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न्यायालय का रिजर्व बैंक को बैंकों की वार्षिक निरीक्षण रिपोर्ट की जानकारी देने का निर्देश

न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव की अध्यक्षता वाली पीठ ने रिजर्व बैंक को सूचना के अधिकार कानून के तहत सूचना मुहैया कराने की अपनी नीति की समीक्षा करने का भी निर्देश दिया. पीठ ने कहा कि कानून के तहत वह ऐसा करने के लिये बाध्य हैं.

शक्तिकांत दास, आरबीआई गवर्नर।
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Published : Apr 26, 2019, 12:50 PM IST

Updated : Apr 26, 2019, 1:26 PM IST

नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) को शुक्रवार को निर्देश दिया कि सूचना का अधिकार (आरटीआई) कानून के तहत यदि बैंकों को कोई छूट प्राप्त नहीं हो तो इस कानून के अंतर्गत उनकी वार्षिक निरीक्षण रिपोर्ट से जुड़ी जानकारी मुहैया करायी जाये.
न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव की अध्यक्षता वाली पीठ ने रिजर्व बैंक को सूचना के अधिकार कानून के तहत सूचना मुहैया कराने की अपनी नीति की समीक्षा करने का भी निर्देश दिया. पीठ ने कहा कि कानून के तहत वह ऐसा करने के लिये बाध्य हैं.
हालांकि, पीठ ने रिजर्व बैंक के खिलाफ अवमानना की कार्यवाही नहीं की परंतु उसने स्पष्ट किया कि वह सूचना के अधिकार कानून के प्रावधानों का पालन करने के लिये उसे अंतिम अवसर दे रही है. पीठ ने कहा कि अगर रिजर्व बैंक ने अब सूचना के अधिकार कानून के तहत जानकारी उपलब्ध कराने से इंकार किया तो इसे गंभीरता से लिया जायेगा.
पीठ ने कहा, "किसी भी तरह के उल्लंघन को गंभीरता से लिया जाएगा." इस साल जनवरी में शीर्ष अदालत ने सूचना के अधिकार कानून के तहत बैंकों की वार्षिक निरीक्षण रिपोर्ट का खुलासा नहीं करने के लिए रिजर्व बैंक को अवमानना नोटिस जारी किया था. इससे पहले उच्चतम न्यायालय और केंद्रीय सूचना आयोग ने कहा था कि आरबीआई तब तक पारदर्शिता कानून के तहत मांगी गई सूचना देने से इनकार नहीं कर सकता जब तक कि उसे कानून के तहत खुलासे से छूट ना प्राप्त हो.
रिजर्व बैंक ने अपने बचाव में कहा था कि वह अपेक्षित सूचना की जानकारी नहीं दे सकता क्योंकि बैंक की वार्षिक निरीक्षण रिपोर्ट में "न्यासीय" जानकारी निहित है. न्यायालय रिजर्व बैंक के खिलाफ सूचना के अधिकार कार्यकर्ता एस सी अग्रवाल की अवमानना याचिका पर सुनवाई कर रहा था.
अग्रवाल ने नियमों का उल्लंघन करने वाले बैंकों पर लगाये गये जुर्माने से संबंधित दस्तावेजों सहित रिजर्व बैंक से इस बारे में पूरी जानकारी मांगी थी. उन्होंने उन बैंकों की सूची भी मांगी थी जिन पर जुर्माना लगाने से पहले रिजर्व बैंक ने कारण बताओ नोटिस जारी किये थे.
इस तरह की जानकारी का खुलाासा करने के बारे में शीर्ष अदालत के फैसले के बावजूद रिजर्व बैंक ने "खुलासा करने की नीति" जारी की थी, जिसके तहत उसने कुछ जानकारियों को सूचना के अधिकार कानून के दायरे से बाहर रखा था. रिजर्व बैंक ने आर्थिक हितों के आधार पर ऐसी जानकारी देने से इंकार कर दिया था.
शीर्ष अदालत ने 2015 में अपने फैसले में कहा था कि रिजर्व बैंक को उन बैंकों और वित्तीय संस्थाओं के खिलाफ कठोर कार्रवाई करनी चाहिए, जो गलत कारोबारी आचरण अपना रहे हैं. न्यायालय ने यह भी कहा था कि सूचना के अधिकार कानून के तहत इस तरह की जानकारी रोकी नहीं जा सकती है.

नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) को शुक्रवार को निर्देश दिया कि सूचना का अधिकार (आरटीआई) कानून के तहत यदि बैंकों को कोई छूट प्राप्त नहीं हो तो इस कानून के अंतर्गत उनकी वार्षिक निरीक्षण रिपोर्ट से जुड़ी जानकारी मुहैया करायी जाये.
न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव की अध्यक्षता वाली पीठ ने रिजर्व बैंक को सूचना के अधिकार कानून के तहत सूचना मुहैया कराने की अपनी नीति की समीक्षा करने का भी निर्देश दिया. पीठ ने कहा कि कानून के तहत वह ऐसा करने के लिये बाध्य हैं.
हालांकि, पीठ ने रिजर्व बैंक के खिलाफ अवमानना की कार्यवाही नहीं की परंतु उसने स्पष्ट किया कि वह सूचना के अधिकार कानून के प्रावधानों का पालन करने के लिये उसे अंतिम अवसर दे रही है. पीठ ने कहा कि अगर रिजर्व बैंक ने अब सूचना के अधिकार कानून के तहत जानकारी उपलब्ध कराने से इंकार किया तो इसे गंभीरता से लिया जायेगा.
पीठ ने कहा, "किसी भी तरह के उल्लंघन को गंभीरता से लिया जाएगा." इस साल जनवरी में शीर्ष अदालत ने सूचना के अधिकार कानून के तहत बैंकों की वार्षिक निरीक्षण रिपोर्ट का खुलासा नहीं करने के लिए रिजर्व बैंक को अवमानना नोटिस जारी किया था. इससे पहले उच्चतम न्यायालय और केंद्रीय सूचना आयोग ने कहा था कि आरबीआई तब तक पारदर्शिता कानून के तहत मांगी गई सूचना देने से इनकार नहीं कर सकता जब तक कि उसे कानून के तहत खुलासे से छूट ना प्राप्त हो.
रिजर्व बैंक ने अपने बचाव में कहा था कि वह अपेक्षित सूचना की जानकारी नहीं दे सकता क्योंकि बैंक की वार्षिक निरीक्षण रिपोर्ट में "न्यासीय" जानकारी निहित है. न्यायालय रिजर्व बैंक के खिलाफ सूचना के अधिकार कार्यकर्ता एस सी अग्रवाल की अवमानना याचिका पर सुनवाई कर रहा था.
अग्रवाल ने नियमों का उल्लंघन करने वाले बैंकों पर लगाये गये जुर्माने से संबंधित दस्तावेजों सहित रिजर्व बैंक से इस बारे में पूरी जानकारी मांगी थी. उन्होंने उन बैंकों की सूची भी मांगी थी जिन पर जुर्माना लगाने से पहले रिजर्व बैंक ने कारण बताओ नोटिस जारी किये थे.
इस तरह की जानकारी का खुलाासा करने के बारे में शीर्ष अदालत के फैसले के बावजूद रिजर्व बैंक ने "खुलासा करने की नीति" जारी की थी, जिसके तहत उसने कुछ जानकारियों को सूचना के अधिकार कानून के दायरे से बाहर रखा था. रिजर्व बैंक ने आर्थिक हितों के आधार पर ऐसी जानकारी देने से इंकार कर दिया था.
शीर्ष अदालत ने 2015 में अपने फैसले में कहा था कि रिजर्व बैंक को उन बैंकों और वित्तीय संस्थाओं के खिलाफ कठोर कार्रवाई करनी चाहिए, जो गलत कारोबारी आचरण अपना रहे हैं. न्यायालय ने यह भी कहा था कि सूचना के अधिकार कानून के तहत इस तरह की जानकारी रोकी नहीं जा सकती है.

ये भी पढ़ें : एनपीए नियम: बकाया कर्ज निपटाने के लिए रिजर्व बैंक दे सकता है 60 दिन का अतिरिक्त समय

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नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) को एक आखिरी मौका देते हुए वार्षिक निरीक्षण रिपोर्ट जारी करने के लिए कहा कि यदि ये अब जारी नहीं किए जाते हैं तो इसे आरबीआई द्वारा कोर्ट की अवमानना होगी. साथ ही आरबीआई को आदेश दिया कि सूचना के अधिकार के तहत वह विलफुल डिफॉल्टरों की सूची जारी करे.

शीर्ष अदालत ने केंद्रीय बैंक को अपनी गैर-प्रकटीकरण नीति को वापस लेने का भी आदेश दिया, क्योंकि यह शीर्ष अदालत के 2015 में दिए गए फैसले का उल्लंघन है.

जारी अवहेलना को गंभीरता से लेते हुए अदालत ने आरबीआई से एनपीए की स्थिति सहित बैंकों के वित्तीय स्वास्थ्य पर अपनी वार्षिक निरीक्षण रिपोर्ट का पूरा खुलासा करने के लिए कहा और साथ ही आरटीआई के तहत सार्वजनिक करने के तरीके के रूप में अपने प्रकटीकरण मानदंडों को वापस ले लिया.

न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति एम आर शाह की पीठ ने कहा कि आरबीआई द्वारा आगे किसी भी उल्लंघन को गंभीरता से लिया जाएगा.

2015 के फैसले के अनुसार, आरबीआई को बैंकों की वार्षिक ऑडिट रिपोर्ट, एनपीए की स्थिति और उस पर की गई कार्रवाई का खुलासा करना होता है. शीर्ष अदालत ने 2015 के अपने आदेश में आरबीआई को सूचना के अधिकार के तहत एनपीए सहित बैंकों के वार्षिक ऑडिट के बारे में जानकारी साझा करने के लिए कहा था.

हालांकि, आरबीआई द्वारा आरटीआई के तहत बैंकों के वित्तीय स्वास्थ्य पर जानकारी के प्रकटीकरण को अवरुद्ध करने वाले प्रकटीकरण मानदंडों को लागू करने के बाद यह रोक दिया गया था.

एक आरटीआई कार्यकर्ता सुभाष चंदर अग्रवाल ने शीर्ष अदालत का रुख किया था, जिसमें आरबीआई गवर्नर के खिलाफ 2015 के फैसले का पालन नहीं करने के लिए अवमानना कार्रवाई की मांग की गई थी.

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Last Updated : Apr 26, 2019, 1:26 PM IST
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