ETV Bharat / business

ब्याज के ऊपर ब्याज वसूलने पर अपना रुख साफ करें केंद्र: सुप्रीम कोर्ट

author img

By

Published : Aug 26, 2020, 1:57 PM IST

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को लोन मोरेटोरियम के अंदर ब्याज छूट की मांग की याचिका पर सुनवाई की. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह मामला लंबे समय से लटका है. कोर्ट ने केंद्र से इस बारे में अपना रुख स्पष्ट करने के लिए कहा है.

ब्याज के ऊपर ब्याज वसूलने पर अपना रुख साफ करें केंद्र: सुप्रीम कोर्ट
ब्याज के ऊपर ब्याज वसूलने पर अपना रुख साफ करें केंद्र: सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को कोविड-19 महामारी को देखते हुए कर्ज की किस्तों को स्थगित किए जाने के दौरान ब्याज पर लिए जाने वाले ब्याज को माफ करने के मुद्दे पर केंद्र सरकार की कथित निष्क्रियता को संज्ञान में लिया और निर्देश दिया कि वह एक सप्ताह के भीतर इस बारे में अपना रुख स्पष्ट करे.

न्यायमूर्ति अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि केंद्र ने इस मुद्दे पर अपना रुख स्पष्ट नहीं किया है, जबकि आपदा प्रबंधन अधिनियम के तहत उसके पास पर्याप्त शक्तियां थीं और वह आरबीआई के पीछे छिप रही है.

ये भी पढ़ें- क्षेत्रीय हवाई संपर्क योजना उड़ान के तहत 78 अतिरिक्त मार्गो को मिली मंजूरी

इस पर सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने जवाब दाखिल करने के लिए एक सप्ताह का समय मांग, जिसे शीर्ष अदालत ने स्वीकार कर लिया. मेहता ने कहा, "हम आरबीआई के साथ मिलकर काम कर रहे हैं."

पीठ ने सॉलिसिटर जनरल से कहा कि वे आपदा प्रबंधन अधिनियम पर रुख स्पष्ट करें और यह बताएं कि क्या मौजूदा ब्याज पर अतिरिक्त ब्याज लिया जा सकता है. पीठ में न्यायमूर्ति आर सुभाष रेड्डी और न्यायमूर्ति एम आर शाह भी शामिल हैं. मेहता ने तर्क दिया कि सभी समस्याओं का एक सामान्य समाधान नहीं हो सकता.

याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने पीठ को बताया कि कर्ज की स्थगित किस्तों की अवधि 31 अगस्त को समाप्त हो जाएगी और उन्होंने इसके विस्तार की मांग की.

सिब्बल ने कहा, "मैं केवल यह कह रहा हूं कि जब तक इन दलीलों पर फैसला नहीं हो जाता, तब तक विस्तार खत्म नहीं होना चाहिए." मामले की अगली सुनवाई एक सितंबर को होगी.

पीठ ने आगरा निवासी गजेन्द्र शर्मा की याचिका पर सुनवाई करते हुये यह बात कही. शर्मा ने अपनी याचिका में कहा है कि रिजर्व बैंक की 27 मार्च की अधिसूचना में किस्तों की वसूली स्थगित तो की गयी है पर कर्जदारों को इसमें काई ठोस लाभ नहीं दिया गया है.

याचिकाकर्ता ने अधिसूचना के उस हिस्से को निकालने के लिये निर्देश देने का आग्रह किया है जिसमें स्थगन अवधि के दौरान कर्ज राशि पर ब्याज वसूले जाने की बात कही गई है. इससे याचिकाकर्ता जो कि एक कर्जदार भी है, का कहना है कि उसके समक्ष कठिनाई पैदा होती है. इससे उसको भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 में दिये गये जीवन के अधिकार की गारंटी मामले में रुकावट आड़े आती है.

शीर्ष न्यायालय ने इससे पहले कहा था, "जब एक बार स्थगन तय कर दिया गया है तब उसे उसके उद्देश्य को पूरा करना चाहिये. ऐसे में हमें ब्याज के ऊपर ब्याज वसूले जाने की कोई तुक नजर नहीं आता है."

शीर्ष अदालत का मानना है कि यह पूरी रोक अवधि के दौरान ब्याज को पूरी तरह से छूट का सवाल नहीं है बल्कि यह मामला बैंकों द्वारा बयाज के ऊपर ब्याज वसूले जाने तक सीमित है.

