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बीकानेर में बनती है लकड़ी की गणगौर, खूबसूरती के कारण देश-दुनिया में पहचान

गणगौर का पर्व महिलाओं के लिए खास महत्व रखता है. होलिका दहन के अगले दिन धुलण्डी से ही गणगौर का पूजन शुरू होता है. सदियों से चल रहे गणगौर के पूजन को लेकर महिलाओं में खासा उत्साह देखने को मिलता है. खास बात ये है कि बीकानेर जैसी खूबसूरत लकड़ी की गणगौर कहीं नहीं बनाई जाती.

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Published : Apr 12, 2021, 10:32 PM IST

बीकानेर : हिंदू धर्म में गणगौर के त्योहार का अलग महत्व है. पूरी तरह से महिलाओं के लिए खास उत्साह वाला यह त्यौहार होली के अगले दिन से शुरू होता है. 16 दिन तक महिलाएं अपने घर में गणगौर का पूजन करती हैं. बीकानेर में लकड़ी की गणगौर की खूबसूरती की कायल पूरी दुनिया है.

महिलाएं 16 दिन तक गणगौर की पूजा अर्चना करती है. दिनभर गणगौर के गीत गाए जाते हैं. सामूहिक रूप से गणगौर की पूजा अर्चना कर मंगल की कामना की जाती है. गणगौर को भगवान शंकर की पत्नी माता पार्वती का अवतार माना जाता है. गणगौर के साथ ही ईशर की भी पूजा होती है. ईशर शिव के प्रतीक हैं. साथ ही गणेश के प्रतीक भाइया की भी पूजा की जाती है.

गणगौर की पूजा 16 दिन चलती है. मान्यता है कि गणगौर इन दिनों अपने पीहर होती है. तो जमकर आवभगत की जाती है. फिर उसकी विदाई ससुराल के लिए होती है. 16 दिन की पूजा पूरी होने पर ईशर गणगौर की सवारी निकाली जाती है.

गणगौर की पूजा के महत्व को बताते हुए रेखा और हीरादेवी बताती है कि गणगौर को बासा देने की परंपरा है. इस दौरान मन्नतें मांगी जाती हैं. बीकानेर में राज परिवार की ओर से भी गणगौर पूजने की रस्म होती है. शाही सवारी भी निकाली जाती है. हर साल गणगौर के मेले के दिन बीकानेर में जूनागढ़ से गणगौर की शाही सवारी निकलती है हालांकि इस बार कोरोना के चलते प्रशासन ने इसकी अनुमति नहीं दी है. ऐसे में जूनागढ़ के अंदर ही परंपरा का निर्वहन किया जाएगा.

खास बात ये है कि बीकानेर में कई कारीगर ऐसे हैं जो पीढ़ियों से लकड़ी की गणगौर बनाने का काम करते हैं. कई ऐसे कलाकार भी हैं जो कई पीढ़ियों से गणगौर की सजावट का काम करते हैं. लकड़ी की ये गणगौर पूरे देश में प्रसिद्ध है. बीकानेर में बनी लकड़ी की हस्त निर्मित गणगौर सागवान की लकड़ी से बनाई जाती है.

गणगौर के तैयार होने के बाद सोलह सिंगार किया जाता है. गणगौर बनाने वाले कारीगर सांवरलाल कहते हैं कि वे चौथी पीढ़ी हैं. उनके पुरखे यही काम करते थे. पूरे साल सांवरलाल का परिवार इसी काम में जुटा रहता है. सागवान की लकड़ी पर बनी गणगौर को बनाने में तकरीबन 13 से 15 हजार का खर्चा आता है. यानी ईशर गणगौर का जोड़ा बनाने में 30 हजार तक की लागत आती है.

बीकानेर में बनती है लकड़ी की गणगौर

हालांकि बढ़ती महंगाई के बीच सागवान की बजाय अब सस्ती लकड़ी पर भी गणगौर बनाई जा रही है. एक अन्य कारीगर सूरज कहते हैं कि हमारा प्रयास रहता है कि गणगौर का निर्माण बहुत करीने से किया जाता है. यह देखने में बहुत सुंदर होनी चाहिए. ताकि देखते ही उसे खरीदने का मन करे. वे कहते हैं कि जब महिलाएं इसे लेने आती हैं तो पूरी तरह से जांच पड़ताल करती हैं. गणगौर के नैन नक्श देखे जाते हैं. ऐसे में काष्ठ प्रतिमा को खूबसूरत बनाने के प्रयास किए जाते हैं.

लकड़ी से बनी गणगौर को पूरी आकृति देने और रंग चित्रकारी कर श्रृंगार करने वाले अविनाश महात्मा कहते हैं कि मुगल काल से हमारे पूर्वज इसे बना रहे हैं. बीकानेर में तकरीबन में 600 साल से गणगौर बनाने का काम जारी है. बीकानेर में गणगौर बनाने का काम सालभर चलता है. होली के कुछ पहले से ये काम जोर पकड़ने लगता है. बाजार सज जाते हैं. लोग अब ऑनलाइन खरीददारी भी करने लगे हैं. बीकानेर का मथेरन चौक तो पूरी तरह गणगौर के लिए समर्पित है. यहां लगभग दो दर्जन दुकानों में ईशर गणगौर मिलते हैं. इन दुकानों में हर साइज की प्रतिमाएं मिल जाती हैं.

