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सरकारी बैंकों का निजीकरण नहीं उनमें सरकारी हिस्सेदारी घटाकर 26 प्रतिशत करने की जरूरत

मराठे ने कहा कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों (पीएसबी) को भविष्य में प्रासंगिक और प्रभावी होने के लिए अपनी प्रणाली, प्रक्रियाओं और कर्मचारियों के बर्ताव में आमूलचूल बदलाव करने की जरूरत है. उन्होंने बैंकों के राष्ट्रीयकरण की 51वीं वर्षगांठ के मौके पर आयोजित एक ऑनलाइन संगोष्ठी के दौरान यह टिप्पणी की.

सरकारी बैंकों का निजीकरण नहीं उनमें सरकारी हिस्सेदारी घटाकर 26 प्रतिशत करने की जरूरत
सरकारी बैंकों का निजीकरण नहीं उनमें सरकारी हिस्सेदारी घटाकर 26 प्रतिशत करने की जरूरत
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Published : Jul 27, 2020, 12:40 PM IST

मुंबई: भारतीय रिजर्व बैंक के निदेशक मंडल के सदस्य सतीश मराठे ने शनिवार को कहा कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की देश के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका को देखते हुए उनका निजीकरण नहीं किया जाना चाहिए, बल्कि सरकार को इनमें अपनी हिस्सेदारी का बड़ा हिस्सा आम भारतीय को बेचकर अपनी हिस्सेदारी को घटाकर 26 प्रतिशत पर लाने पर विचार करना चाहिये.

मराठे ने कहा कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों (पीएसबी) को भविष्य में प्रासंगिक और प्रभावी होने के लिए अपनी प्रणाली, प्रक्रियाओं और कर्मचारियों के बर्ताव में आमूलचूल बदलाव करने की जरूरत है. उन्होंने बैंकों के राष्ट्रीयकरण की 51वीं वर्षगांठ के मौके पर आयोजित एक ऑनलाइन संगोष्ठी के दौरान यह टिप्पणी की.

ये भी पढ़ें-टूटा पिछला रिकॉर्ड, वैश्विक बाजार में नई ऊंचाई पर सोने की कीमत

उन्होंने कहा, "पीएसबी का स्वामित्व बड़े स्तर पर आम लोगों के पास जाना चाहिए. सरकार की हिस्सेदारी बनी रह सकती है. मैं कहना चाहूंगा कि इसे 26 प्रतिशत से अधिक होना चाहिए, जहां उन्हें सांविधिक प्रावधान प्राप्त हों."

उन्होंने साथ ही कहा कि व्यक्तिगत हिस्सेदारी की सीमा और अन्य कानूनों के जरिए यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि कोई भी संस्था या समूह इन बैंकों पर अत्यधिक नियंत्रण न हासिल कर सके.

उन्होंने कहा कि पिछले 51 वर्षों में बनाए गए इस बुनियादी ढांचे को खत्म करने के नुकसान काफी अधिक होंगे. पिछले कई वर्षों के प्रयासों के बावजूद देश गरीब बना हुआ है और वित्तीय पहुंच को व्यापक बनाने के प्रयासों को सीमित सफलता मिली है.

मराठे ने कहा कि 50 करोड़ लोग अभी भी औपचारिक वित्तीय प्रणाली से अछूते बने हुए हैं और आरबीआई के 2004 से वित्तीय समावेश के प्रयासों के बावजूद कोई बैंक या सूक्ष्म वित्त संस्थान उन तक नहीं पहुंच सका है. इनके कार्य-व्यवहार में बदलाव की जरूरत पर जोर देते हुए उन्होंने अपनी बेटी का उदाहरण दिया, जो प्रशिक्षित इत्र कारोबारी है, और जिन्हें महीनों तक कोशिश के बावजूद सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक से 10 लाख रुपये का कर्ज नहीं मिल सका.

उन्होंने कहा कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को छोटे कारोबार खंड के साथ ही पूरे ग्रामीण क्षेत्र को लेकर अपने नजरिए को बदलने की जरूरत है.

(पीटीआई-भाषा)

मुंबई: भारतीय रिजर्व बैंक के निदेशक मंडल के सदस्य सतीश मराठे ने शनिवार को कहा कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की देश के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका को देखते हुए उनका निजीकरण नहीं किया जाना चाहिए, बल्कि सरकार को इनमें अपनी हिस्सेदारी का बड़ा हिस्सा आम भारतीय को बेचकर अपनी हिस्सेदारी को घटाकर 26 प्रतिशत पर लाने पर विचार करना चाहिये.

मराठे ने कहा कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों (पीएसबी) को भविष्य में प्रासंगिक और प्रभावी होने के लिए अपनी प्रणाली, प्रक्रियाओं और कर्मचारियों के बर्ताव में आमूलचूल बदलाव करने की जरूरत है. उन्होंने बैंकों के राष्ट्रीयकरण की 51वीं वर्षगांठ के मौके पर आयोजित एक ऑनलाइन संगोष्ठी के दौरान यह टिप्पणी की.

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उन्होंने कहा, "पीएसबी का स्वामित्व बड़े स्तर पर आम लोगों के पास जाना चाहिए. सरकार की हिस्सेदारी बनी रह सकती है. मैं कहना चाहूंगा कि इसे 26 प्रतिशत से अधिक होना चाहिए, जहां उन्हें सांविधिक प्रावधान प्राप्त हों."

उन्होंने साथ ही कहा कि व्यक्तिगत हिस्सेदारी की सीमा और अन्य कानूनों के जरिए यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि कोई भी संस्था या समूह इन बैंकों पर अत्यधिक नियंत्रण न हासिल कर सके.

उन्होंने कहा कि पिछले 51 वर्षों में बनाए गए इस बुनियादी ढांचे को खत्म करने के नुकसान काफी अधिक होंगे. पिछले कई वर्षों के प्रयासों के बावजूद देश गरीब बना हुआ है और वित्तीय पहुंच को व्यापक बनाने के प्रयासों को सीमित सफलता मिली है.

मराठे ने कहा कि 50 करोड़ लोग अभी भी औपचारिक वित्तीय प्रणाली से अछूते बने हुए हैं और आरबीआई के 2004 से वित्तीय समावेश के प्रयासों के बावजूद कोई बैंक या सूक्ष्म वित्त संस्थान उन तक नहीं पहुंच सका है. इनके कार्य-व्यवहार में बदलाव की जरूरत पर जोर देते हुए उन्होंने अपनी बेटी का उदाहरण दिया, जो प्रशिक्षित इत्र कारोबारी है, और जिन्हें महीनों तक कोशिश के बावजूद सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक से 10 लाख रुपये का कर्ज नहीं मिल सका.

उन्होंने कहा कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को छोटे कारोबार खंड के साथ ही पूरे ग्रामीण क्षेत्र को लेकर अपने नजरिए को बदलने की जरूरत है.

(पीटीआई-भाषा)

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