हैदराबाद: आज का दिन भारत के लिए एक असामान्य स्वतंत्रता दिवस है. देश में अभी भी कोरोना वायरस फैल रहा है. इस वायरस ने पूरी दुनिया में जीवन और आजीविका दोनों को काफी प्रभावित किया है.
भारत को दो कारणों से आर्थिक झटका लगा है. पहला, ये कि कोरोना वायरस आने से पहले ही देश की जीडीपी चौथे तिमाही में 3.1% पर आ गई थी. बेरोजगारी, कम आय, ग्रामीण संकट और व्यापक असमानता की मौजूदा समस्याएं भी अर्थव्यवस्था पर भारी पड़ रही हैं. दूसरा, भारत का बड़ा अनौपचारिक क्षेत्र आर्थिक संकट से गुजर रहा है और काफी असुरक्षित है.
महामारी के कारण श्रम बाजार को अभूतपूर्व झटका लगा है. लॉकडाउन ने लगभग सभी आर्थिक गतिविधियों को प्रभावित किया है. लेकिन सबसे बुरी तरह प्रभावित हैं प्रवासी श्रमिक. महामारी के कारण श्रमिकों को नौकरियों और आय में व्यापक नुकसान हुआ है. मार्च में बेरोजगारी दर 8.4% से बढ़कर अप्रैल और मई 2020 में 27% हो गया था. बेरोजगार होने वालों में सबसे ज्यादा छोटे व्यापारी और दिहाड़ी मजदूर थे.
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जून के बाद देश के कई हिस्सों को अनलॉक किया गया. जिससे अर्थव्यवस्था और आजीविका में कुछ हद तक सुधार हुआ लेकिन भारत के कुछ अन्य हिस्सों में अभी भी लॉकडाउन जारी है. महामारी की अवधि और प्रसार अभी भी अनिश्चित है. ग्रामीण अर्थव्यवस्था का प्रदर्शन महत्वपूर्ण है क्योंकि कुल आबादी का लगभग 70 प्रतिशत हिस्सा ग्रामीण क्षेत्रों में रहता है.
ग्रामीण क्षेत्रों पर कोरोना का प्रतिकूल प्रभाव शहरी क्षेत्रों की तुलना में बहुत कम है. ऐसी भी रिपोर्टें हैं कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था लॉकडाउन के बाद पुनर्जीवित हो रही है. यह सच है कि भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए अब एकमात्र बचत अनुग्रह कृषि क्षेत्र का प्रदर्शन है. वित्त वर्ष 21 में कृषि जीडीपी 2.5 से 3 प्रतिशत बढ़ने की उम्मीद है. हालांकि, जीडीपी 5 से 8 प्रतिशत तक गिर सकती है. सामान्य मानसून के कारण भारत में खरीफ और रबी दोनों मौसमों में बंपर फसल होने की संभावना है. हालांकि, बम्पर फसलों से खेत की कीमतों में गिरावट आ सकती है. किसानों के लिए उच्च मूल्य प्राप्त करने के लिए आपूर्ति श्रृंखला की समस्याओं को हल करना होगा.
इसके अलावा ग्रामीण क्षेत्रों में गैर कृषि क्षेत्र समय के साथ बढ़ता गया है. एफएमसीजी, ट्रैक्टर और दो पहिया वाहनों की मांग ग्रामीण क्षेत्रों में बढ़ी है. हालांकि, कम ग्रामीण मजदूरी और कम आय के कारण यह मांग समय के साथ कम होते जा रही है. रिवर्स माइग्रेशन के हिस्से के रूप में लगभग 4 से 5 करोड़ प्रवासी ग्रामीण क्षेत्रों में वापस चले गए हैं.
इन प्रवासियों और अन्य ग्रामीण श्रमिकों को रोजगार प्रदान किया जाना है. सार्वजनिक कार्यों का उपयोग श्रमिकों के लिए सुरक्षा के रूप में किया जा सकता है. प्राचीन भारतीय राजनीतिक अर्थशास्त्री कौटिल्य ने अपने अर्थशास्त्र में सार्वजनिक राहत कार्यों पर जोर दिया था. महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना कोरोना अवधि के दौरान श्रमिकों के लिए उद्धारक हो सकती है. मनरेगा के माध्यमिक लाभ भी हैं जैसे कृषि और ग्रामीण विकास के लिए संपत्ति का निर्माण, महिलाओं की अधिक भागीदारी, सीमांत वर्गों की मदद करना और पंचायतों आदि की भागीदारी.
