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World Toilet Day 2023 : स्वच्छता की कमी के कारण रोजाना सैकड़ों बच्चों की होती है मौत

भारत सहित दुनिया के कई देशों में आज भी स्वच्छता के अभाव के कारण बड़ी संख्या में नवजात से लेकर बुजुर्गों की मौतें हो जाती है. इसके लिए मुख्य कारण साफ पानी व शौचालय की व्यवस्था नहीं होना. इस समस्या के बारे में वैश्विक स्तर पर ध्यान आकृष्ट करने के लिए आज के दिन वर्ल्ड टॉयलेट डे मनाया जाता है. पढ़ें पूरी खबर..World Toilet Day 2023, World Toilet Day History.

World Toilet Day 2023
विश्व शौचालय दिवस 2023
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Nov 19, 2023, 12:16 AM IST

Updated : Nov 19, 2023, 12:07 PM IST

हैदराबाद : स्वच्छता हर समाज व हर इंसान के लिए व्यक्तिगत रूप से जरूरी है. वैश्विक और कई देशों में व्यक्तिगत स्तर पर स्वच्छता के लिए अभियान चलाया जाता रहा है. संयुक्त राष्ट्र के अनुसार इसके बाद भी दुनिया में 350 करोड़ (3.5 बिलियन) लोग के पास शौचालय की सुविधा नहीं है. वहीं 41.90 करोड़ (419 मिलियन) लोग अभी भी 'खुले में शौच' करते हैं. इस कारण दुनिया में बड़ी संख्या में लोग कई तरह की बीमारियों के साथ जीने को मजबूर हैं. स्वच्छता के अभाव में अनुमान के मुताबिक हर दिन पांच साल से कम आयु के 1,000 बच्चों की मौत हो जाती है. इससे सबसे ज्यादा महिलाएं, लड़कियां व अन्य कमजोर वर्ग के लोगों के लिए बड़ा खतरा है. 2030 तक सुरक्षित शौचालय और पानी सबों के लिए उपलब्ध कराने का लक्ष्य रखा गया है. इसे हासिल करने में महज सात ही दुनिया के सामने है. संयुक्त राष्ट्र की विभिन्न एजेंसियों के अनुसार स्वच्छता के मुद्दे पर पांच गुना तेजी से काम करने के बाद ही इस लक्ष्य को पाया जा सकता है.

वर्ल्ड टॉयलेट डे 2023 के लिए थीम 'त्वरित परिवर्तन' तय किय गया है. इसमें हमिंगबर्ड का उपयोग कर आम लोगों को शौचालय व स्वच्छता प्रणालियों को बेहतर बनाने में मदद करने के लिए व्यक्तिगत रूप से लोगों को प्रेरित करने का प्रयास किया गया है.

हमिंगबर्ड से लें प्रेरणा
शौचालय शब्द सुनने में भले ही छोटा लगे, लेकिन आज के समय में स्वच्छ समाज के लिए यह सबसे मूलभूत आवश्यकता है. वर्ल्ड टॉयलेट डे नामक ग्लोबल संगठन के अनुसार हमिंगबर्ड (Humming Bird) विश्व शौचालय दिवस और विश्व जल दिवस 2023 का प्रतीक बताया है. हमिंगबर्ड के बारे एक प्राचीन कहानी के माध्यम से समझाने का प्रयास किया है. इसके अनुसार एक जगह पर भीषण आग लगी हुई थी. सभी लोग अपने तरीके से प्रयास कर रहे थे. इसी दौरान हमिंगबर्ड अपनी चोंच में पानी की बूंदें लेकर बार-बार आग पर डालती है. भले ही बड़ी आग पर काबू पाने के लिए उसका प्रयास छोटा हो, लेकिन अगर यह प्रयास सामूहिकता में किया जाय तो इससे बड़ी सफलता मिल सकती है. स्वच्छता संकट से निपटने के लिए जिताना अधिक सामूहिक प्रयास होगा, स्वच्छता का लक्ष्य उतना ही आसानी से निर्धारित समय पर मिल सकता है.

स्वच्छ भारत मिशन: भारत की शौचालय क्रांति

  1. भारत में संचारी रोगों के लिए 20 फीसदी से अधिक के मामले को जिम्मेदार माना गया है.
  2. हर दिन 500 बच्चों की मौत डायरिया के कारण हो जाता है.
  3. 2014 में शुरू स्वच्छ भारत मिशन के तहत 2019 में ग्रामीण भारत को खुले में शौच से मुक्त (ओडीएफ) घोषित किया गया.
  4. भारत की सबसे प्राचीन सभ्यताओं में से एक सिंधु घाटी स्वच्छता के महत्व को जानती थी.
  5. हड़प्पावासी अपने शौचालयों और उन्नत जल निकासी व्यवस्था के लिए जाने जाते थे.
  6. भारत में पहला गीला शौचालय 2500 ईसा पूर्व में था.

1859 में सार्वजनिक स्वास्थ्य आयोग
जनसंख्या में वृद्धि और ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी कुछ ऐसे कारक थे, जिनकी वजह से स्वच्छता एक मुद्दे के रूप में अपनी जगह खो बैठी. हालांकि जब 1859 में ब्रिटिश रॉयल कमीशन की एक रिपोर्ट में डायरिया के कारण उच्च मृत्यु दर का पता चला. इसके बाद सार्वजनिक स्वास्थ्य आयोग की स्थापना की गई. 1865 के सैन्य छावनी अधिनियम के तहत, स्वच्छता से संबंधित मुद्दों की देखभाल के लिए स्वच्छता बोर्ड और स्वच्छता पुलिस बनाई गई थी. जानकारों के अनुसार इससे भी आम जनता को कोई फायदा नहीं हुआ.

