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किसानों के लिए दोहरी मार साबित हो रही है कपास के उत्पादन और निर्यात में कमी

इस वर्ष कपास के उत्पादन कम रहने की मुख्य वजह पानी की कमी है. दुर्भाग्य से पानी की अनुपलब्धता के कारण कपास किसानों को तीसरी और चौथी पिकिंग की प्रतीक्षा किए बिना लगभग 70-80% क्षेत्रों में वृक्षारोपण को उखाड़ फेंकना पड़ा.

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Published : May 10, 2019, 6:04 PM IST

किसानों के लिए दोहरी मार साबित हो रही है कपास के उत्पादन और निर्यात में कमी

हैदराबाद: देश के अधितर जगह सूखे की मार झेल रहे हैं, जिसका असर सबसे ज्यादा फसलों पर पड़ा है. जनजीवन भी प्रभावित हुआ है.

कपास न केवल भारत की बल्कि पूरे विश्व की सबसे महत्वपूर्ण फाइबर फसल है. यह सूती कपड़ा उद्योग को मूल कच्चा माल (कपास फाइबर) प्रदान करता है. कपास उगाने वाले राज्यों में गुजरात, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, तेलंगाना, कर्नाटक, ओडिशा और आंध्र प्रदेश आते हैं.

कॉटन एसोसिएशन ऑफ इंडिया के अनुमान के अनुसार चालू वित्त वर्ष में प्रमुख कपास उत्पादक राज्य गुजरात में एक लाख गांठ, महाराष्ट्र में 80 हजार गांठ, तेलंगाना में 4 लाख गांठ, आंध्र प्रदेश में 1 लाख गांठ और कर्नाटक में 75 हजार गांठ कपास उत्पादन होने का अनुमान है. एसोसिएशन का कहना है कि ओडिशा और तमिलनाडु को छोड़कर, सभी राज्यों में कपास का उत्पादन कम हो गया है.

ये भी पढ़ें- तिरुपति मंदिर के 1381 किलो से ज्यादा सोना जमा करने के लिए बैंक की तलाश में बोर्ड

इस वर्ष कपास के उत्पादन कम रहने की मुख्य वजह पानी की कमी है. दुर्भाग्य से पानी की अनुपलब्धता के कारण कपास किसानों को तीसरी और चौथी पिकिंग की प्रतीक्षा किए बिना लगभग 70-80% क्षेत्रों में वृक्षारोपण को उखाड़ फेंकना पड़ा.

कपास निर्यात की गतिशीलता
कॉटन एसोसिएशन ऑफ इंडिया का कहना है कि 2018-19 में भारत का कपास निर्यात घटकर 47 लाख गांठ रह गया है, जो एक साल पहले 69 लाख गांठ था. कम उत्पादन और मुद्रा में उतार-चढ़ाव कपास के निर्यात को प्रभावित कर रहे हैं. भारतीय कपास की अंतरराष्ट्रीय बाजार में अच्छी मांग है. हालांकि, कपास की कीमतें प्रतिस्पर्धी नहीं हैं और घरेलू उत्पादन निरंतर आपूर्ति का आश्वासन नहीं दे पा रही हैं.

विश्व कपास बाजार और भारत
भारत की ब्राजील, वियतनाम, पाकिस्तान और इंडोनेशिया जैसे देशों से कपास के निर्यात में मजबूत प्रतिस्पर्धा है. कॉटन कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया का कहना है कि भारतीय कपास विश्व बाजार में अप्रतिस्पर्धी हो गई है. इसलिए कीमत के अंतर के कारण भारत अपना कपास निर्यात बाजार खो रहा है. इसके अलावा अमेरिकी कृषि विभाग ने कहा कि अमेरिकी-चीन व्यापार तनाव के कारण, चीन को ब्राजील के कपास निर्यात में वृद्धि होने की उम्मीद है. इसलिए, कॉटन टेक्सटाइल एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल ने सरकार से कॉटन एक्सपोर्ट को बढ़ावा देने के लिए पहल करने का आग्रह किया है.

भारत को वस्त्र उत्पादों पर वियतनाम, पाकिस्तान और इंडोनेशिया के मुकाबले 3.5 से 10 प्रतिशत अधिक शुल्क चुकाना पड़ रहा है. अगर इस समस्या का समाधान हो जाए तो कपास परिधानों का निर्यात बढ़ाया जा सकता है.