लॉकडाउन और नौकरी छूटने के बीच हाल के महीनों में मनरेगा की मांग बढ़ी. कोरोना महामारी के संकट काल में गांवों में दिहाड़ी मजदूरों के लिए मनरेगा एक बड़ा सहारा बन गया है. केंद्र सरकार के आंकड़े बताते हैं कि जुलाई में मनरेगा के तहत लोगों को पिछले साल के मुकाबले 114 फीसदी ज्यादा काम मिला है. महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगाद्ध) के तहत गांवों में लोगों को मिल रहे काम के इस आंकड़े में मई से लगातार इजाफा हो रहा है. केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय के तहत संचालित रोजगार की इस स्कीम के तहत बीते महीने मई में पिछले साल के मुकाबले लोगों को 73 फीसदी ज्यादा काम मिला जबकि जून में 92 फीसदी और जुलाई में 114 फीसदी ज्यादा काम मिला है.
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चालू वित्त वर्ष 2020-21 में मनरेगा का बजटीय आवंटन 61,500 करोड़ रुपये था और कोरोना काल में आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत सरकार द्वारा घोषित 20 लाख करोड़ रुपये के आर्थिक पैकेज में मनरेगा के लिए 40,000 करोड़ रुपये का अतिरिक्त प्रावधान किया गया.
मंत्रालय से प्राप्त आंकड़ों के अनुसारए मनरेगा के तहत चालू महीने जुलाई में देशभर में औसतन 2.26 करोड़ लोगों को काम मिला जोकि पिछले साल के मुकाबले 114 फीसदी अधिक है जबकि इसी महीने में औसतन 1.05 करोड़ लोगों को रोजाना काम मिला था.
मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, चालू वित्त वर्ष में 30 जुलाई तक 157.89 करोड़ मानव दिवस यानी पर्सन डेज सृजित हुए हैं जबकि बीते वित्त वर्ष 2019-20 के दौरान 265.35 पर्सन डेज सृजित हुए थे.
हालांकि, मनरेगा के कामों को लेकर एक समस्या है. श्रम विकास पर संसदीय स्थायी समिति को जानकारी देते हुए ग्रामीण विकास मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा कि चालू वित्त वर्ष के लिए मनरेगा के तहत बहुत कम पैसा बचा है. अजीम प्रेमजी फाउंडेशन के एक सर्वेक्षण में पाया गया कि देश में बड़ी संख्या में ग्राम पंचायतों ने मनरेगा के तहत आवंटित धन को पहले ही समाप्त कर दिया है. फाउंडेशन सर्वेक्षण कहता है कि मनरेगा के तहत काम की मांग वित्त वर्ष 21 के अंत बहुत अधिक रहेगी. हालांकि खरीफ सीजन के दौरान मांग थोड़ी कम हो सकती है.
श्रमिकों के लिए आजीविका और आय सहायता प्रदान करने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर आर. रंगराजन ने मनरेगा के तहत रोजगार के दिनों की संख्या को बढ़ाकर 150 दिन करने का सुझाव दिया था. ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में 150 दिनों के रोजगार के लिए प्रस्तावित अतिरिक्त व्यय 2.48 लाख करोड़ रुपये थी जो जीडीपी का 1.22% है. रंगराजन सरकार को ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में रोजगार गारंटी योजना पर खर्च करने के लिए वित्तीय स्थान उपलब्ध कराना होगा.
राज्य सरकारों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि हर गांव में सार्वजनिक कार्य खोले जाएं. केंद्र सरकार और राज्य सरकारों के बीच समन्वय होना चाहिए. राज्य सरकारों ने योजना को आपूर्ति-संचालित योजना की तरह लागू करना शुरू कर दिया था. यह कानून द्वारा समर्थित मांग-आधारित गारंटी की तरह चलना चाहिए.
