नई दिल्ली: देश एक बार फिर बिजली अधिशेष वाला राष्ट्र बनने के लक्ष्य से चूक गया है. हालांकि चूक का अंतर बहुत कम है. देश में व्यस्त समय में बिजली की मांग और आपूर्ति में अंतर 2018-19 में 0.8 प्रतिशत रही और कुल मिलाकर ऊर्जा कमी 0.6 प्रतिशत पर बनी रही.
केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण (सीईए) ने 2018-19 के लिए अपनी 'लोड जेनरेशन बैलेन्सिंग रिपोर्ट' (एलजीबीआर) में कुल मिलाकर ऊर्जा तथा व्यस्त समय में बिजली अधिशेष क्रमश: 4.6 प्रतिशत तथा 2.5 प्रतिशत रहने का अनुमान जताया था. इसका मतलब था कि भारत वित्त वर्ष में बिजली अधिशेष वाला देश बन जाएगा.
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वर्ष 2017-18 में भी सीईए ने अपनी एलजीबीआर में देश के बिजली अधिशेष वाला देश बनने का अनुमान जताया था. लेकिन आलोच्य वित्त वर्ष में पूरे देश में व्यस्त समय में बिजली की कमी 2.1 प्रतिशत जबकि कुल मिलाकर बिजली की कमी 0.7 प्रतिशत रही.
सीईए के ताजा आंकड़े के अनुसार व्यस्त समय में कुल 1,77,020 मेगावाट मांग के मुकाबले आपूर्ति 1,75,520 मेगावाट रही. इस प्रकार कमी 1490 मेगावाट यानी 0.8 प्रतिशत रही.
आंकड़े के अनुसार 2018-19 में 1,267.29 अरब यूनिट बिजली की आपूर्ति की गयी जबकि मांग 1,274.56 अरब यूनिट की रही. इस प्रकार कुल मिलाकर ऊर्जा की कमी 7.35 अरब यूनिट यानी 0.6 प्रतिशत रही.
बिजली क्षेत्र के एक विशेषज्ञ ने कहा, "इस घाटे का कारण मुख्य रूप से बिजली वितरण कंपनियों का बिजली नहीं खरीद पाना है. उन पर बिजली उत्पादक कंपनियों का कुल बकाया 40,698 करोड़ रुपये पहुंच गया है."
विशेषज्ञ ने कहा कि देश बिजली अधिशेष वाला राज्य बन सकता है क्योंकि उसकी स्थापित बिजली उत्पादन क्षमता करीब 3,56,000 मेगावाट है जबकि व्यस्त समय में मांग 1,77,000 मेगावाट है. अगर बिजली वितरण कंपनियां समय पर बकाये का भुगतान करे तो बिजली उत्पादन को दोगुना किया जा सकता है.