशत की कटौती कर चुकी है.

कोविड-19 के आर्थिक प्रभाव का अभी सही आकलन कर पाना मुश्किल: आरबीआई

रिजर्व बैंक ने मंगलवार को कहा कि कोविड-19 के आर्थिक प्रभाव का सही आकलन करना मुश्किल है क्योंकि अभी नयी स्थितियां उभर ही रही हैं.

आरबीआई ने अपनी सालाना रिपोर्ट में कहा, "कोविड-19 महामारी से जुड़ी स्थितियां अभी तेजी से उभरती जा रही हैं. ऐसे में इसके पूर्ण वृहत आर्थिक प्रभाव का सही आकलन करना मुश्किल है."

रपट में कहा गया है कि कोविड-19 और उसकी रोथाम के लिये लगाये गये 'लॉकडाउन' के भारतीय अर्थव्यवस्था पर प्रभावों के बारे में नव केंसवादी मान्यताओं वाले तैयार गतिशील संभाव्यताओं पर आधारित सामान्य संतुलन (डीएसजीई) के मॉडल से एक अस्थायी और मोटा आकलन प्राप्त होता है.

इस मॉडल के तहत यह माना गया कि संक्रमण के मामले अगस्त 2020 में उच्च स्तर पर होंगे और जब अर्थव्यवस्था सर्वाधिक प्रभावित होगी और अर्थव्यवस्था की संभावनाओं की तुलना में वस्तविक उत्पादन 12 प्रतिशत कम हो जाएगा. इस माडल में को तीन आर्थिक अभिकर्ताओं..परिवार, कंपनी और सरकार रख कर आकलन किया गया है.

रिपोर्ट के अनुसार 'लॉकडाउन' में लोगों (परिवार) को घर पर रहना पड़ रहा है, इससे कंपनियों के लिये श्रमिकों की आपूर्ति प्रभावित हुई है.

गैर-जरूरी सामानों के उपलब्ध नहीं होने और आय कम होने से खपत घटी. लोगों के मिलने-जुलने पर प्रतिबंध से महामारी का प्रसार थमता है.

आरबीआई ने कहा कि मॉडल में दूसरो परिदृश्यों की कल्पना की गयी है. पहला, लॉकडाउन एक से श्रमिकों की आपूर्ति और उत्पादकता कम होने से अर्थव्यवस्था के आपूर्ति पक्ष पर असर पड़ता है. दूसरी स्थिति, लॉकडाउन दो है. इसमें सीमांत लागत में वृद्धि पर विचार किया गया है.

दोनों ही परिदृश्य में मुद्रास्फीति में कमी की संभावना देखी गयी. दूसरी स्थिति में कंपनियां लाभ पर असर होने के कारण उत्पादन कम करेंगी. वेतन में कम वृद्धि होगी और अर्थव्यवस्था में बड़े पैमाने पर गिरावट होगी.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

मुंबई: भारतीय रिजर्व बैंक ने कहा है कि कोविड-19 महामारी के बीच भारत को सतत वृद्धि की राह पर लौटने के लिए गहरे और व्यापक सुधारों की जरूरत है. केंद्रीय बैंक ने आगाह किया है कि इस महामारी की वजह से देश की संभावित वृद्धि दर की क्षमता नीचे आएगी.

रिजर्व बैंक ने अपने 'आकलन और संभावनाओं' में कहा है कि कोविड-19 महामारी ने वैश्विक अर्थव्यवस्था को बुरी तरह से 'तोड़' दिया है. भविष्य में वैश्विक अर्थव्यवस्था का आकार इस बात पर निर्भर करेगा कि इस महामारी का फैलाव कैसा रहता है, यह महामारी कब तक रहती है और कब तक इसके इलाज का टीका आता है.

केंद्रीय बैंक का 'आकलन और संभावनाएं' 2019-20 की वार्षिक रिपोर्ट का हिस्सा हैं. रिजर्व बैंक ने कहा कि एक बात जो उभरकर आ रही है, वह यह है कि कोविड-19 के बाद की दुनिया बदल जाएगी और एक नया 'सामान्य' सामने आएगा.