पूरे राष्ट्र ने देखा कि कैसे प्रवासी श्रमिक अपने गांवों तक पहुंचने के लिए हजारों किलोमीटर की दूरी तय कर रहे थे. गांव पहुंचते ही इन प्रवासियों ने मनरेगा के तहत काम की मांग की. इन प्रवासियों में कुशल श्रमिक जैसे कि ऑटो कर्मचारी, कार चालक, चित्रकार, बढ़ई शामिल थे. कई प्रवासियों ने महामारी के बीच मनरेगा मजदूरों के रूप में काम करना शुरू किया. अत्यधिक संकट के बीच बेरोजगार प्रवासियों और अन्य श्रमिकों के लिए मनरेगा आशा की किरण के रूप में उभरा है.
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मनरेगा को मजबूत करने के अलावा कृषि और ग्रामीण पुनरुद्धार के लिए कुछ अन्य उपायों की आवश्यकता है. सबसे पहले, किसानों की आय बढ़ानी होगी. एमएसपी में वृद्धि आवश्यक हो सकती है लेकिन उच्च कीमतों को सुनिश्चित करने के लिए आपूर्ति श्रृंखलाओं का पुनरुद्धार आवश्यकता है. कृषि विपणन सुधारों की घोषणा मध्यम अवधि में मदद करत सकती है. हालांकि, सरकार को केंद्र-राज्य समन्वय सहित इन सुधारों पर अधिक स्पष्टता प्रदान करनी चाहिए.
दूसरा, कृषि निर्यात को बढ़ावा देना होगा. निर्यात और वायदा बाजार पर दीर्घकालिक सुसंगत नीति की आवश्यकता है. आत्मानिर्भर का मतलब हमें आत्मविश्वासी होना है. भारत बहुत सीमित मात्रा में फल और सब्जियां संसाधित करता है. इसे बड़े पैमाने पर खाद्य प्रसंस्करण को बढ़ावा देना चाहिए.
तीसरा, हाल ही में प्रधानमंत्री ने 1 लाख करोड़ रुपये का कृषि बुनियादी ढांचा कोष लॉन्च किया था. लेकिन, केंद्र सरकार ने इसे चार साल में खर्च करने का लक्ष्य रखा है और इस वित्तीय वर्ष के लिए केवल दस हजार करोड़ रुपये स्वीकृत किए गए हैं. रोजगार और मजदूरी बढ़ाने के लिए ग्रामीण बुनियादी ढांचे में निवेश आवश्यक है. हमें खेती से परे जाकर वेयरहाउसिंग, लॉजिस्टिक्स, प्रोसेसिंग और रिटेलिंग में निवेश करना होगा. मूल्य श्रृंखलाओं को बढ़ावा देने के लिए कृषि अवसंरचना निधि उपयोगी होगी. यह किसानों के लिए बेहतर आय देगा. साल 2004-05 और 2011-12 के दौरान निर्माण ने ग्रामीण श्रमिकों की मजदूरी बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.
चौथा, लगभग 51 फीसदी एमएसएमई ग्रामीण क्षेत्रों में हैं. कोरोना ने छोट कारोबार को एक बड़ा झटका दिया है. इसलिए इस क्षेत्र को भी पुनर्जीवित किया जाना है. भारत आत्मनिर्भर तभी बन सकता है जब देश के एमएसएमई क्षेत्र आत्मनिर्भर और मजबूत बनेंगे.
इसी तरह शहरी राजकोषीय प्रोत्साहन, कॉरपोरेट सेक्टर और बैंकों की बैलेंस शीट की समस्या को हल करने से ग्रामीण-शहरी संपर्क को बढ़ाने में मदद मिलेगी. चूंकि रोजगार पर कोरोना महामारी का प्रतिकूल प्रभाव 2020-21 में जारी रहेगा. इसलिए मनरेगा कई समस्याओं के लिए सबसे अच्छा समाधान है.
सरकार को धन का अधिक आवंटन सुनिश्चित करना चाहिए. जमीनी स्तर पर परियोजनाओं में वृद्धि और प्रभावी कार्यान्वयन करना चाहिए. प्रवासी और अन्य ग्रामीण श्रमिकों के लिए रोजगार के लिए मनरेगा रक्षक है. इसी तरह, जब देश कि विनिर्माण और सेवाएं उदासीन हैं तब कृषि क्षेत्र देश की अर्थव्यवस्था को संभालने के तैयार हो रहा है.
(लेखक - एस. महेंद्र देव, कुलपति, आईजीआईडीआर, मुंबई. यह एक ओपिनियन लेख है. ये लेखक के निजी विचार हैं. ईटीवी भारत का उनसे सहमत होना जरूरी नहीं है.)