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कर्नाटक: दुनिया की सबसे ऊंची मां चामुंडेश्वरी प्रतिमा का अनावरण - Divine destinations

श्री चामुंडेश्वरी देवी को मां दुर्गा का ही रूप माना जाता है. शक्ति की आराध्या देवी के दर्शन के लिए देश विदेश से हर साल काफी संख्या में भक्त आते हैं.

Maa Chamundeshwari Statue, World's Tallest Statue
मां चामुंडेश्वरी देवी
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Published : Aug 9, 2021, 1:16 PM IST

Updated : Aug 9, 2021, 3:43 PM IST

रामनगर (कर्नाटक): जिले के चन्नापटना के गौड़ागेरे गांव में 60 फीट ऊंची और दुनिया की सबसे ऊंची मां चामुंडेश्वरी की प्रतिमा (World's Tallest Statue of Maa Chamundeshwari) का अनावरण किया गया. यह देश की पहली 18-कंधे वाली मूर्ति भी है. मंदिर में राज्य के साथ-साथ विदेशों से भी श्रद्धालु आते हैं.

पिछले तीन साल में 20 मुस्लिम लोगों ने 35 हजार किलो वजनी सोने, चांदी, पीतल, कांसे और तांबे का इस्तेमाल कर एक मूर्ति को साकार किया. 18 कंधों वाली यह मूर्ति देखने में अद्भुत है. मंदिर का इतिहास सैकड़ों वर्ष पुराना है.

मां चामुंडेश्वरी देवी की प्रतिमा का निर्माण व स्थापना

देश के 18 शक्तिपीठों में से एक है मां चामुंडेश्वरी धाम

यह मंदिर मां दुर्गा के चामुंडेश्वरी स्वरूप को समर्पित है. ऐसी मान्यता है कि इसी स्थान पर मां दुर्गा ने महिषासुर का वध किया था. पहाड़ी पर महिषासुर की ऊंची मूर्ति और मां का मंदिर है. यह मंदिर देश के प्रमुख 18 शक्तिपीठों में से एक है. ऐसी मान्यता है कि जब भगवान शिव मां सती के शव को कंधे पर लेकर तांडव नृत्य कर रहे थे. उनके क्रोध को शांत करने के लिए विष्णु भगवान ने सुदर्शन चक्र चलाया था तो उससे कट कर माता सती के बाल इसी स्थल पर गिरे थे.

इसी वजह से इस तीर्थ स्थल को शक्तिपीठ की मान्यता दी गई है. पौराणिक काल में यह क्षेत्र क्रौंचपुरी कहलाता था. इसी कारण दक्षिण भारत में इस मंदिर को क्रौंचापीठम के नाम से भी जाना जाता है. प्रचलित मान्यता के अनुसार इस शक्तिपीठ की रक्षा के लिए कालभैरव यहां सदैव विराजमान रहते हैं.

जानें मंदिर के वास्तु शिल्प के बारे में

द्राविड़ वास्तुशिल्प से निर्मित यह मंदिर बहुत सुंदर एवं कलात्मक है. मंदिर के अंदर गर्भगृह में देवी की प्रतिमा सोने से बनी है. सात मंजिला इमारत के रूप में निर्मित इस मंदिर का भव्य स्वरूप भक्तों को मुग्ध कर देता है. मुख्य मंदिर के पीछे महाबलेश्वर को समर्पित एक छोटा-सा शिव मंदिर है, जो 1,000 वर्षों से भी अधिक पुराना है.

पहाड़ियों की चोटी से मैसूर की प्राकृतिक सुंदरता देखते ही बनती है. मैसूर के दशहरे का त्योहार विश्वप्रसिद्ध है. विदेशी पर्यटकों के लिए यह एक अनूठा और अद्भुत दृश्य होता है, जिसे वे अपने कैमरों में कैद कर लेते हैं. यहां से मां चामुंडेश्वरी की पालकी भी निकाली जाती है. दक्षिण भारत के अन्य मंदिरों की तरह यहां भी विशेष दर्शन के लिए कूपन लेना आवश्यक होता है.

रामनगर (कर्नाटक): जिले के चन्नापटना के गौड़ागेरे गांव में 60 फीट ऊंची और दुनिया की सबसे ऊंची मां चामुंडेश्वरी की प्रतिमा (World's Tallest Statue of Maa Chamundeshwari) का अनावरण किया गया. यह देश की पहली 18-कंधे वाली मूर्ति भी है. मंदिर में राज्य के साथ-साथ विदेशों से भी श्रद्धालु आते हैं.

पिछले तीन साल में 20 मुस्लिम लोगों ने 35 हजार किलो वजनी सोने, चांदी, पीतल, कांसे और तांबे का इस्तेमाल कर एक मूर्ति को साकार किया. 18 कंधों वाली यह मूर्ति देखने में अद्भुत है. मंदिर का इतिहास सैकड़ों वर्ष पुराना है.

मां चामुंडेश्वरी देवी की प्रतिमा का निर्माण व स्थापना

देश के 18 शक्तिपीठों में से एक है मां चामुंडेश्वरी धाम

यह मंदिर मां दुर्गा के चामुंडेश्वरी स्वरूप को समर्पित है. ऐसी मान्यता है कि इसी स्थान पर मां दुर्गा ने महिषासुर का वध किया था. पहाड़ी पर महिषासुर की ऊंची मूर्ति और मां का मंदिर है. यह मंदिर देश के प्रमुख 18 शक्तिपीठों में से एक है. ऐसी मान्यता है कि जब भगवान शिव मां सती के शव को कंधे पर लेकर तांडव नृत्य कर रहे थे. उनके क्रोध को शांत करने के लिए विष्णु भगवान ने सुदर्शन चक्र चलाया था तो उससे कट कर माता सती के बाल इसी स्थल पर गिरे थे.

इसी वजह से इस तीर्थ स्थल को शक्तिपीठ की मान्यता दी गई है. पौराणिक काल में यह क्षेत्र क्रौंचपुरी कहलाता था. इसी कारण दक्षिण भारत में इस मंदिर को क्रौंचापीठम के नाम से भी जाना जाता है. प्रचलित मान्यता के अनुसार इस शक्तिपीठ की रक्षा के लिए कालभैरव यहां सदैव विराजमान रहते हैं.

जानें मंदिर के वास्तु शिल्प के बारे में

द्राविड़ वास्तुशिल्प से निर्मित यह मंदिर बहुत सुंदर एवं कलात्मक है. मंदिर के अंदर गर्भगृह में देवी की प्रतिमा सोने से बनी है. सात मंजिला इमारत के रूप में निर्मित इस मंदिर का भव्य स्वरूप भक्तों को मुग्ध कर देता है. मुख्य मंदिर के पीछे महाबलेश्वर को समर्पित एक छोटा-सा शिव मंदिर है, जो 1,000 वर्षों से भी अधिक पुराना है.

पहाड़ियों की चोटी से मैसूर की प्राकृतिक सुंदरता देखते ही बनती है. मैसूर के दशहरे का त्योहार विश्वप्रसिद्ध है. विदेशी पर्यटकों के लिए यह एक अनूठा और अद्भुत दृश्य होता है, जिसे वे अपने कैमरों में कैद कर लेते हैं. यहां से मां चामुंडेश्वरी की पालकी भी निकाली जाती है. दक्षिण भारत के अन्य मंदिरों की तरह यहां भी विशेष दर्शन के लिए कूपन लेना आवश्यक होता है.

Last Updated : Aug 9, 2021, 3:43 PM IST
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