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सरकारी स्कूलों में उर्दू टीचरों का अभाव, सब्जेक्ट बदलने का पड़ रहा है दबाव

सरकारी विभाग इस कमी को पूरा करने के बजाए परिजनों पर इस तरह का दबाव बनाते हैं कि किसी भी तरह वह अपने बच्चे का सब्जेक्ट बदलकर दाखिला कराएं.

सरकारी स्कूलों में उर्दू टीचरों का अभाव
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Published : Apr 8, 2019, 2:34 PM IST

नई दिल्ली: राजधानी दिल्ली में कहने को सरकार ने उर्दू को दूसरी भाषा का दर्जा दिया हुआ है, लेकिन सच्चाई यह है कि दिल्ली के सरकारी स्कूलों में उर्दू टीचरों की कमी के चलते अब बच्चों को उर्दू के बजाय दूसरे सब्जेक्ट लेने के लिए मजबूर किया जा रहा है.

सरकारी स्कूलों में उर्दू टीचरों का अभाव

दिल्ली माइनॉरिटी कमीशन को कई बार मामले में शिकायत की जा चुकी है. दिल्ली माइनॉरिटी कमीशन ने शिक्षा निदेशक को पत्र लिखकर इस बाबत विस्तृत जानकारी मांगी है.

'बच्चों के परिजन लिखित में दें शिकायत'
माइनॉरिटी कमीशन के मुताबिक अगर स्कूलों के प्रिंसिपल लिखित में टीचरों की मांग करें तो शिक्षा निदेशालय वहां टीचर भेजने की पूरी व्यवस्था कर सकता है. बच्चों के परिजनों को भी चाहिए उन्हें दिक्कत आती है तो वह लिखित में कमीशन को भी इसकी शिकायत करें ताकि कोई एक्शन लिया जा सके.

दिल्ली के सरकारी स्कूलों में उर्दू टीचरों के पद पिछले काफी समय से खाली पड़े हुए हैं, हैरत की बात तो यह है कि सरकारी विभाग इस कमी को पूरा करने के बजाए परिजनों पर इस तरह का दबाव बनाते हैं कि किसी भी तरह वह अपने बच्चे का सब्जेक्ट बदलकर दाखिला कराएं.

'शिकायत लगातार मिल रही हैं'
माइनॉरिटी कमीशन के चेयरमैन डॉ.जफरुल इस्लाम खान ने बताया कि उन्हें लगातार इस तरह की शिकायतें मिल रहीं है कि स्कूल में उर्दू टीचर नहीं हैं या फिर प्रिंसिपल परिजनों से बच्चे का सब्जेक्ट बदलवाने के लिए कह रहे हैं.

इस बारे में पूछने पर शिक्षा निदेशक ने दिल्ली माइनॉरिटी कमीशन से कहा कि अगर स्कूल प्रिंसिपल लिखकर भेज देते हैं तो वह तुरंत ही टीचरों को स्कूल में तैनात कर देंगे. कमीशन को निदेशालय ने यह भी कहा कि उर्दू टीचरों की कमी नहीं है बल्कि उनके पास तो बाकायदा गेस्ट टीचरों की भी एक लंबी फेहरिस्त मौजूद है. बच्चों को अपनी मादरी जुबान में तालीम हासिल करने का पूरा हक है.

सरकार को लिखा पत्र
उर्दू डेवलपमेंट ऑर्गनाइजेशन से जुड़े डॉ.सैयद अहमद खान ने बताया कि इस बाबत के बार सरकारों को लिखा जा चुका है उसमें चाहे दिल्ली सरकार हो या फिर दिल्ली नगर निगम के स्कूल शामिल हों. अफसोस कि पंद्रह साल तक दिल्ली में कांग्रेस की सरकार रही हो या फिर मौजूदा सरकार किसी ने भी उर्दू के लिए कुछ नहीं किया.

