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बजट 2020: टैक्स कलेक्शन में भारी कमी के आसार

अर्थव्यवस्था में जारी नरमी के कारण चालू वित्त वर्ष में कर से प्राप्त राजस्व, लक्ष्य की तुलना में दो लाख करोड़ रुपये कम रह सकता है. यह देश के वित्त मंत्री के लिए एक मुश्किल समय होगा, जिसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने दूसरे कार्यकाल में देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने की जिम्मेदारी दी है.

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बजट 2020: टैक्स कलेक्शन में भारी कमी के आसार
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Published : Jan 30, 2020, 6:01 AM IST

Updated : Feb 28, 2020, 11:38 AM IST

नई दिल्ली: वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण इस शनिवार को अपना दूसरा केंद्रीय बजट पेश करेंगी. पिछले साल जुलाई में पेश किए बजट के दौरान उन्होंने जो राजस्व संग्रह का अनुमान लगाया था वह उससे कम रह सकता है.

अर्थव्यवस्था में जारी नरमी के कारण चालू वित्त वर्ष में कर से प्राप्त राजस्व, लक्ष्य की तुलना में दो लाख करोड़ रुपये कम रह सकता है.

आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार इस वित्त वर्ष (अप्रैल से नवंबर) के पहले 8 महीनों में केंद्र सरकार का शुद्ध कर संग्रह 7.5 लाख करोड़ रुपये था, जो कि पूरे वित्तीय वर्ष के लिए 16.5 लाख करोड़ रुपये के बजट लक्ष्य का सिर्फ 45.5 प्रतिशत है.

यह देश के वित्त मंत्री के लिए एक मुश्किल समय होगा, जिसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने दूसरे कार्यकाल में देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने की जिम्मेदारी दी है.

ये भी पढ़ें- बजट 2019: जानिए कैसे बदलता रहा देश के वित्तमंत्रियों का 'बजट ब्रीफकेस'

पूर्व वित्त मंत्री अरुण जेटली को जानलेवा बीमारी हो जाने के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने निर्मला सीतारमण को इस सबसे चुनौतीपूर्ण काम के लिए चुना था.

हालांकि, मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल के शुरुआत से ही निर्मला सीतारमण दोहरी मार से जूझ रही थी. पिछले साल मई में भाजपा सरकार बनने के तुरंत बाद पहले से ही धीमी चल रही अर्थव्यवस्था और बदतर स्थिति में पहुंच गई.

सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि जो पिछली तिमाही 2018-19 में पहले ही 5.8% तक गिर गई थी, वह 2019-20 के पहली तिमाही (अप्रैल-जुलाई) में घटकर सिर्फ 5% रह गई और फिर दूसरी तिमाही (जुलाई-सितंबर) में घटकर सिर्फ 4.5% रह गई. यह आंकड़ा वित्तवर्ष 2012-13 की अंतिम तिमाही (जनवरी-मार्च) के बाद सबसे कम है.

रेटिंग एजेंसी इंडिया रेटिंग्स के मुख्य अर्थशास्त्री सुनील सिन्हा ने कहा कि सरकार के लिए इस समय सबसे बड़ी चुनौती राजस्व जुटाना है. विकास में मंदी के साथ राजस्व संग्रह में भी कमी आई है.

नियंत्रक महालेखाकार द्वारा उपलब्ध कराए गए नवीनतम आंकड़ों के अनुसार कॉरपोरेशन टैक्स केंद्र सरकार के राजस्व का सबसे बड़ा स्रोत है. इस टैक्स में 2,652 करोड़ रुपये की गिरावट दर्ज की गई है. केंद्र को अप्रैल से नवंबर 2019 के बीच कॉरपोरेशन टैक्स से 2,91,254 करोड़ रुपये मिले थे जबकि इस साल उसे केवल 2,88,602 करोड़ रुपये मिले.

