हैदराबाद: देश आज गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स (जीएसटी) का तीसरा वर्षगांठ मना रहा है. व्यापक रूप से सबसे बड़े कर सुधारों में से एक के रूप में जीएसटी को एक जुलाई 2017 को एक राष्ट्र, एक कर शासन के तहत लाने के इरादे से पेश किया गया था.
विशेषज्ञों का मानना है कि जीएसटी ने भले ही देश के राज्यों में माल के प्रवाह में सुधार कर दिया है और कर आधार को फैला दिया है, लेकिन यह अभी भी एक कर व्यवस्था का रूप नहीं ले पाया है.
तेलंगाना जीएसटी शिकायत निवारण समिति के सदस्य और जीएसटी विशेषज्ञ सतीश सराफ ने कहा, "जीएसटी को लेकर मेरी प्रतिक्रिया मिश्रित है. अच्छी बात यह है कि हमने टैक्स के आधार को बढ़ाया है, सिस्टम में पारदर्शिता आयी है. जिससे निर्यातकों के लिए रिफंड आसान और तेज हो गया है, लेकिन कई स्लैब जैसे मुद्दे अभी भी चिंता का विषय हैं."
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वर्तमान में जीएसटी दर 0.25% और 28% के बीच है. कभी-कभी अतिरिक्त उपकर के साथ कई आइटम छूट श्रेणी या शून्य शुल्क में भी आते हैं. सराफ ने कहा कि सरकार अब इन सभी दरों को तीन प्रमुख स्लैब में मिलाने की योजना बना रही है. अगर यह संभव हो जाता है, तो यह एक अच्छा जीएसटी व्यवस्था बन जाएगा.
सरकारी थिंक-टैंक नीती आयोग के सदस्य रमेश चंद ने भी दिसंबर में जीएसटी व्यवस्था के तहत केवल दो स्लैब रखने की वकालत की थी और कहा था कि यदि आवश्यक हो तो दरों को केवल सालाना संशोधित किया जाना चाहिए. उन्होंने कहा था कि हमें दरों को बार-बार नहीं बदलना चाहिए.
अलग राज्य, अलग नियम
टैक्स स्लैब के अलावे जीएसटी विभिन्न राज्यों में पंजीकरण नियमों में भी कुछ मतभेदों की समस्या देख रहा है. यह एक ऐसे शासन के लिए एक स्वस्थ संकेत नहीं है जिसका उद्देश्य राष्ट्र को एकजुट करना है. नियमों के अनुसार सरकार के जीएसटी पोर्टल पर पंजीकरण करने के लिए 40 लाख रुपये या उससे अधिक के वार्षिक टर्नओवर कारोबार की आवश्यकता होती है. हालांकि, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड, पुदुचेरी, सिक्किम, तेलंगाना, त्रिपुरा और उत्तराखंड जैसे राज्यों में यह सीमा 20 लाख रुपये है.
बता दें कि 20 लाख रुपये या उससे अधिक के टर्नओवर वाले कारोबार के लिए जीएसटी पंजीकरण अनिवार्य है लेकिन मणिपुर, मिजोरम, नागालैंड और त्रिपुरा में यह सीमा दस लाख रुपये है.
कोरोना महामारी से भारतीय अर्थव्यवस्था पर असर पड़ने के बाद कुछ निकटवर्ती जटिलताएं भी प्रणाली में उभरी हैं. करदाताओं को राहत पहुंचाने के प्रयास में सरकार ने जीएसटी रिटर्न दाखिल करने की तारीखों को बढ़ा दिया है लेकिन यह भी राज्य से अलग-अलग और व्यापार के आकार पर भी भिन्न होता है, जिसके परिणामस्वरूप छोटे और मध्यम आकार के उद्यमों के बीच भ्रम और अराजकता पैदा हो गई है.
जीएसटी विशेषज्ञ प्रीतम महुरे ने कहा कि तीन साल बाद जीएसटी को वन नेशन, वन टैक्स ना बोलकर इसे वन नेशन, मेनी स्टेट, वन टैक्स, मेनी रेट या वन नेशन, मेनी स्टेट, वन टैक्स, मेनी डेट बोलना चाहिए.
महुरे ने कहा कि भारतीय करदाता अब उम्मीद कर रहे हैं कि जीएसटी के लिए नीति-निर्माता निकाय यानि जीएसटी परिषद कर सुधार के चौथे वर्ष की शुरुआत के साथ दीर्घकालिक दृष्टि पर विचार करते हुए निर्णय ले.
इन चुनौतियों के अलावा यह भी देखने वाली बात है कि तीन साल हो जाने के बाद भी दो प्रमुख राजस्व स्रोत - पहला पेट्रोलियम उत्पाद और दूसरा रियल एस्टेट - ये दोनों अभी भी जीएसटी के दायरे से बाहर रखे गए हैं. उद्योग मंडल के महासचिव दीपक सूद ने मई में कहा था कि केंद्र के साथ राज्य सरकारें राजस्व के लिए पेट्रोल और डीजल पर कुछ अधिक निर्भर हैं. उन्होंने कहा था कि वाहन ईंधन की कीमतों में राष्ट्रीय स्तर पर समानता होनी चाहिए. अन्यथा जीएसटी के तहत एकल बजार का उद्देश्य पूरा नहीं हो पाएगा.
जीएसटी विशेषज्ञ सतीश सराफ भी इस बात से सहमत है कि पेट्रोलियम उत्पादों को जीएसटी के दायरे में लाना चाहिए. उनका कहना है कि इससे ना केवल पेट्रोलियम उत्पादों की लागत कम होगी, बल्कि अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलेगा.
(ईटीवी भारत रिपोर्ट)