महज उर्दू को राजकीय दर्जा दिए जाने भर से कुछ नहीं होगा बल्कि उर्दू के फरोग के लिए भी सरकार को कदम उठाने होंगे. सरकारों को माइनॉरिटी तबके से जुड़े हर वर्ग के बच्चों की शिक्षा के लिए खासतौर से ध्यान देना चाहिए. मुसलमान बच्चों को उनकी मादरी ज़ुबान में शिक्षा देनी चाहिए.

हैरत की बात तो यह है कि बार बार इस तरह की शिकायतें आने के बाद दिल्ली माइनॉरिटी कमीशन ने शिक्षा विभाग को पत्र लिखे, लेकिन शिक्षा विभाग ने गेस्ट टीचरों की पर्याप्त संख्या हवाला देते हुए कमीशन से पल्ला झाड़ लिया.

शिक्षा निदेशालय द्वारा दिल्ली माइनॉरिटी कमीशन को मुहैया कराए गए डाटा के मुताबिक लिस्ट इस प्रकार है.

टीजीटी उर्दू
सेंक्शन पोस्ट 1024
रेगुलर टीचर 82
एकेडमी टीचर 62
गेस्ट टीचर 316
रिक्त पद 564

उर्दू लेक्चरर
सेंक्शन पोस्ट 67
रेगुलर टीचर 15
एकेडमी टीचर 0
गेस्ट टीचर 28
रिक्त पद 24

नई दिल्ली: राजधानी दिल्ली में कहने को सरकार ने उर्दू को दूसरी भाषा का दर्जा दिया हुआ है, लेकिन सच्चाई यह है कि दिल्ली के सरकारी स्कूलों में उर्दू टीचरों की कमी के चलते अब बच्चों को उर्दू के बजाय दूसरे सब्जेक्ट लेने के लिए मजबूर किया जा रहा है.

सरकारी स्कूलों में उर्दू टीचरों का अभाव

दिल्ली माइनॉरिटी कमीशन को कई बार मामले में शिकायत की जा चुकी है. दिल्ली माइनॉरिटी कमीशन ने शिक्षा निदेशक को पत्र लिखकर इस बाबत विस्तृत जानकारी मांगी है.

'बच्चों के परिजन लिखित में दें शिकायत'
माइनॉरिटी कमीशन के मुताबिक अगर स्कूलों के प्रिंसिपल लिखित में टीचरों की मांग करें तो शिक्षा निदेशालय वहां टीचर भेजने की पूरी व्यवस्था कर सकता है. बच्चों के परिजनों को भी चाहिए उन्हें दिक्कत आती है तो वह लिखित में कमीशन को भी इसकी शिकायत करें ताकि कोई एक्शन लिया जा सके.

दिल्ली के सरकारी स्कूलों में उर्दू टीचरों के पद पिछले काफी समय से खाली पड़े हुए हैं, हैरत की बात तो यह है कि सरकारी विभाग इस कमी को पूरा करने के बजाए परिजनों पर इस तरह का दबाव बनाते हैं कि किसी भी तरह वह अपने बच्चे का सब्जेक्ट बदलकर दाखिला कराएं.

'शिकायत लगातार मिल रही हैं'
माइनॉरिटी कमीशन के चेयरमैन डॉ.जफरुल इस्लाम खान ने बताया कि उन्हें लगातार इस तरह की शिकायतें मिल रहीं है कि स्कूल में उर्दू टीचर नहीं हैं या फिर प्रिंसिपल परिजनों से बच्चे का सब्जेक्ट बदलवाने के लिए कह रहे हैं.

इस बारे में पूछने पर शिक्षा निदेशक ने दिल्ली माइनॉरिटी कमीशन से कहा कि अगर स्कूल प्रिंसिपल लिखकर भेज देते हैं तो वह तुरंत ही टीचरों को स्कूल में तैनात कर देंगे. कमीशन को निदेशालय ने यह भी कहा कि उर्दू टीचरों की कमी नहीं है बल्कि उनके पास तो बाकायदा गेस्ट टीचरों की भी एक लंबी फेहरिस्त मौजूद है. बच्चों को अपनी मादरी जुबान में तालीम हासिल करने का पूरा हक है.