रिजर्व बैंक ने कहा, "महामारी के बाद के परिदृश्य में गहराई वाले और व्यापक सुधारों की जरूरत होगी. उत्पाद बाजार से लेकर वित्तीय बाजार, कानूनी ढांचे और अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा के मोर्चे पर व्यापक सुधारों की जरूरत होगी. तभी आप वृद्धि दर में गिरावट से उबर सकते हैं और अर्थव्यवस्था को वृहद आर्थिक और वित्तीय स्थिरता के साथ मजबूत और सतत वृद्धि की राह पर ले जा सकते हैं."

रिजर्व बैंक ने कहा कि शेष दुनिया की तरह भारत में भी संभावित वृद्धि की संभावनाएं कमजोर होंगी.

"कोविड-19 के बाद के परिदृश्य में प्रोत्साहन पैकेज और नियामकीय रियायतों से हासिल वृद्धि को कायम रखना मुश्किल होगा, क्योंकि तब प्रोत्साहन हट जाएंगे."

रिजर्व बैंक ने कहा कि अर्थव्यवस्था में सुधार भी कुछ अलग होगा. वैश्विक वित्तीय संकट कई साल की तेज वृद्धि और वृहद आर्थिक स्थिरता के बाद आया था. वहीं कोविड-19 ने ऐसे समय अर्थव्यवस्था को झटका दिया है, जबकि पिछली कई तिमाहियों से यह सुस्त रफ्तार से आगे बढ़ रही थी.

राजकोषीय मजबूती की राह पर लौटने की स्पष्ट, समयबद्ध रणनीति जरूरी: आरबीआई

कोरोना वायरस महामारी के कारण चुनौतीपूर्ण बनती राजकोषीय स्थिति के बीच भारतीय रिजर्व बैंक ने कहा है कि सरकार को आने वाले वर्षों में राजकोषीय मजबूती के रास्ते पर लौटने के लिये स्पष्ट रणनीति और विश्वसनीय लक्ष्य तय करने होंगे.

रिजर्व बैंक की मंगलवार को जारी 2019-20 की वार्षिक रिपोर्ट में यह कहा गया है. रिपोर्ट में कहा गया है कि 25 राज्यों से मिली सूचनाओं के अनुसार 2019-20 (संशोधित अनुमान) में सरकारों का राजकोषीय घाटा बढ़कर सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 6.5 प्रतिशत तक पहुंच गया है, जो कि 2018-19 में 5.4 प्रतिशत पर था.

इसी तरह बकाया देनदारियां भी 2019-20 (संशोधित अनुमान) में बढ़कर जीडीपी का 70.4 प्रतिशत तक पहुंच गई हैं, जो 2018-19 में 67.5 प्रतिशत थीं. वित्त वर्ष 2020-21 के बजट में राजकोषीय घाटा और बकाया देनदारियों के अनुमानित लक्ष्य को क्रमश: जीडीपी के 5.8 प्रतिशत और 70.5 प्रतिशत पर रखा गया है.

हालांकि, खातों की शुरुआती सूचनाओं के मुताबिक सभी राज्य सरकारों सहित समूची सरकार का राजकोषीय घाटा 2019-20 में बढ़कर 7.5 प्रतिशत तक पहुंच सकता है.

रिपोर्ट कहती है, "इस प्रकार पिछले दो साल में राजकोषीय मोर्चे पर जो मजबूती हासिल कि गई वह 2019-20 में वापस उसी स्तर पर पहुंच गई."

ये भी पढ़ें: चंद्रशेखरन ने कहा- टाटा मोटर्स को तीन साल में बनाएंगे कर्ज मुक्त, उछले शेयर

रिपोर्ट में कहा गया है कि 2020-21 में राजकोषीय घाटे के जो बजट लक्ष्य रखे गए हैं, कोविड-19 की वजह से उन्हें हासिल करना और भी चुनौतीपूर्ण बन गया है. रिपोर्ट कहती है कि महामारी पर अंकुश के उपायों, स्वास्थ्य ढांचे के क्षेत्र में राजकोषीय हस्तक्षेप, समाज के कमजोर तबकों को मदद तथा विभिन्न क्षेत्रों के लिए किये गये राहत उपायों की वजह से राजकोषीय लक्ष्यों को हासिल करना और ज्यादा मुश्किल काम हो गया है.