ये भी पढ़ें- सरकारी खर्च को बढ़ाएं, लेकिन आखिर किस कीमत पर?

हालांकि, यह गिरावट पूरी तरह से मामूली है, लेकिन वित्त मंत्री द्वारा किए गए बजट अनुमानों की तुलना में यह बेहद सतर्क करने वाले हैं क्योंकि निर्मला सीतारमण ने अनुमान लगाया था कि कॉरपोरेशन टैक्स संग्रह इस वित्त वर्ष में 14.15 प्रतिशत की तेजी से बढ़ेगा लेकिन ऐसा हो नहीं पाया.

वहीं, निर्मला सीतारमण द्वारा पिछले साल सितंबर में घोषित कॉरपोरेट टैक्स दर में कटौती से स्थिति और खराब होने की आशंका है. कॉरपोरेट टैक्स का सही प्रभाव केवल अगले साल 2021 के बजट में ही पता चलेगा जब वास्तविक संग्रह का आंकड़ा दिया जाएगा.

वहीं, इसका नकारात्मक प्रभाव कॉरपोरेशन टैक्स संग्रह के अक्टूबर और नवंबर के महीनों में देखने को मिला. अक्टूबर 2019 में कॉरपोरेशन टैक्स संग्रह 23,429 करोड़ रहा जबकि यह पिछले इसी महीने में 26,648 करोड़ था. यह गिरावट नवंबर महीने भी देखने को मिली. जब नवंबर 2018 में कलेक्शन 20,864 करोड़ रुपये के मुकाबले घटकर सिर्फ 15,846 करोड़ रुपये रह गया.

इसने केंद्र सरकार के कुल शुद्ध कर संग्रह (प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष कर दोनों) को इस वित्त वर्ष के पहले 8 महीनों में बजट अनुमान के मात्र 45.5% पर ला दिया, जबकि पिछले वित्त वर्ष (2018-19) की समान अवधि के दौरान यह 49.4% था.

अर्थशास्त्रियों का मानना ​​है कि जीएसटी और व्यक्तिगत आयकर संग्रह में मामूली सुधार के बावजूद स्थिति यहां से बदतर होती जा रही है. बजट अनुमान के अनुसार केंद्र सरकार के लिए राजस्व का दूसरा और तीसरा सबसे बड़ा स्रोत यही है. जिसमें जीएसटी से 6.63 लाख करोड़ रुपये और व्यक्तिगत आयकर से 5.69 लाख करोड़ रुपये मिले.

सिन्हा ने ईटीवी भारत को कहा, "पिछले साल सरकार के कॉर्पोरेट टैक्स की दर में कटौती की घोषणा के बाद हमने गणना की है कि केंद्र सरकार का कर संग्रह उसके बजट अनुमानों से 1.7-1.8 लाख करोड़ रुपये कम होगा. हमारी गणना के अनुसार कॉर्पोरेट कर कटौती का शुद्ध प्रभाव केवल 70-80,000 करोड़ रुपये का होगा न कि सरकार द्वारा अनुमानित 1.45 लाख करोड़ रुपये का लेकिन प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष कर संग्रह में कुल संचयी गिरावट लगभग 1.7 रुपये होगी.

पिछले सप्ताह रॉयटर्स की आई एक रिपोर्ट के अनुसार बीते दो दशक में पहली बार चालू वित्त वर्ष में केंद्र सरकार की आमदनी (प्रत्यक्ष कर से) घट सकती है.

पिछले साल जुलाई में पेश किए गए अपने बजट अनुमानों में निर्मला सीतारमण ने अनुमान लगाया कि प्रत्यक्ष कर संग्रह 11.25 प्रतिशत की दर से बढ़ेगा और 2018-19 में 12 लाख करोड़ रुपये से 2019-20 में 13.35 लाख करोड़ रुपये हो जाएगा. इसका कारण यह था कि 2017-18 और 2018-19 के बीच कॉरपोरेशन टैक्स और पर्सनल इनकम टैक्स दोनों में अच्छी खासी बढ़ोतरी हुई थी.