सरकार को लिखा पत्र
उर्दू डेवलपमेंट ऑर्गनाइजेशन से जुड़े डॉ.सैयद अहमद खान ने बताया कि इस बाबत के बार सरकारों को लिखा जा चुका है उसमें चाहे दिल्ली सरकार हो या फिर दिल्ली नगर निगम के स्कूल शामिल हों. अफसोस कि पंद्रह साल तक दिल्ली में कांग्रेस की सरकार रही हो या फिर मौजूदा सरकार किसी ने भी उर्दू के लिए कुछ नहीं किया.

महज उर्दू को राजकीय दर्जा दिए जाने भर से कुछ नहीं होगा बल्कि उर्दू के फरोग के लिए भी सरकार को कदम उठाने होंगे. सरकारों को माइनॉरिटी तबके से जुड़े हर वर्ग के बच्चों की शिक्षा के लिए खासतौर से ध्यान देना चाहिए. मुसलमान बच्चों को उनकी मादरी ज़ुबान में शिक्षा देनी चाहिए.

हैरत की बात तो यह है कि बार बार इस तरह की शिकायतें आने के बाद दिल्ली माइनॉरिटी कमीशन ने शिक्षा विभाग को पत्र लिखे, लेकिन शिक्षा विभाग ने गेस्ट टीचरों की पर्याप्त संख्या हवाला देते हुए कमीशन से पल्ला झाड़ लिया.

शिक्षा निदेशालय द्वारा दिल्ली माइनॉरिटी कमीशन को मुहैया कराए गए डाटा के मुताबिक लिस्ट इस प्रकार है.

टीजीटी उर्दू
सेंक्शन पोस्ट 1024
रेगुलर टीचर 82
एकेडमी टीचर 62
गेस्ट टीचर 316
रिक्त पद 564

उर्दू लेक्चरर
सेंक्शन पोस्ट 67
रेगुलर टीचर 15
एकेडमी टीचर 0
गेस्ट टीचर 28
रिक्त पद 24

Intro:राजधानी दिल्ली में कहने को सरकार ने उर्दू को दूसरी भाषा का दर्जा दिया हुआ है, लेकिन सच्चाई यह है कि दिल्ली के सरकारी स्कूलों में उर्दू टीचरों की कमी के चलते हैं अब बच्चों को उर्दू के बजाय दूसरे सब्जेक्ट लेने के लिए मजबूर किया जाता है, इस तरह की शिकायतें मिलने के बाद मामले को गंभीरता से लेते हुए दिल्ली माइनॉरिटी कमीशन ने शिक्षा निदेशक को पत्र लिखकर इस बाबत विस्तृत जानकारी मांगी है. माइनॉरिटी कमीशन के मुताबिक यदि स्कूलों के प्रिंसिपल लिखित में टीचरों की मांग करें तो शिक्षा निदेशालय वहां टीचर भेजने की पूरी व्यवस्था कर सकता है.ऐसे में बच्चों के परिजनों को भी चाहिए कि कभी उनके सामने इस तरह की दिक्कत आती है तो वह लिखित में कमीशन को भी इसकी शिकायत करें ताकि कोई एक्शन लिया जा सके.


Body:दिल्ली के सरकारी स्कूलों में उर्दू टीचरों के पद पिछले काफी समय से खाली पड़े हुए हैं, हैरत की बात तो यह है कि सरकारी विभाग इस कमी को पूरा करने के बजाए परिजनों पर इस तरह का दबाव बनाते हैं कि किसी भी तरह वह अपने बच्चे का सब्जेक्ट बदलकर दाखिल कराया दें, फिलहाल तो स्कूलों में उर्दू टीचरों की मौजूदा स्थिति जस की तस बनी हुई है.