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हैदराबाद : स्वच्छता हर समाज व हर इंसान के लिए व्यक्तिगत रूप से जरूरी है. वैश्विक और कई देशों में व्यक्तिगत स्तर पर स्वच्छता के लिए अभियान चलाया जाता रहा है. संयुक्त राष्ट्र के अनुसार इसके बाद भी दुनिया में 350 करोड़ (3.5 बिलियन) लोग के पास शौचालय की सुविधा नहीं है. वहीं 41.90 करोड़ (419 मिलियन) लोग अभी भी 'खुले में शौच' करते हैं. इस कारण दुनिया में बड़ी संख्या में लोग कई तरह की बीमारियों के साथ जीने को मजबूर हैं. स्वच्छता के अभाव में अनुमान के मुताबिक हर दिन पांच साल से कम आयु के 1,000 बच्चों की मौत हो जाती है. इससे सबसे ज्यादा महिलाएं, लड़कियां व अन्य कमजोर वर्ग के लोगों के लिए बड़ा खतरा है. 2030 तक सुरक्षित शौचालय और पानी सबों के लिए उपलब्ध कराने का लक्ष्य रखा गया है. इसे हासिल करने में महज सात ही दुनिया के सामने है. संयुक्त राष्ट्र की विभिन्न एजेंसियों के अनुसार स्वच्छता के मुद्दे पर पांच गुना तेजी से काम करने के बाद ही इस लक्ष्य को पाया जा सकता है.

वर्ल्ड टॉयलेट डे 2023 के लिए थीम 'त्वरित परिवर्तन' तय किय गया है. इसमें हमिंगबर्ड का उपयोग कर आम लोगों को शौचालय व स्वच्छता प्रणालियों को बेहतर बनाने में मदद करने के लिए व्यक्तिगत रूप से लोगों को प्रेरित करने का प्रयास किया गया है.

हमिंगबर्ड से लें प्रेरणा
शौचालय शब्द सुनने में भले ही छोटा लगे, लेकिन आज के समय में स्वच्छ समाज के लिए यह सबसे मूलभूत आवश्यकता है. वर्ल्ड टॉयलेट डे नामक ग्लोबल संगठन के अनुसार हमिंगबर्ड (Humming Bird) विश्व शौचालय दिवस और विश्व जल दिवस 2023 का प्रतीक बताया है. हमिंगबर्ड के बारे एक प्राचीन कहानी के माध्यम से समझाने का प्रयास किया है. इसके अनुसार एक जगह पर भीषण आग लगी हुई थी. सभी लोग अपने तरीके से प्रयास कर रहे थे. इसी दौरान हमिंगबर्ड अपनी चोंच में पानी की बूंदें लेकर बार-बार आग पर डालती है. भले ही बड़ी आग पर काबू पाने के लिए उसका प्रयास छोटा हो, लेकिन अगर यह प्रयास सामूहिकता में किया जाय तो इससे बड़ी सफलता मिल सकती है. स्वच्छता संकट से निपटने के लिए जिताना अधिक सामूहिक प्रयास होगा, स्वच्छता का लक्ष्य उतना ही आसानी से निर्धारित समय पर मिल सकता है.

स्वच्छ भारत मिशन: भारत की शौचालय क्रांति

  1. भारत में संचारी रोगों के लिए 20 फीसदी से अधिक के मामले को जिम्मेदार माना गया है.
  2. हर दिन 500 बच्चों की मौत डायरिया के कारण हो जाता है.
  3. 2014 में शुरू स्वच्छ भारत मिशन के तहत 2019 में ग्रामीण भारत को खुले में शौच से मुक्त (ओडीएफ) घोषित किया गया.
  4. भारत की सबसे प्राचीन सभ्यताओं में से एक सिंधु घाटी स्वच्छता के महत्व को जानती थी.
  5. हड़प्पावासी अपने शौचालयों और उन्नत जल निकासी व्यवस्था के लिए जाने जाते थे.
  6. भारत में पहला गीला शौचालय 2500 ईसा पूर्व में था.

1859 में सार्वजनिक स्वास्थ्य आयोग
जनसंख्या में वृद्धि और ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी कुछ ऐसे कारक थे, जिनकी वजह से स्वच्छता एक मुद्दे के रूप में अपनी जगह खो बैठी. हालांकि जब 1859 में ब्रिटिश रॉयल कमीशन की एक रिपोर्ट में डायरिया के कारण उच्च मृत्यु दर का पता चला. इसके बाद सार्वजनिक स्वास्थ्य आयोग की स्थापना की गई. 1865 के सैन्य छावनी अधिनियम के तहत, स्वच्छता से संबंधित मुद्दों की देखभाल के लिए स्वच्छता बोर्ड और स्वच्छता पुलिस बनाई गई थी. जानकारों के अनुसार इससे भी आम जनता को कोई फायदा नहीं हुआ.

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Last Updated : Nov 19, 2023, 12:07 PM IST
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