वित्तवर्ष 2018-19 में कॉरपोरेशन टैक्स संग्रह 6.71 लाख करोड़ रुपये था जबकी सरकार का अनुमान 6.21 लाख करोड़ का था. वहीं, वित्तवर्ष 2017-18 के दौरान यह 5.71 लाख करोड़ था.

ये भी पढ़ें- बजट 2020: आम-आदमी के हाथों में दें ज्यादा पैसा

वहीं, व्यक्तिगत आयकर संग्रह ने भी 2017-18 और 2018-19 के बीच लगभग एक लाख करोड़ रुपये की वृद्धि दर्ज की जो कि 4.31 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर 2018-19 में 5.29 लाख करोड़ रुपये हो गई.

हालांकि, पूरे विकास की कहानी एक साल के भीतर उलट गई क्योंकि जीडीपी वृद्धि 5.8 प्रतिशत से घटकर सिर्फ 9 महीनों में 4.5 प्रतिशत रह गई.

सुनील सिन्हा ने कहा कि इंडिया रेटिंग के पूर्वानुमान में कर संग्रह का लक्ष्य 1.7 लाख करोड़ रुपये कम था. वहीं, जीडीपी विकास दर 5.5 से 5.6 प्रतिशत बीच रहने की उम्मीद है. सिन्हा ने कहा कि अब कई एजेंसियों ने अनुमानित जीडीपी विकास दर को 5 प्रतिशत से कम कर दिया है.

इस महीने अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने भी 2019-20 के लिए देश की जीडीपी वृद्धि के लिए अपने अनुमान को कम करके केवल 4.8 प्रतिशत कर दिया है. हालांकि, वित्त मंत्री की समस्याएं यहीं खत्म होती नहीं दिख रही हैं.

सुनील सिन्हा ने कहा कि सबसे बड़ी परेशानी यह है कि हम अभी भी 5.5-5.6% जीडीपी वृद्धि की धारणा पर राजस्व संग्रह की गणना कर रहे हैं लेकिन यह वास्तविक जीडीपी विकास दर है.

उन्होंने कहा, "दूसरी तिमाही (जुलाई-सितंबर) के लिए नाममात्र जीडीपी वृद्धि दर 8 प्रतिशत के आसपास आ गई है, जबकि बजट में सरकार ने मान लिया था कि नाममात्र जीडीपी विकास दर 11-12 प्रतिशत होगी."

वास्तविक जीडीपी विकास दर की गणना मामूली जीडीपी वृद्धि से थोक मूल्य दर (डब्ल्यूपीआई) में कटौती करके की जाती है. जिसमें मुद्रास्फीति भी शामिल है.

सुनील सिन्हा ने इंडिया रेटिंग्स के लिए मैक्रो-इकोनॉमिक इंडिकेटर्स पर बारीकी से नजर रखी है. उन्होंने कहा कि टैक्स कलेक्शन के लिए सरकार की धारणा अपने टैक्स कलेक्शन के लक्ष्य से बहुत दूर होगी.

( लेखक - वरिष्ठ पत्रकार कृष्णानन्द त्रिपाठी )

नई दिल्ली: वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण इस शनिवार को अपना दूसरा केंद्रीय बजट पेश करेंगी. पिछले साल जुलाई में पेश किए बजट के दौरान उन्होंने जो राजस्व संग्रह का अनुमान लगाया था वह उससे कम रह सकता है.

अर्थव्यवस्था में जारी नरमी के कारण चालू वित्त वर्ष में कर से प्राप्त राजस्व, लक्ष्य की तुलना में दो लाख करोड़ रुपये कम रह सकता है.

आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार इस वित्त वर्ष (अप्रैल से नवंबर) के पहले 8 महीनों में केंद्र सरकार का शुद्ध कर संग्रह 7.5 लाख करोड़ रुपये था, जो कि पूरे वित्तीय वर्ष के लिए 16.5 लाख करोड़ रुपये के बजट लक्ष्य का सिर्फ 45.5 प्रतिशत है.