कृषि के बाद कपड़ा क्षेत्र देश में दूसरा सबसे बड़ा रोजगार प्रदान करता है. चूंकि कपास कपड़ा उद्योग के लिए महत्वपूर्ण है. इसलिए सरकार को कपास उत्पादकों के बचाव में आना चाहिए.

हैदराबाद: देश के अधितर जगह सूखे की मार झेल रहे हैं, जिसका असर सबसे ज्यादा फसलों पर पड़ा है. जनजीवन भी प्रभावित हुआ है.

कपास न केवल भारत की बल्कि पूरे विश्व की सबसे महत्वपूर्ण फाइबर फसल है. यह सूती कपड़ा उद्योग को मूल कच्चा माल (कपास फाइबर) प्रदान करता है. कपास उगाने वाले राज्यों में गुजरात, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, तेलंगाना, कर्नाटक, ओडिशा और आंध्र प्रदेश आते हैं.

कॉटन एसोसिएशन ऑफ इंडिया के अनुमान के अनुसार चालू वित्त वर्ष में प्रमुख कपास उत्पादक राज्य गुजरात में एक लाख गांठ, महाराष्ट्र में 80 हजार गांठ, तेलंगाना में 4 लाख गांठ, आंध्र प्रदेश में 1 लाख गांठ और कर्नाटक में 75 हजार गांठ कपास उत्पादन होने का अनुमान है. एसोसिएशन का कहना है कि ओडिशा और तमिलनाडु को छोड़कर, सभी राज्यों में कपास का उत्पादन कम हो गया है.

ये भी पढ़ें- तिरुपति मंदिर के 1381 किलो से ज्यादा सोना जमा करने के लिए बैंक की तलाश में बोर्ड

इस वर्ष कपास के उत्पादन कम रहने की मुख्य वजह पानी की कमी है. दुर्भाग्य से पानी की अनुपलब्धता के कारण कपास किसानों को तीसरी और चौथी पिकिंग की प्रतीक्षा किए बिना लगभग 70-80% क्षेत्रों में वृक्षारोपण को उखाड़ फेंकना पड़ा.

कपास निर्यात की गतिशीलता
कॉटन एसोसिएशन ऑफ इंडिया का कहना है कि 2018-19 में भारत का कपास निर्यात घटकर 47 लाख गांठ रह गया है, जो एक साल पहले 69 लाख गांठ था. कम उत्पादन और मुद्रा में उतार-चढ़ाव कपास के निर्यात को प्रभावित कर रहे हैं. भारतीय कपास की अंतरराष्ट्रीय बाजार में अच्छी मांग है. हालांकि, कपास की कीमतें प्रतिस्पर्धी नहीं हैं और घरेलू उत्पादन निरंतर आपूर्ति का आश्वासन नहीं दे पा रही हैं.

विश्व कपास बाजार और भारत
भारत की ब्राजील, वियतनाम, पाकिस्तान और इंडोनेशिया जैसे देशों से कपास के निर्यात में मजबूत प्रतिस्पर्धा है. कॉटन कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया का कहना है कि भारतीय कपास विश्व बाजार में अप्रतिस्पर्धी हो गई है. इसलिए कीमत के अंतर के कारण भारत अपना कपास निर्यात बाजार खो रहा है. इसके अलावा अमेरिकी कृषि विभाग ने कहा कि अमेरिकी-चीन व्यापार तनाव के कारण, चीन को ब्राजील के कपास निर्यात में वृद्धि होने की उम्मीद है. इसलिए, कॉटन टेक्सटाइल एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल ने सरकार से कॉटन एक्सपोर्ट को बढ़ावा देने के लिए पहल करने का आग्रह किया है.

भारत को वस्त्र उत्पादों पर वियतनाम, पाकिस्तान और इंडोनेशिया के मुकाबले 3.5 से 10 प्रतिशत अधिक शुल्क चुकाना पड़ रहा है. अगर इस समस्या का समाधान हो जाए तो कपास परिधानों का निर्यात बढ़ाया जा सकता है.

