नई दिल्ली: देश की तेल एवं गैस खोज नीति में हाल में किया गया बदलाव शायद ही पासा पलटने वाला साबित हो क्योंकि वैश्विक स्तर पर तेल खोज में होने वाले निवेश में कमी आयी है. इसके साथ ही यह भी समझने की बात है कि भारत में दूसरे देशों के मुकाबले तेल क्षेत्र में संभावनायें थोड़ी कमजोर है. प्राकृतिक संसाधन परामर्श कंपनी वुड मैकेंजी ने बुधवार को यह कहा.
केंद्रीय मंत्रिमंडल ने खुला क्षेत्र आधारित तेल कुओं की खोज और खुदाई को लेकर फरवरी में नीति को मंजूरी दी थी. इस नीति का मकसद घरेलू उत्पादन बढ़ाने के लिये निजी और विदेशी निवेश को आकर्षित करना है. पिछले तीन साल के दौरान हुई तीन नीलामी से अंतरराष्ट्रीय तेल कंपनियां दूर रहीं.
इन नीलामियों में उन कंपनियों को ब्लॉक आवंटित किये गये जिन्होंने होने वाले तेल एवं गैस उत्पादन में से अधिक हिस्सा देने की पेशकश की है.
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तेल एवं गैस खोज क्षेत्रों की ताजा नीलामी में 32 ब्लाक के ठेके आयल इंडिया लि. और आयल एंड नेचुरल गैस कारपोरेशन (ओएनजीसी) तथा निजी क्षेत्र के वेदांता लि. को दिये गये। नीलामी पर मंगलवार को हस्ताक्षर किये गये.
वुड मैकेन्जी ने इस बारे में कहा, "एक तरह से दूसरे, तीसरे दौर की नीलामी पूरी होने के साथ ही खुला क्षेत्र लाइसेंसिंग नीति (ओएएलपी) का पहला चरण समाप्त हो गया. सरकार ने ब्लाक के लिये राजकोषीय मानदंडों में सुधार किया है. यह व्यवस्था ओएएलपी-4 से उपलब्ध होगी."
उसने कहा कि यह बदलाव अब तक अंतरराष्ट्रीय तेल कंपनियों की भागीदारी कम रहने और मूल राजस्व हिस्सेदारी प्रणाली में खामी की आशंका को देखते हुए किया गया है. बदलाव की गयी नीति में अधिक महत्व सरकार के साथ साझा किये जाने वाले राजस्व में हिस्सेदारी के बजाए कार्य से जुड़ी गतिविधियों को दिया गया है.
वुड मैकेन्जी ने कहा, "इससे चीजें कुछ बदलेंगी लेकिन इसके पासा पलटने वाला साबित होने की संभावना कम है. इसका कारण वैश्विक स्तर पर खोज कार्यों के बजट में कमी तथा अधिक प्रतिस्पर्धा है. देश में संभावना अन्य क्षेत्रों के मुकाबले कुछ कम है."
तेल एवं गैस खोज लाइसेंस के लिये बदली गयी नीति ओएएलपी के चौथे दौर से क्रियान्वित होगी. इसके अगस्त महीने से लागू होने की संभावना है. नई नीति में खोजे गये और उत्पादित तेल एवं गैस के विपणन और कीमत की पूरी आजादी देने की बात कही गयी है.