🎂माइनॉरिटी कमीशन के चेयरमैन डॉ.जफरुल इस्लाम खान ने बताया कि उन्हें लगातार इस तरह की शिकायतें मिलती रहती है कि या तो स्कूल में उर्दू टीचर नहीं हैं या फिर प्रिंसिपल परिजनों से बच्चे का सब्जेक्ट बदलवाने के लिए कहते हैं. इस बारे में पूछने पर शिक्षा निदेशक ने दिल्ली माइनॉरिटी कमीशन से कहा कि अगर स्कूल प्रिंसिपल लिखकर भेज देते हैं तो वह तुरंत ही टीचरों को स्कूल में तैनात कर देंगे. कमीशन को निदेशालय ने यह भी कहा कि उर्दू टीचरों की कमी नहीं है बल्कि उनके पास तो बाकायदा गेस्ट टीचरों की भी एक लंबी फेहरिस्त मौजूद है. उन्होंने कहा कि बच्चों को अपनी मादरी जबान में शिक्षा हासिल करने का पूरा हक है.


उर्दू डवलपमेंट ऑर्गनाइजेशन ने भी सरकार को लिखा
उर्दू डवलपमेंट ऑर्गनाइजेशन से जुड़े डॉ.सैयद अहमद खान ने बताया कि इस बाबत के बार सरकारों को लिखा जा चुका है उसमें चाहे दिल्ली सरकार हो या फिर दिल्ली नगर निगम के स्कूल शामिल हों. अफसोस कि पंद्रह साल तक दिल्ली में कांग्रेस की सरकार रही हो या फिर मौजूदा सरकार किसी ने भी उर्दू के लिए कुछ नहीं किया. महज उर्दू को राजकीय दर्जा दिए जाने भर से कुछ नहीं होगा बल्कि उर्दू के फरोग के लिए भी सरकार को कदम उठाने होंगे.सरकारों को माइनॉरिटी तबके से जुड़े वर्ग के बच्चों की शिक्षा के लिए खासतौर से ध्यान देना चाहिए. मुसलमान बच्चों को उनकी मादरी जबान में शिक्षा देनी चाहिए.

शिक्षा निदेशालय द्वारा दिल्ली माइनॉरिटी कमीशन को मुहैया कराए गए डाटा के मुताबिक...

टीजीटी उर्दू
सेंक्शन पोस्ट 1024
रेगुलर टीचर 82
एकेडमी टीचर 62
गेस्ट टीचर 316
रिक्त पद 564

उर्दू लैक्चरर

सेंक्शन पोस्ट 67
रेगुलर टीचर 15
एकेडमी टीचर 0
गेस्ट टीचर 28
रिक्त पद 24


Conclusion:हैरत की बात तो यह है कि बार बार इस तरह की शिकायतें आने के बाद दिल्ली माइनॉरिटी कमीशन ने शिक्षा विभाग को पत्र लिखे , लेकिन शिक्षा विभाग ने कमीशन के उतर का जवाब देते हुए गेंद को यह कहते हुए स्कूल प्रिंसिपल के पाले में डाल दिया कि उनके पास गेस्ट टीचरों की पर्याप्त संख्या मौजूद है, अगर प्रिंसिपल लिखित में उन्हें बताएं तो जरूर उर्दू टीचरों को भेज दिया जाएगा.अब सवाल यह है कि क्या राजकीय भाषा का दर्जा मिलने के बाद भी उर्दू की ऐसे ही दुर्दशा होती रहेगी और सरकारें मूकदर्शक बनी रहेंगी.

बाईट 1
डॉ.जफरुल इस्लाम खान
चेयरमैन दिल्ली माइनॉरिटी कमीशन

बाईट 2
डॉ.सैयद अहमद खान
उर्दू डवलपमेंट ऑर्गनाइजेशन
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