यह भी पढ़ें-गहराता जा रहा पानी का संकट, जल संरक्षण के उपाय बेहद जरूरी

कुल मिलाकर बीकानेर अपनी हवेलियों, किलों के लिए तो प्रसिद्ध है ही, साथ ही यहां की नमकीन और रसगुल्ले भी लोगों को अपनी तरफ खींचते हैं. लेकिन इस फेहरिस्त में गणगौर की सुंदरता भी खासा आकर्षित करती है.

बीकानेर : हिंदू धर्म में गणगौर के त्योहार का अलग महत्व है. पूरी तरह से महिलाओं के लिए खास उत्साह वाला यह त्यौहार होली के अगले दिन से शुरू होता है. 16 दिन तक महिलाएं अपने घर में गणगौर का पूजन करती हैं. बीकानेर में लकड़ी की गणगौर की खूबसूरती की कायल पूरी दुनिया है.

महिलाएं 16 दिन तक गणगौर की पूजा अर्चना करती है. दिनभर गणगौर के गीत गाए जाते हैं. सामूहिक रूप से गणगौर की पूजा अर्चना कर मंगल की कामना की जाती है. गणगौर को भगवान शंकर की पत्नी माता पार्वती का अवतार माना जाता है. गणगौर के साथ ही ईशर की भी पूजा होती है. ईशर शिव के प्रतीक हैं. साथ ही गणेश के प्रतीक भाइया की भी पूजा की जाती है.

गणगौर की पूजा 16 दिन चलती है. मान्यता है कि गणगौर इन दिनों अपने पीहर होती है. तो जमकर आवभगत की जाती है. फिर उसकी विदाई ससुराल के लिए होती है. 16 दिन की पूजा पूरी होने पर ईशर गणगौर की सवारी निकाली जाती है.

गणगौर की पूजा के महत्व को बताते हुए रेखा और हीरादेवी बताती है कि गणगौर को बासा देने की परंपरा है. इस दौरान मन्नतें मांगी जाती हैं. बीकानेर में राज परिवार की ओर से भी गणगौर पूजने की रस्म होती है. शाही सवारी भी निकाली जाती है. हर साल गणगौर के मेले के दिन बीकानेर में जूनागढ़ से गणगौर की शाही सवारी निकलती है हालांकि इस बार कोरोना के चलते प्रशासन ने इसकी अनुमति नहीं दी है. ऐसे में जूनागढ़ के अंदर ही परंपरा का निर्वहन किया जाएगा.

खास बात ये है कि बीकानेर में कई कारीगर ऐसे हैं जो पीढ़ियों से लकड़ी की गणगौर बनाने का काम करते हैं. कई ऐसे कलाकार भी हैं जो कई पीढ़ियों से गणगौर की सजावट का काम करते हैं. लकड़ी की ये गणगौर पूरे देश में प्रसिद्ध है. बीकानेर में बनी लकड़ी की हस्त निर्मित गणगौर सागवान की लकड़ी से बनाई जाती है.

गणगौर के तैयार होने के बाद सोलह सिंगार किया जाता है. गणगौर बनाने वाले कारीगर सांवरलाल कहते हैं कि वे चौथी पीढ़ी हैं. उनके पुरखे यही काम करते थे. पूरे साल सांवरलाल का परिवार इसी काम में जुटा रहता है. सागवान की लकड़ी पर बनी गणगौर को बनाने में तकरीबन 13 से 15 हजार का खर्चा आता है. यानी ईशर गणगौर का जोड़ा बनाने में 30 हजार तक की लागत आती है.

बीकानेर में बनती है लकड़ी की गणगौर

हालांकि बढ़ती महंगाई के बीच सागवान की बजाय अब सस्ती लकड़ी पर भी गणगौर बनाई जा रही है. एक अन्य कारीगर सूरज कहते हैं कि हमारा प्रयास रहता है कि गणगौर का निर्माण बहुत करीने से किया जाता है. यह देखने में बहुत सुंदर होनी चाहिए. ताकि देखते ही उसे खरीदने का मन करे. वे कहते हैं कि जब महिलाएं इसे लेने आती हैं तो पूरी तरह से जांच पड़ताल करती हैं. गणगौर के नैन नक्श देखे जाते हैं. ऐसे में काष्ठ प्रतिमा को खूबसूरत बनाने के प्रयास किए जाते हैं.

लकड़ी से बनी गणगौर को पूरी आकृति देने और रंग चित्रकारी कर श्रृंगार करने वाले अविनाश महात्मा कहते हैं कि मुगल काल से हमारे पूर्वज इसे बना रहे हैं. बीकानेर में तकरीबन में 600 साल से गणगौर बनाने का काम जारी है. बीकानेर में गणगौर बनाने का काम सालभर चलता है. होली के कुछ पहले से ये काम जोर पकड़ने लगता है. बाजार सज जाते हैं. लोग अब ऑनलाइन खरीददारी भी करने लगे हैं. बीकानेर का मथेरन चौक तो पूरी तरह गणगौर के लिए समर्पित है. यहां लगभग दो दर्जन दुकानों में ईशर गणगौर मिलते हैं. इन दुकानों में हर साइज की प्रतिमाएं मिल जाती हैं.

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कुल मिलाकर बीकानेर अपनी हवेलियों, किलों के लिए तो प्रसिद्ध है ही, साथ ही यहां की नमकीन और रसगुल्ले भी लोगों को अपनी तरफ खींचते हैं. लेकिन इस फेहरिस्त में गणगौर की सुंदरता भी खासा आकर्षित करती है.

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