ETV Bharat / bharat

लिव-इन में रहने वाली महिला भी दर्ज करा सकती है घरेलू हिंसा का केस : केरल हाईकोर्ट - केरल हाईकोर्ट न्यूज

केरल हाईकोर्ट (Kerala High Court) ने कहा कि लिव इन रिलेशनशिप में रहने वाली महिला भी घरेलू हिंसा (Domestic Violence) का केस दर्ज करा सकती है. मुंबई की महिला से जुड़े केस में सुनवाई के दौरान कोर्ट ने यह टिप्पणी की.

Kerala High Court
केरल हाईकोर्ट
author img

By

Published : Aug 15, 2023, 10:13 PM IST

कोच्चि: केरल उच्च न्यायालय (Kerala High Court) ने कहा कि लिव इन में रहने वाली महिलाएं भी घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत मामला दर्ज करा सकती हैं. न्यायमूर्ति अनिल के नरेंद्रन और न्यायमूर्ति पीजी अजित कुमार की खंडपीठ ने कहा कि यदि साथ रहने वाला पुरुष किसी भी प्रकार का उत्पीड़न करता है, तो महिला घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत मामला दर्ज करा सकती है.

धारा 12 के तहत कानूनी कार्रवाई : 'घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम' दो लोगों के बीच के रिश्ते के रूप में परिभाषित करता है, चाहे वह शादीशुदा हों या नहीं. वह आपसी सहमति से एक अवधि के लिए साथ रहते हैं, भौतिक सुविधाएं साझा करते हैं. इस कारण यदि विवाह के बिना साथ रहते हुए किसी पुरुष द्वारा किसी महिला के साथ दुर्व्यवहार किया जाता है, तो यह घरेलू हिंसा कानून के दायरे में आएगा. कोर्ट ने कहा कि एक महिला जो विवाह जैसा रिश्ता जारी रखती है, घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 12 के तहत कानूनी कार्रवाई कर सकती है.

फैमिली कोर्ट में केस ट्रांसफर करने की अपील खारिज : अदालत मुंबई निवासी विनीत गणेश द्वारा दायर अपील पर विचार कर रही थी. याचिका में घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत मामले को मजिस्ट्रेट अदालत से पारिवारिक अदालत में स्थानांतरित करने की मांग की गई थी. कोर्ट ने यह भी माना कि पार्टनर के खिलाफ दायर शिकायत को उसके अनुरोध के अनुसार बदलने से महिला को नुकसान होगा. इसके बाद डिवीजन बेंच ने अपील खारिज कर दी.

हाईकोर्ट ने पहले माना था कि साथ रहने वाले रिश्तों में, साथी कानूनी तौर पर तलाक नहीं मांग सकते. अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि एक साथ रहने वाले जोड़ों को कानून द्वारा मान्यता नहीं दी जाती है और वे कानूनी तौर पर तलाक नहीं मांग सकते हैं. एक साथ रहना शादी का रिश्ता नहीं माना जा सकता. केवल कानून या विशेष विवाह अधिनियम के अनुसार किए गए विवाह ही कानूनी रूप से वैध हैं. न्यायमूर्ति सोफी थॉमस और न्यायमूर्ति मुहम्मद मुश्ताक की खंडपीठ ने कहा था कि केवल ऐसी शादियां ही कानूनी अलगाव के लिए वैध हैं.

2006 से एक साथ रह रहे हिंदू और ईसाई समुदायों के पार्टनर ने आपसी सहमति से तलाक के लिए एर्नाकुलम परिवार अदालत का दरवाजा खटखटाया था. पारिवारिक अदालत ने यह कहते हुए तलाक देने से इनकार कर दिया कि जोड़ा कानूनी तौर पर शादीशुदा नहीं था. बाद में उन्होंने इस संबंध में हाई कोर्ट में अपील दायर की. उच्च न्यायालय ने यह भी कहा कि 'तलाक' का अर्थ कानूनी रूप से अनुबंधित विवाह का कानूनी अलगाव है और अपील को खारिज कर दिया.