न्यायालय ने कहा था कि यह चुनौतीपूर्ण समय है ऐसे में यह गंभीर मुद्दा है कि एक तरफ कर्ज किस्त भुगतान को स्थगित किया जा रहा है जबकि दूसरी तरफ उस पर ब्याज लिया जा रहा है.

(पीटीआई-भाषा)

नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को कोविड-19 महामारी को देखते हुए कर्ज की किस्तों को स्थगित किए जाने के दौरान ब्याज पर लिए जाने वाले ब्याज को माफ करने के मुद्दे पर केंद्र सरकार की कथित निष्क्रियता को संज्ञान में लिया और निर्देश दिया कि वह एक सप्ताह के भीतर इस बारे में अपना रुख स्पष्ट करे.

न्यायमूर्ति अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि केंद्र ने इस मुद्दे पर अपना रुख स्पष्ट नहीं किया है, जबकि आपदा प्रबंधन अधिनियम के तहत उसके पास पर्याप्त शक्तियां थीं और वह आरबीआई के पीछे छिप रही है.

ये भी पढ़ें- क्षेत्रीय हवाई संपर्क योजना उड़ान के तहत 78 अतिरिक्त मार्गो को मिली मंजूरी

इस पर सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने जवाब दाखिल करने के लिए एक सप्ताह का समय मांग, जिसे शीर्ष अदालत ने स्वीकार कर लिया. मेहता ने कहा, "हम आरबीआई के साथ मिलकर काम कर रहे हैं."

पीठ ने सॉलिसिटर जनरल से कहा कि वे आपदा प्रबंधन अधिनियम पर रुख स्पष्ट करें और यह बताएं कि क्या मौजूदा ब्याज पर अतिरिक्त ब्याज लिया जा सकता है. पीठ में न्यायमूर्ति आर सुभाष रेड्डी और न्यायमूर्ति एम आर शाह भी शामिल हैं. मेहता ने तर्क दिया कि सभी समस्याओं का एक सामान्य समाधान नहीं हो सकता.

याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने पीठ को बताया कि कर्ज की स्थगित किस्तों की अवधि 31 अगस्त को समाप्त हो जाएगी और उन्होंने इसके विस्तार की मांग की.

सिब्बल ने कहा, "मैं केवल यह कह रहा हूं कि जब तक इन दलीलों पर फैसला नहीं हो जाता, तब तक विस्तार खत्म नहीं होना चाहिए." मामले की अगली सुनवाई एक सितंबर को होगी.

पीठ ने आगरा निवासी गजेन्द्र शर्मा की याचिका पर सुनवाई करते हुये यह बात कही. शर्मा ने अपनी याचिका में कहा है कि रिजर्व बैंक की 27 मार्च की अधिसूचना में किस्तों की वसूली स्थगित तो की गयी है पर कर्जदारों को इसमें काई ठोस लाभ नहीं दिया गया है.

याचिकाकर्ता ने अधिसूचना के उस हिस्से को निकालने के लिये निर्देश देने का आग्रह किया है जिसमें स्थगन अवधि के दौरान कर्ज राशि पर ब्याज वसूले जाने की बात कही गई है. इससे याचिकाकर्ता जो कि एक कर्जदार भी है, का कहना है कि उसके समक्ष कठिनाई पैदा होती है. इससे उसको भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 में दिये गये जीवन के अधिकार की गारंटी मामले में रुकावट आड़े आती है.

शीर्ष न्यायालय ने इससे पहले कहा था, "जब एक बार स्थगन तय कर दिया गया है तब उसे उसके उद्देश्य को पूरा करना चाहिये. ऐसे में हमें ब्याज के ऊपर ब्याज वसूले जाने की कोई तुक नजर नहीं आता है."

शीर्ष अदालत का मानना है कि यह पूरी रोक अवधि के दौरान ब्याज को पूरी तरह से छूट का सवाल नहीं है बल्कि यह मामला बैंकों द्वारा बयाज के ऊपर ब्याज वसूले जाने तक सीमित है.

न्यायालय ने कहा था कि यह चुनौतीपूर्ण समय है ऐसे में यह गंभीर मुद्दा है कि एक तरफ कर्ज किस्त भुगतान को स्थगित किया जा रहा है जबकि दूसरी तरफ उस पर ब्याज लिया जा रहा है.

(पीटीआई-भाषा)

For All Latest Updates

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.