कृषि के बाद कपड़ा क्षेत्र देश में दूसरा सबसे बड़ा रोजगार प्रदान करता है. चूंकि कपास कपड़ा उद्योग के लिए महत्वपूर्ण है. इसलिए सरकार को कपास उत्पादकों के बचाव में आना चाहिए.

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किसानों के लिए दोहरी मार साबित हो रही है कपास के उत्पादन और निर्यात में कमी 

हैदराबाद: देश के अधितर जगह सूखे की मार झेल रहे हैं, जिसका असर सबसे ज्यादा फसलों पर पड़ा है. जनजीवन भी प्रभावित हुआ है. 

कपास न केवल भारत की बल्कि पूरे विश्व की सबसे महत्वपूर्ण फाइबर फसल है. यह सूती कपड़ा उद्योग को मूल कच्चा माल (कपास फाइबर) प्रदान करता है. कपास उगाने वाले राज्यों में गुजरात, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, तेलंगाना, कर्नाटक, ओडिशा और आंध्र प्रदेश आते हैं. 

कॉटन एसोसिएशन ऑफ इंडिया के अनुमान के अनुसार चालू वित्त वर्ष में प्रमुख कपास उत्पादक राज्य गुजरात में एक लाख गांठ, महाराष्ट्र में 80 हजार गांठ, तेलंगाना में 4 लाख गांठ, आंध्र प्रदेश में 1 लाख गांठ और कर्नाटक में 75 हजार गांठ कपास उत्पादन होने का अनुमान है. एसोसिएशन का कहना है कि ओडिशा और तमिलनाडु को छोड़कर, सभी राज्यों में कपास का उत्पादन कम हो गया है.



इस वर्ष कपास के उत्पादन कम रहने की मुख्य वजह पानी की कमी है. दुर्भाग्य से पानी की अनुपलब्धता के कारण कपास किसानों को तीसरी और चौथी पिकिंग की प्रतीक्षा किए बिना लगभग 70-80% क्षेत्रों में वृक्षारोपण को उखाड़ फेंकना पड़ा.



कपास निर्यात की गतिशीलता

कॉटन एसोसिएशन ऑफ इंडिया का कहना है कि 2018-19 में भारत का कपास निर्यात घटकर 47 लाख गांठ रह गया है, जो एक साल पहले 69 लाख गांठ था. कम उत्पादन और मुद्रा में उतार-चढ़ाव कपास के निर्यात को प्रभावित कर रहे हैं. भारतीय कपास की अंतरराष्ट्रीय बाजार में अच्छी मांग है. हालांकि, कपास की कीमतें प्रतिस्पर्धी नहीं हैं और घरेलू उत्पादन निरंतर आपूर्ति का आश्वासन नहीं दे पा रही हैं.





विश्व कपास बाजार और भारत

भारत की ब्राजील, वियतनाम, पाकिस्तान और इंडोनेशिया जैसे देशों से कपास के निर्यात में मजबूत प्रतिस्पर्धा है. कॉटन कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया का कहना है कि भारतीय कपास विश्व बाजार में अप्रतिस्पर्धी हो गई है. इसलिए कीमत के अंतर के कारण भारत अपना कपास निर्यात बाजार खो रहा है. इसके अलावा अमेरिकी कृषि विभाग ने कहा कि अमेरिकी-चीन व्यापार तनाव के कारण, चीन को ब्राजील के कपास निर्यात में वृद्धि होने की उम्मीद है. इसलिए, कॉटन टेक्सटाइल एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल ने सरकार से कॉटन एक्सपोर्ट को बढ़ावा देने के लिए पहल करने का आग्रह किया है।

भारत को वस्त्र उत्पादों पर वियतनाम, पाकिस्तान और इंडोनेशिया के मुकाबले 3.5 से 10 प्रतिशत अधिक शुल्क चुकाना पड़ रहा है. अगर इस समस्या का समाधान हो जाए तो कपास परिधानों का निर्यात बढ़ाया जा सकता है.

कृषि के बाद कपड़ा क्षेत्र देश में दूसरा सबसे बड़ा रोजगार प्रदान करता है. चूंकि कपास कपड़ा उद्योग के लिए महत्वपूर्ण है. इसलिए सरकार को कपास उत्पादकों के बचाव में आना चाहिए।


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