यह देश के वित्त मंत्री के लिए एक मुश्किल समय होगा, जिसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने दूसरे कार्यकाल में देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने की जिम्मेदारी दी है.

ये भी पढ़ें- बजट 2019: जानिए कैसे बदलता रहा देश के वित्तमंत्रियों का 'बजट ब्रीफकेस'

पूर्व वित्त मंत्री अरुण जेटली को जानलेवा बीमारी हो जाने के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने निर्मला सीतारमण को इस सबसे चुनौतीपूर्ण काम के लिए चुना था.

हालांकि, मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल के शुरुआत से ही निर्मला सीतारमण दोहरी मार से जूझ रही थी. पिछले साल मई में भाजपा सरकार बनने के तुरंत बाद पहले से ही धीमी चल रही अर्थव्यवस्था और बदतर स्थिति में पहुंच गई.

सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि जो पिछली तिमाही 2018-19 में पहले ही 5.8% तक गिर गई थी, वह 2019-20 के पहली तिमाही (अप्रैल-जुलाई) में घटकर सिर्फ 5% रह गई और फिर दूसरी तिमाही (जुलाई-सितंबर) में घटकर सिर्फ 4.5% रह गई. यह आंकड़ा वित्तवर्ष 2012-13 की अंतिम तिमाही (जनवरी-मार्च) के बाद सबसे कम है.

रेटिंग एजेंसी इंडिया रेटिंग्स के मुख्य अर्थशास्त्री सुनील सिन्हा ने कहा कि सरकार के लिए इस समय सबसे बड़ी चुनौती राजस्व जुटाना है. विकास में मंदी के साथ राजस्व संग्रह में भी कमी आई है.

नियंत्रक महालेखाकार द्वारा उपलब्ध कराए गए नवीनतम आंकड़ों के अनुसार कॉरपोरेशन टैक्स केंद्र सरकार के राजस्व का सबसे बड़ा स्रोत है. इस टैक्स में 2,652 करोड़ रुपये की गिरावट दर्ज की गई है. केंद्र को अप्रैल से नवंबर 2019 के बीच कॉरपोरेशन टैक्स से 2,91,254 करोड़ रुपये मिले थे जबकि इस साल उसे केवल 2,88,602 करोड़ रुपये मिले.

ये भी पढ़ें- सरकारी खर्च को बढ़ाएं, लेकिन आखिर किस कीमत पर?

हालांकि, यह गिरावट पूरी तरह से मामूली है, लेकिन वित्त मंत्री द्वारा किए गए बजट अनुमानों की तुलना में यह बेहद सतर्क करने वाले हैं क्योंकि निर्मला सीतारमण ने अनुमान लगाया था कि कॉरपोरेशन टैक्स संग्रह इस वित्त वर्ष में 14.15 प्रतिशत की तेजी से बढ़ेगा लेकिन ऐसा हो नहीं पाया.

वहीं, निर्मला सीतारमण द्वारा पिछले साल सितंबर में घोषित कॉरपोरेट टैक्स दर में कटौती से स्थिति और खराब होने की आशंका है. कॉरपोरेट टैक्स का सही प्रभाव केवल अगले साल 2021 के बजट में ही पता चलेगा जब वास्तविक संग्रह का आंकड़ा दिया जाएगा.

वहीं, इसका नकारात्मक प्रभाव कॉरपोरेशन टैक्स संग्रह के अक्टूबर और नवंबर के महीनों में देखने को मिला. अक्टूबर 2019 में कॉरपोरेशन टैक्स संग्रह 23,429 करोड़ रहा जबकि यह पिछले इसी महीने में 26,648 करोड़ था. यह गिरावट नवंबर महीने भी देखने को मिली. जब नवंबर 2018 में कलेक्शन 20,864 करोड़ रुपये के मुकाबले घटकर सिर्फ 15,846 करोड़ रुपये रह गया.

