उत्तरकाशीः विश्व प्रसिद्ध यमुनोत्री धाम के कपाट वैदिक मंत्रोच्चार के साथ शीतकाल के लिए बंद हो गए हैं. दोपहर 12 बजकर 9 मिनट पर विधि विधान के साथ यमुनोत्री मंदिर के कपाट बंद कर दिए गए. यमुनोत्री धाम से यमुना जी की उत्सव मूर्ति को डोली यात्रा के साथ खरसाली गांव पहुंच गई है. जहां अब 6 महीने तक शीतकालीन के दौरान मां यमुना के दर्शन होंगे.
बता दें कि आज सुबह 8.30 बजे खरसाली से यमुना के भाई सोमेश्वर (शनि) देवता की डोली यमुनोत्री के लिए रवाना हुई. यमुनोत्री में विशेष पूजा-अर्चना और धार्मिक अनुष्ठान के साथ अभिजित मुहूर्त पर दोपहर 12 बजकर 9 मिनट पर यमुनोत्री मंदिर के कपाट बंद (Yamunotri Dham Kapat Closed For Winter) किए गए. यहां यमुना जी की उत्सव मूर्ति को डोली यात्रा के साथ तीर्थ पुरोहितों के गांव खरसाली लाया गया. इस दौरान धाम में जिले की कई देव डोलियां मौजूद रहीं.
यमुनोत्री मंदिर समिति (Yamunotri Temple Committee) के सचिव सुरेश उनियाल ने बताया कि अब शीतकाल में खरसाली गांव में यमुना जी के दर्शन और पूजा-अर्चना की जाएगी. शीतकाल में देश-विदेश से आने वाले श्रद्धालु छह महीने तक मां यमुना के दर्शन खरसाली में कर सकेंगे. जिसके बाद अक्षय तृतीया के पावन पर्व पर ग्रीष्मकाल के लिए यमुनोत्री धाम में पुनः मां यमुना के कपाट विधिवत दर्शनार्थ खोल दिए जाएंगे.
सूर्य पुत्री और शनिदेव की बहन हैं मां यमुनाः विश्व प्रसिद्ध यमुनोत्री धाम अनेकों धार्मिक परंपराओं और मान्यताओं को समेटे हुए सर्वश्रेष्ठ महात्म्य के लिए प्रसिद्ध है. सूर्य पुत्री होने के नाते यमुना को शनिदेव की बहन माना जाता है. खरसाली गांव में सोमेश्वर देवता के रूप में पूजे जाने वाले शनिदेव की डोली हर साल कपाट खुलने व बंद होने पर बहन की डोली के साथ होती है. खरसाली के ग्रामीण सदियों से इस विशिष्ट परंपरा के वाहक बने हुए हैं.
यमुनोत्री धाम के प्रवेश द्वार बड़कोट से 43 किलोमीटर दूर जानकीचट्टी तक मोटर मार्ग और जानकीचट्टी से पांच किमी पैदल 3135 मीटर की ऊंचाई पर यमुनोत्री धाम स्थित है. पुराणों के अनुसार, यमुना कांठा ही कालिंदी पर्वत है और इसी पर्वत की बेटी कालिंदजा हैं.
यमुनोत्री में स्नान से यम यातना से मिलती है मुक्तिः कालिंद सूर्य का ही दूसरा नाम है और यमुना सूर्य की पुत्री हैं. सूर्य पुत्री यमुना को सूर्य देव का वरदान है कि जो भी व्यक्ति यमुनोत्री धाम में आकर यमुना में स्नान करेगा, उसके पापों का नाश होने के साथ ही शनि की वक्र दृष्टि और यम यातना से मुक्ति मिलेगी.
बहन यमुना को लाने और छोड़ने जाते हैं शनिदेवः मान्यता है कि सूर्य की दो पत्नियां संज्ञा और छाया थीं. संज्ञा से यमुना और यम हुए, जबकि छाया से शनिदेव. पौराणिक काल से ही शनिदेव की डोली भैयादूज के दिन यमुना को लेने यमुनोत्री धाम जाती है और छह माह बाद खरसाली से यमुनोत्री धाम छोड़ने भी शनिदेव की डोली ही जाती है. खरसाली गांव में शनिदेव यानी सोमेश्वर महाराज को आराध्य माना जाता है.
खरसाली के ग्रामीण सदियों से पूरी आस्था और उत्साह के साथ इस परंपरा का निर्वाह कर रहे हैं. हर साल अक्षय तृतीया के पावन पर्व पर यमुनोत्री धाम के कपाट श्रद्धालुओं के लिए दर्शनार्थ खोल दिए जाते हैं. जबकि, भैया दूज कार्तिक शुक्ल (यम द्वितीया) के दिन यमुनोत्री धाम के कपाट छह माह के लिए बंद कर दिए जाते हैं. जिसके बाद मां यमुना के दर्शन उनके मायके खरसाली गांव में किए जाते हैं.
मां यमुना के दर्शन से धुल जाते हैं सभी पापः यमुनोत्री मंदिर समिति के पूर्व उपाध्यक्ष पंडित पवन उनियाल कहते हैं कि यमुनोत्री में यमुना में स्नान करने से ही मानव को मुक्ति मिल जाती है, जो व्यक्ति यम द्वितीया को यमुना के दर्शन करके रात्रि में यमुनोत्री में निवास करते हैं. उनके सभी पाप धुल जाते हैं. कार्तिक शुक्ल द्वितीया का कल्याणकारी दिन मृत्यु देवता यमराज की पूजा का शुभ दिन होता है, जिसे सभी लोग यम द्वितीया या भैया दूज के नाम से जानते हैं.