ये भी पढ़ें-

सर्जरी कराके महिला बना ट्रांसजेंडर व्यक्ति घरेलू हिंसा कानून के तहत कर सकता है राहत की मांग

कोच्चि: केरल उच्च न्यायालय (Kerala High Court) ने कहा कि लिव इन में रहने वाली महिलाएं भी घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत मामला दर्ज करा सकती हैं. न्यायमूर्ति अनिल के नरेंद्रन और न्यायमूर्ति पीजी अजित कुमार की खंडपीठ ने कहा कि यदि साथ रहने वाला पुरुष किसी भी प्रकार का उत्पीड़न करता है, तो महिला घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत मामला दर्ज करा सकती है.

धारा 12 के तहत कानूनी कार्रवाई : 'घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम' दो लोगों के बीच के रिश्ते के रूप में परिभाषित करता है, चाहे वह शादीशुदा हों या नहीं. वह आपसी सहमति से एक अवधि के लिए साथ रहते हैं, भौतिक सुविधाएं साझा करते हैं. इस कारण यदि विवाह के बिना साथ रहते हुए किसी पुरुष द्वारा किसी महिला के साथ दुर्व्यवहार किया जाता है, तो यह घरेलू हिंसा कानून के दायरे में आएगा. कोर्ट ने कहा कि एक महिला जो विवाह जैसा रिश्ता जारी रखती है, घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 12 के तहत कानूनी कार्रवाई कर सकती है.

फैमिली कोर्ट में केस ट्रांसफर करने की अपील खारिज : अदालत मुंबई निवासी विनीत गणेश द्वारा दायर अपील पर विचार कर रही थी. याचिका में घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत मामले को मजिस्ट्रेट अदालत से पारिवारिक अदालत में स्थानांतरित करने की मांग की गई थी. कोर्ट ने यह भी माना कि पार्टनर के खिलाफ दायर शिकायत को उसके अनुरोध के अनुसार बदलने से महिला को नुकसान होगा. इसके बाद डिवीजन बेंच ने अपील खारिज कर दी.

हाईकोर्ट ने पहले माना था कि साथ रहने वाले रिश्तों में, साथी कानूनी तौर पर तलाक नहीं मांग सकते. अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि एक साथ रहने वाले जोड़ों को कानून द्वारा मान्यता नहीं दी जाती है और वे कानूनी तौर पर तलाक नहीं मांग सकते हैं. एक साथ रहना शादी का रिश्ता नहीं माना जा सकता. केवल कानून या विशेष विवाह अधिनियम के अनुसार किए गए विवाह ही कानूनी रूप से वैध हैं. न्यायमूर्ति सोफी थॉमस और न्यायमूर्ति मुहम्मद मुश्ताक की खंडपीठ ने कहा था कि केवल ऐसी शादियां ही कानूनी अलगाव के लिए वैध हैं.

2006 से एक साथ रह रहे हिंदू और ईसाई समुदायों के पार्टनर ने आपसी सहमति से तलाक के लिए एर्नाकुलम परिवार अदालत का दरवाजा खटखटाया था. पारिवारिक अदालत ने यह कहते हुए तलाक देने से इनकार कर दिया कि जोड़ा कानूनी तौर पर शादीशुदा नहीं था. बाद में उन्होंने इस संबंध में हाई कोर्ट में अपील दायर की. उच्च न्यायालय ने यह भी कहा कि 'तलाक' का अर्थ कानूनी रूप से अनुबंधित विवाह का कानूनी अलगाव है और अपील को खारिज कर दिया.

ये भी पढ़ें-

सर्जरी कराके महिला बना ट्रांसजेंडर व्यक्ति घरेलू हिंसा कानून के तहत कर सकता है राहत की मांग

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.