शिमला: कोरोना महामारी, लॉकडाउन और उस पर आर्थिक मंदी ये तीनों समस्याएं मौजूदा समय में पूरे विश्व के लिए जी का जंजाल बनी हुई हैं. एक से निकलने की कोशिश करें तो दूसरी मुंह फैलाए सामने खड़ी हो जाती है.
सरकारें करें भी तो क्या करें. विकास के लिए बनाए गए रोड मैप और हर व्यवसाय पर कोरोना महामारी जैसे फन फैला कर बैठी हो. पूरी दुनिया समेत भारत में भी यही हालात हैं. मेक इन इंडिया से लेकर स्मार्ट सीटी योजना के तहत होने वाले सारे कार्यों पर ताला लटका है.
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शहर से लेकर गांव सूने हैं. हर कारोबार ठप है, लोगों का रोजगार छिन गया है. टूरिज्म के लिए विश्व पटल पर अपनी अलग पहचान रखने वाला हिमाचल प्रदेश भी इससे अछूता नहीं है. यहां के टैक्सी चालक भी लॉकडाउन की मार झेल रहे हैं. धंधा चौपट ऊपर से बैंक की किस्तें, परिवार का पालन पोषण जैसे कई अन्य तरह के खर्चे पर्यटकों के सहारे ही चलते थे, लेकिन समर सीजन में प्रदेश में एक भी पर्यटक नहीं आया.
हिमाचल में करीब 42 हजार टैक्सियां हैं. इस कारोबार से करीब 1 लाख परिवारों की रोजी-रोटी चलती है. पर्यटन सीजन में लॉकडाउन के चलते सबकी रोजी-रोटी छीन गई है. ऐसे में सभी टैक्सी चालक सरकार से मुश्किल के इस समय में मदद की गुहार लगा रहे हैं. लॉकडाउन के चलते बीते 50 दिनों से पार्किंग में खड़ी टैक्सियां जंग खा रही हैं. ऊपर से बैंकों की किश्तें, इंश्योरेंस और रोड टैक्स की चिंता होना टैक्सी ऑपरेटर्स के लिए लाजमी है.
टैक्सी चालक लॉकडाउन में सरकार से प्रदेश में आने और प्रदेश से बाहर जाने वाले लोगों की सुवीधा के लिए टैक्सी सेवाओं को शुरू करने की मांग के साथ कोरोना महामारी से बचाव के लिए जारी गाइडलान के पालन को सुनिश्चित करने का भरोसा दे रहे हैं.
हिमाचल में सालाना टैक्सी ऑपरेटर्स का 1200 करोड़ के करीब व्यापार रहता है, जिसमें सीजनल व्यापार 800 करोड़ और मिड सीजन में 400 करोड़ का व्यापार होता है. इस साल लॉकडाउन के चलते एक पैसे का व्यापार नहीं हो पाया है. ऐसे में टैक्सी चालक प्रदेश सरकार से राहत की मांग कर रहे हैं.