नई दिल्ली: केंद्रीय मंत्रिमंडल ने बुधवार को नयी शिक्षा नीति को मंजूरी दे दी. साथ ही मानव संसाधन विकास मंत्रालय का पुन: नामकरण शिक्षा मंत्रालय किया गया है. केंद्रीय मंत्रिमंडल ने बुधवार को शिक्षा पर सार्वजनिक खर्च को सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के मौजूदा लगभग 4 प्रतिशत से बढ़ा कर लगभग 6 प्रतिशत तक करने की योजना को मंजूरी दे दी है.
गौरतलब है कि वर्तमान शिक्षा नीति 1986 में तैयार की गयी थी और इसे 1992 में संशोधित किया गया था. नयी शिक्षा नीति का विषय 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले भारतीय जनता पार्टी के चुनावी घोषणा पत्र में शामिल था.
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पिछले साल केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कहा कि संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन(संप्रग) सरकार के कार्यकाल में शिक्षा पर होने वाला व्यय साल 2014 के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 3.8 प्रतिशत की तुलना में बढ़कर 2019 में 4.6 प्रतिशत हो गया था.
1964-66 के कोठारी आयोग से लेकर अब तक के सभी शिक्षा आयोगों और समितियों ने एक स्वर से शिक्षा पर सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का छह फीसद खर्च करने की सिफारिश की थी, लेकिन पिछले लगभग 55 वर्षों में यह लक्ष्य हासिल नहीं हो पाया था.
कौन सा देश कितना खर्च करता है शिक्षा पर?
अमेरिका अपनी जीडीपी का 5.8 प्रतिशत शिक्षा पर खर्च करता है. जबकि उसकी जनसंख्या हमारे देश से बहुत कम है. अमेरिका का शिक्षा पर पिछले 22 सालों में सबसे कम खर्च भी 4 प्रतिशत से ऊपर ही रहा है. जहां तक अभी हम पहुंचे भी नहीं. वहीं, चीन 2012 से अपनी जीडीपी का 4 प्रतिशत शिक्षा पर खर्च करता है.
बता दें कि जिंबाब्वे, कोस्टारिका, किर्गिस्तान से लेकर भूटान जैसे देश शिक्षा पर अपने जीडीपी का 6 से 7.5 प्रतिशत खर्च करते हैं. स्वीडन, फिनलैंड जैसे विकसित देशों में यह व्यय 7 से 7.5 प्रतिशत है.
मसौदा तैयार करने वाले विशेषज्ञों ने पूर्व कैबिनेट सचिव टी एस आर सुब्रमण्यम के नेतृत्व वाली समिति द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट पर भी विचार किया. इस समिति का गठन मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने तब किया था जब मंत्रालय का जिम्मा स्मृति ईरानी के पास था.
(पीटीआई इनपुट के साथ)