रिजर्व बैंक की सालाना रिपोर्ट कहती है कि कोरोना वायरस महामारी के कारण ऊंचे राजकोषीय घाटे और अधिक कर्ज की वर्तमान नीति से निकलने की स्पष्ट रणनीति तथा विश्वसनीय समयबद्ध लक्ष्य रखने होंगे. रिजर्व बैंक ने कहा कि 2020-21 के जो भी अनुमान हैं वह मार्च में राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन शुरू होने से पहले के हैं.

इस दौरान आर्थिक गतिविधियों में ठहराव आने तथा महामारी से लड़ने के लिये सरकारी खर्च बढ़ने से सरकारों का राजकोषीय घाटा और कर्ज उठाव बजट लक्ष्य से कहीं ऊंचा रहने का अनुमान है.

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने फरवरी में पेश आम बजट में 2020-21 में राजकोषीय घाटा 7.96 लाख करोड़ रुपये यानी जीडीपी का 3.5 प्रतिशत रहने का लक्ष्य रखा था.

कोविड-19 के कारण बढ़े खर्च और कम राजस्व प्राप्ति से उत्पन्न स्थिति के चलते राजकोषीय घाटे का लक्ष्य उल्लेखनीय रूप से संशोधित किया जा सकता है. चालू वित्त वर्ष में अप्रैल से जून अवधि के दौरान राजकोषीय घाटा तय बजट लक्ष्य के 83.2 प्रतिशत यानी 6.62 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गया. इस दौरान प्राप्ति में कमी और व्यय बढ़ा है.

पिछले वित्त वर्ष का राजकोषीय घाटा जीडीपी के 3.3 प्रतिशत के अनूमान के मुकाबले अंतिम आंकड़े में 4.59 प्रतिशत तक रहने का अनुमान है. कोरोना वायरस से प्रभावित अर्थव्यवस्था को उबारने के लिए केंद्र सरकार ने लगभग 21 लाख करोड़ रुपये के पैकेज की घोषणा की है.

रिजर्व बैंक का अनुमान है कि 2020-21 में वास्तविक जीडीपी संकुचित होगा. राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही का जीडीपी 31 अगस्त को जारी करेगा.

देश के लिये अधिशेष खाद्यान्न का प्रबंधन प्रमुख चुनौती: आरबीआई रिपोर्ट

रिजर्व बैंक ने कहा है कि देश अब ऐसी स्थिति में पहुंच गया है, जहां अधिशेष खाद्यान्न का प्रबंधन बड़ी चुनौती है. देश में कुल खाद्यान्न उत्पादन 2019-20 में रिकार्ड 29.665 करोड़ टन पहुंच गया. वहीं बागवानी उत्पादन अबतक के सर्वोच्च स्तर 32.05 करोड़ टन रहा.

कृषि क्षेत्र में सकल मूल्यवर्धन में 40 प्रतिशत हिस्सेदारी बागवानी क्षेत्र की है. भारत अब दूध, अनाज, दाल, सब्जी, फल, कपास, गन्ना, मछली, कुक्कुट और पशुधन के मामनले में अग्रणी उत्पादकों में शामिल है. इसके परिणामस्वरूप 2019-20 में कृषि जीवीए में वृद्धि दर 4 प्रतिशत पर पहुंच गयी.

कृषि क्षेत्र का आर्थिक वृद्धि में योगदान 2013-14 के बाद पहली बार औद्योगिक क्षेत्र से आगे निकल गया है.

आरबीआई ने मंगलवार को अपनी सालाना रिपोर्ट में कहा, "देश अब ऐसी स्थिति में पहुंच गया है जहां अतिरिक्त खाद्यान्न का प्रबंधन बड़ी चुनौती है...आने वाले समय में कृषि के पक्ष में व्यापार शर्तों में बदलाव इस गतिशील परिवर्तन को बनाये रखने और कृषि उत्पादन में सकारात्मक आपूर्ति प्रतिक्रियाओं को उत्पन्न करने के लिहाज से महत्वपूर्ण है."