इसने केंद्र सरकार के कुल शुद्ध कर संग्रह (प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष कर दोनों) को इस वित्त वर्ष के पहले 8 महीनों में बजट अनुमान के मात्र 45.5% पर ला दिया, जबकि पिछले वित्त वर्ष (2018-19) की समान अवधि के दौरान यह 49.4% था.

अर्थशास्त्रियों का मानना ​​है कि जीएसटी और व्यक्तिगत आयकर संग्रह में मामूली सुधार के बावजूद स्थिति यहां से बदतर होती जा रही है. बजट अनुमान के अनुसार केंद्र सरकार के लिए राजस्व का दूसरा और तीसरा सबसे बड़ा स्रोत यही है. जिसमें जीएसटी से 6.63 लाख करोड़ रुपये और व्यक्तिगत आयकर से 5.69 लाख करोड़ रुपये मिले.

सिन्हा ने ईटीवी भारत को कहा, "पिछले साल सरकार के कॉर्पोरेट टैक्स की दर में कटौती की घोषणा के बाद हमने गणना की है कि केंद्र सरकार का कर संग्रह उसके बजट अनुमानों से 1.7-1.8 लाख करोड़ रुपये कम होगा. हमारी गणना के अनुसार कॉर्पोरेट कर कटौती का शुद्ध प्रभाव केवल 70-80,000 करोड़ रुपये का होगा न कि सरकार द्वारा अनुमानित 1.45 लाख करोड़ रुपये का लेकिन प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष कर संग्रह में कुल संचयी गिरावट लगभग 1.7 रुपये होगी.

पिछले सप्ताह रॉयटर्स की आई एक रिपोर्ट के अनुसार बीते दो दशक में पहली बार चालू वित्त वर्ष में केंद्र सरकार की आमदनी (प्रत्यक्ष कर से) घट सकती है.

पिछले साल जुलाई में पेश किए गए अपने बजट अनुमानों में निर्मला सीतारमण ने अनुमान लगाया कि प्रत्यक्ष कर संग्रह 11.25 प्रतिशत की दर से बढ़ेगा और 2018-19 में 12 लाख करोड़ रुपये से 2019-20 में 13.35 लाख करोड़ रुपये हो जाएगा. इसका कारण यह था कि 2017-18 और 2018-19 के बीच कॉरपोरेशन टैक्स और पर्सनल इनकम टैक्स दोनों में अच्छी खासी बढ़ोतरी हुई थी.

वित्तवर्ष 2018-19 में कॉरपोरेशन टैक्स संग्रह 6.71 लाख करोड़ रुपये था जबकी सरकार का अनुमान 6.21 लाख करोड़ का था. वहीं, वित्तवर्ष 2017-18 के दौरान यह 5.71 लाख करोड़ था.

ये भी पढ़ें- बजट 2020: आम-आदमी के हाथों में दें ज्यादा पैसा

वहीं, व्यक्तिगत आयकर संग्रह ने भी 2017-18 और 2018-19 के बीच लगभग एक लाख करोड़ रुपये की वृद्धि दर्ज की जो कि 4.31 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर 2018-19 में 5.29 लाख करोड़ रुपये हो गई.

हालांकि, पूरे विकास की कहानी एक साल के भीतर उलट गई क्योंकि जीडीपी वृद्धि 5.8 प्रतिशत से घटकर सिर्फ 9 महीनों में 4.5 प्रतिशत रह गई.

सुनील सिन्हा ने कहा कि इंडिया रेटिंग के पूर्वानुमान में कर संग्रह का लक्ष्य 1.7 लाख करोड़ रुपये कम था. वहीं, जीडीपी विकास दर 5.5 से 5.6 प्रतिशत बीच रहने की उम्मीद है. सिन्हा ने कहा कि अब कई एजेंसियों ने अनुमानित जीडीपी विकास दर को 5 प्रतिशत से कम कर दिया है.