रिजर्व बैंक का अनुमान, आगामी महीनों में और बढ़ेगी मुद्रास्फीति

कोविड-19 की वजह से खाद्य और विनिर्मित उत्पादों की आपूर्ति श्रृंखला बाधित होने की वजह से आगामी महीनों में मुख्य मुद्रास्फीति और बढ़ेगी. रिजर्व बैंक की 2019-20 की वार्षिक रिपोर्ट में यह अनुमान लगाया गया है. रिजर्व बैंक ने कहा कि 2019-20 के अंतिम महीनों में मुख्य मुद्रास्फीति बढ़ी है.

खाद्य मुद्रास्फीति के लिए लघु अवधि का परिदृश्य अनिश्चित हो गया है.

रिपोर्ट में कहा गया है, "खाद्य और विनिर्मित उत्पादों की आपूर्ति श्रृंखला बाधित होने की वजह से क्षेत्र आधार पर कीमतें दबाव में रह सकती हैं. इससे मुख्य मुद्रास्फीति के बढ़ने का जोखिम है. वित्तीय बाजारों में उतार-चढ़ाव का भी मुद्रास्फीति पर असर पड़ेगा."

रिजर्व बैंक ने कहा कि इन सब कारणों से परिवारों की मुद्रास्फीति को लेकर उम्मीद प्रभावित हो सकती है. खाद्य और ईंधन कीमतों में बढ़ोतरी को लेकर परिवार संवेनदनशील होते है. ऐसे में मौद्रिक नीति में कीमतों में उतार-चढ़ाव पर लगातार नजर रखनी होगी. सरकारी आंकड़ों के अनुसार जुलाई में खुदरा मुद्रास्फीति बढ़कर 6.93 प्रतिशत पर पहुंच गई.

मुख्य रूप से सब्जियों, दालों, मांस और मछली के दाम बढ़ने की वजह से मुद्रास्फीति बढ़ी है. इसी महीने रिजर्व बैंक ने मौद्रिक नीति समीक्षा में कहा था कि दूसरी तिमाही में खुदरा मुद्रास्फीति बढ़ेगी.

हालांकि चालू वित्त वर्ष की दूसरी छमाही में यह नीचे आएगी. रिजर्व बैंक ने कहा कि खाद्य वस्तुओं के समूह में विभिन्न उत्पादों की कीमतों में अलग-अलग समय में तेजी आती है. प्याज, अदरक, बैंगन, फूलगोभी, भिंडी और हरी मटर की कीमतों में सीजन के आधार पर व्यवहार में बदलाव हुआ है.

बैंकों ने 2019-20 में रेपो दर में कटौती का लाभ ग्राहकों को अधिक तेजी से दिया: रिजर्व बैंक

बीते वित्त वर्ष 2019-20 के दौरान रेपो दर में बदलाव के जवाब में बैंकों की जमा और ऋण दरों में बेहतर समायोजन देखने को मिला. विशेषरूप से साल की दूसरी छमाही में इसमें अधिक सुधार आया. रिजर्व बैंक की 2019-20 की वार्षिक रिपोर्ट में यह कहा गया है.

रिपोर्ट में कहा गया है कि अक्टूबर, 2019 से कुछ क्षेत्रों मसलन व्यक्तिगत, सूक्ष्म, लघु एवं मझोले उपक्रमों (एमएसएमई) को नए कर्ज पर ब्याज दरों को बाहरी मानकों से जोड़ने को अनिवार्य किया गया . इसकी वजह से ऐसा हो पाया है.

बाहरी बेंचमार्क नीतिगत रेपो दर, तीन माह, छह माह के टी-बिल या भारतीय वित्तीय बेंचमार्क्स (एफबीआईएल) द्वारा प्रकाशित कोई अन्य बेंचमार्क हो सकती है. रिपोर्ट में बताया गया है कि अक्टूबर, 2019 से जून, 2020 के दौरान घरेलू बैंकों (सार्वजनिक और निजी क्षेत्र) के रुपये में आवास ऋण की ब्याज दर में औसतन 1.04 प्रतिशत की गिरावट आई.

वहीं वाहन ऋण पर इसमें 1.02 प्रतिशत, व्यक्तिगत ऋण में 1.15 प्रतिशत तथा एमएसएमई को ऋण में 1.98 प्रतिशत की कमी आई. रिजर्व बैंक ने कहा कि ऋण पर ब्याज के लिए बाहरी बेंचमार्क प्रणाली को लागू किए जाने के बाद 66 में 36 बैंकों ने खुदरा और एमएसएमई क्षेत्र को फ्लोटिंग दरों वाले ऋण के लिए नीतिगत रेपो को बाहरी बेंचमार्क के रूप में अपनाया. वहीं सात बैंकों ने क्षेत्र आधारित बेंचमार्क को लागू किया.

मौद्रिक नीति समिति फरवरी, 2019 से कुल मिलाकर मुख्य लघु अवधि की ऋण दर (रेपो) में 2.5 प्रतिशत की कटौती कर चुकी है.

कोविड-19 के आर्थिक प्रभाव का अभी सही आकलन कर पाना मुश्किल: आरबीआई

रिजर्व बैंक ने मंगलवार को कहा कि कोविड-19 के आर्थिक प्रभाव का सही आकलन करना मुश्किल है क्योंकि अभी नयी स्थितियां उभर ही रही हैं.

आरबीआई ने अपनी सालाना रिपोर्ट में कहा, "कोविड-19 महामारी से जुड़ी स्थितियां अभी तेजी से उभरती जा रही हैं. ऐसे में इसके पूर्ण वृहत आर्थिक प्रभाव का सही आकलन करना मुश्किल है."

रपट में कहा गया है कि कोविड-19 और उसकी रोथाम के लिये लगाये गये 'लॉकडाउन' के भारतीय अर्थव्यवस्था पर प्रभावों के बारे में नव केंसवादी मान्यताओं वाले तैयार गतिशील संभाव्यताओं पर आधारित सामान्य संतुलन (डीएसजीई) के मॉडल से एक अस्थायी और मोटा आकलन प्राप्त होता है.

इस मॉडल के तहत यह माना गया कि संक्रमण के मामले अगस्त 2020 में उच्च स्तर पर होंगे और जब अर्थव्यवस्था सर्वाधिक प्रभावित होगी और अर्थव्यवस्था की संभावनाओं की तुलना में वस्तविक उत्पादन 12 प्रतिशत कम हो जाएगा. इस माडल में को तीन आर्थिक अभिकर्ताओं..परिवार, कंपनी और सरकार रख कर आकलन किया गया है.

रिपोर्ट के अनुसार 'लॉकडाउन' में लोगों (परिवार) को घर पर रहना पड़ रहा है, इससे कंपनियों के लिये श्रमिकों की आपूर्ति प्रभावित हुई है.

गैर-जरूरी सामानों के उपलब्ध नहीं होने और आय कम होने से खपत घटी. लोगों के मिलने-जुलने पर प्रतिबंध से महामारी का प्रसार थमता है.

आरबीआई ने कहा कि मॉडल में दूसरो परिदृश्यों की कल्पना की गयी है. पहला, लॉकडाउन एक से श्रमिकों की आपूर्ति और उत्पादकता कम होने से अर्थव्यवस्था के आपूर्ति पक्ष पर असर पड़ता है. दूसरी स्थिति, लॉकडाउन दो है. इसमें सीमांत लागत में वृद्धि पर विचार किया गया है.

दोनों ही परिदृश्य में मुद्रास्फीति में कमी की संभावना देखी गयी. दूसरी स्थिति में कंपनियां लाभ पर असर होने के कारण उत्पादन कम करेंगी. वेतन में कम वृद्धि होगी और अर्थव्यवस्था में बड़े पैमाने पर गिरावट होगी.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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