इस महीने अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने भी 2019-20 के लिए देश की जीडीपी वृद्धि के लिए अपने अनुमान को कम करके केवल 4.8 प्रतिशत कर दिया है. हालांकि, वित्त मंत्री की समस्याएं यहीं खत्म होती नहीं दिख रही हैं.

सुनील सिन्हा ने कहा कि सबसे बड़ी परेशानी यह है कि हम अभी भी 5.5-5.6% जीडीपी वृद्धि की धारणा पर राजस्व संग्रह की गणना कर रहे हैं लेकिन यह वास्तविक जीडीपी विकास दर है.

उन्होंने कहा, "दूसरी तिमाही (जुलाई-सितंबर) के लिए नाममात्र जीडीपी वृद्धि दर 8 प्रतिशत के आसपास आ गई है, जबकि बजट में सरकार ने मान लिया था कि नाममात्र जीडीपी विकास दर 11-12 प्रतिशत होगी."

वास्तविक जीडीपी विकास दर की गणना मामूली जीडीपी वृद्धि से थोक मूल्य दर (डब्ल्यूपीआई) में कटौती करके की जाती है. जिसमें मुद्रास्फीति भी शामिल है.

सुनील सिन्हा ने इंडिया रेटिंग्स के लिए मैक्रो-इकोनॉमिक इंडिकेटर्स पर बारीकी से नजर रखी है. उन्होंने कहा कि टैक्स कलेक्शन के लिए सरकार की धारणा अपने टैक्स कलेक्शन के लक्ष्य से बहुत दूर होगी.

( लेखक - वरिष्ठ पत्रकार कृष्णानन्द त्रिपाठी )

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बजट 2020: टैक्स कलेक्शन में भारी कमी के आसार

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण इस शनिवार को अपना दूसरा केंद्रीय बजट पेश करेंगी. पिछले साल जुलाई में पेश किए बजट के दौरान उन्होंने जो राजस्व संग्रह का अनुमान लगाया था वह उससे कम रह सकता है. 

अर्थव्यवस्था में जारी नरमी के कारण चालू वित्त वर्ष में कर से प्राप्त राजस्व, लक्ष्य की तुलना में दो लाख करोड़ रुपये कम रह सकता है.

आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार इस वित्त वर्ष (अप्रैल से नवंबर) के पहले 8 महीनों में केंद्र सरकार का शुद्ध कर संग्रह 7.5 लाख करोड़ रुपये था, जो कि पूरे वित्तीय वर्ष के लिए 16.5 लाख करोड़ रुपये के बजट लक्ष्य का सिर्फ 45.5 प्रतिशत है.

यह देश के वित्त मंत्री के लिए एक मुश्किल समय होगा, जिसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने दूसरे कार्यकाल में देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने की जिम्मेदारी दी है.

पूर्व वित्त मंत्री अरुण जेटली को जानलेवा बीमारी हो जाने के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने निर्मला सीतारमण को इस सबसे चुनौतीपूर्ण काम के लिए चुना था.

हालांकि, मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल के शुरुआत से ही निर्मला सीतारमण दोहरी मार से जूझ रही थी. पिछले साल मई में भाजपा सरकार बनने के तुरंत बाद पहले से ही धीमी चल रही अर्थव्यवस्था और बदतर स्थिति में पहुंच गई. 

सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि जो पिछली तिमाही 2018-19 में पहले ही 5.8% तक गिर गई थी, वह 2019-20 के पहली तिमाही (अप्रैल-जुलाई) में घटकर सिर्फ 5% रह गई और फिर दूसरी तिमाही (जुलाई-सितंबर) में घटकर सिर्फ 4.5% रह गई. यह आंकड़ा वित्तवर्ष 2012-13 की अंतिम तिमाही (जनवरी-मार्च) के बाद सबसे कम है. 

रेटिंग एजेंसी इंडिया रेटिंग्स के मुख्य अर्थशास्त्री सुनील सिन्हा ने कहा कि सरकार के लिए इस समय सबसे बड़ी चुनौती राजस्व जुटाना है. विकास में मंदी के साथ राजस्व संग्रह में भी कमी आई है. 

नियंत्रक महालेखाकार द्वारा उपलब्ध कराए गए नवीनतम आंकड़ों के अनुसार कॉरपोरेशन टैक्स केंद्र सरकार के राजस्व का सबसे बड़ा स्रोत है. इस टैक्स में 2,652 करोड़ रुपये की गिरावट दर्ज की गई है. केंद्र को अप्रैल से नवंबर 2019 के बीच कॉरपोरेशन टैक्स से 2,91,254 करोड़ रुपये मिले थे जबकि इस साल उसे केवल 2,88,602 करोड़ रुपये मिले.

हालांकि, यह गिरावट पूरी तरह से मामूली है, लेकिन वित्त मंत्री द्वारा किए गए बजट अनुमानों की तुलना में यह बेहद सतर्क करने वाले हैं क्योंकि निर्मला सीतारमण ने अनुमान लगाया था कि कॉरपोरेशन टैक्स संग्रह इस वित्त वर्ष में 14.15 प्रतिशत की तेजी से बढ़ेगा लेकिन ऐसा हो नहीं पाया. 

वहीं, निर्मला सीतारमण द्वारा पिछले साल सितंबर में घोषित कॉरपोरेट टैक्स दर में कटौती से स्थिति और खराब होने की आशंका है. कॉरपोरेट टैक्स का सही प्रभाव केवल अगले साल 2021 के बजट में ही पता चलेगा जब वास्तविक संग्रह का आंकड़ा दिया जाएगा. 

वहीं, इसका नकारात्मक प्रभाव कॉरपोरेशन टैक्स संग्रह के अक्टूबर और नवंबर के महीनों में देखने को मिला. अक्टूबर 2019 में कॉरपोरेशन टैक्स संग्रह 23,429 करोड़ रहा जबकि यह पिछले इसी महीने में 26,648 करोड़ था. यह गिरावट नवंबर महीने भी देखने को मिली. जब नवंबर 2018 में कलेक्शन 20,864 करोड़ रुपये के मुकाबले घटकर सिर्फ 15,846 करोड़ रुपये रह गया.

इसने केंद्र सरकार के कुल शुद्ध कर संग्रह (प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष कर दोनों) को इस वित्त वर्ष के पहले 8 महीनों में बजट अनुमान के मात्र 45.5% पर ला दिया, जबकि पिछले वित्त वर्ष (2018-19) की समान अवधि के दौरान यह 49.4% था. 

अर्थशास्त्रियों का मानना ​​है कि जीएसटी और व्यक्तिगत आयकर संग्रह में मामूली सुधार के बावजूद स्थिति यहां से बदतर होती जा रही है. बजट अनुमान के अनुसार केंद्र सरकार के लिए राजस्व का दूसरा और तीसरा सबसे बड़ा स्रोत यही है. जिसमें जीएसटी से 6.63 लाख करोड़ रुपये और व्यक्तिगत आयकर से 5.69 लाख करोड़ रुपये मिले. 

सिन्हा ने ईटीवी भारत को कहा, "पिछले साल सरकार के कॉर्पोरेट टैक्स की दर में कटौती की घोषणा के बाद हमने गणना की है कि केंद्र सरकार का कर संग्रह उसके बजट अनुमानों से 1.7-1.8 लाख करोड़ रुपये कम होगा. हमारी गणना के अनुसार कॉर्पोरेट कर कटौती का शुद्ध प्रभाव केवल 70-80,000 करोड़ रुपये का होगा न कि सरकार द्वारा अनुमानित 1.45 लाख करोड़ रुपये का लेकिन प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष कर संग्रह में कुल संचयी गिरावट लगभग 1.7 रुपये होगी.

पिछले सप्ताह रॉयटर्स की आई एक रिपोर्ट के अनुसार बीते दो दशक में पहली बार चालू वित्त वर्ष में केंद्र सरकार की आमदनी (प्रत्यक्ष कर से) घट सकती है.

पिछले साल जुलाई में पेश किए गए अपने बजट अनुमानों में निर्मला सीतारमण ने अनुमान लगाया कि प्रत्यक्ष कर संग्रह 11.25 प्रतिशत की दर से बढ़ेगा और 2018-19 में 12 लाख करोड़ रुपये से 2019-20 में 13.35 लाख करोड़ रुपये हो जाएगा. इसका कारण यह था कि 2017-18 और 2018-19 के बीच कॉरपोरेशन टैक्स और पर्सनल इनकम टैक्स दोनों में अच्छी खासी बढ़ोतरी हुई थी. 

वित्तवर्ष 2018-19 में कॉरपोरेशन टैक्स संग्रह 6.71 लाख करोड़ रुपये था जबकी सरकार का अनुमान 6.21 लाख करोड़ का था. वहीं, वित्तवर्ष 2017-18 के दौरान यह 5.71 लाख करोड़ था.

वहीं, व्यक्तिगत आयकर संग्रह ने भी 2017-18 और 2018-19 के बीच लगभग एक लाख करोड़ रुपये की वृद्धि दर्ज की जो कि 4.31 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर 2018-19 में 5.29 लाख करोड़ रुपये हो गई.

हालांकि, पूरे विकास की कहानी एक साल के भीतर उलट गई क्योंकि जीडीपी वृद्धि 5.8 प्रतिशत से घटकर सिर्फ 9 महीनों में 4.5 प्रतिशत रह गई.

सुनील सिन्हा ने कहा कि इंडिया रेटिंग के पूर्वानुमान में कर संग्रह का लक्ष्य  1.7 लाख करोड़ रुपये कम था. वहीं, जीडीपी विकास दर 5.5 से 5.6 प्रतिशत बीच रहने की उम्मीद है. सिन्हा ने कहा कि अब कई एजेंसियों ने अनुमानित जीडीपी विकास दर को 5 प्रतिशत से कम कर दिया है.

इस महीने अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने भी 2019-20 के लिए देश की जीडीपी वृद्धि के लिए अपने अनुमान को कम करके केवल 4.8 प्रतिशत कर दिया है. हालांकि, वित्त मंत्री की समस्याएं यहीं खत्म होती नहीं दिख रही हैं.

सुनील सिन्हा ने कहा कि सबसे बड़ी परेशानी यह है कि हम अभी भी 5.5-5.6% जीडीपी वृद्धि की धारणा पर राजस्व संग्रह की गणना कर रहे हैं लेकिन यह वास्तविक जीडीपी विकास दर है. 

उन्होंने कहा, "दूसरी तिमाही (जुलाई-सितंबर) के लिए नाममात्र जीडीपी वृद्धि दर 8 प्रतिशत के आसपास आ गई है, जबकि बजट में सरकार ने मान लिया था कि नाममात्र जीडीपी विकास दर 11-12 प्रतिशत होगी." 

वास्तविक जीडीपी विकास दर की गणना मामूली जीडीपी वृद्धि से थोक मूल्य दर (डब्ल्यूपीआई) में कटौती करके की जाती है. जिसमें मुद्रास्फीति भी शामिल है.

सुनील सिन्हा ने इंडिया रेटिंग्स के लिए मैक्रो-इकोनॉमिक इंडिकेटर्स पर बारीकी से नजर रखी है. उन्होंने कहा कि टैक्स कलेक्शन के लिए सरकार की धारणा अपने टैक्स कलेक्शन के लक्ष्य से बहुत दूर होगी. 

 


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